फिरंगिया - मनोरंजन प्रसाद सिंह


'फिरंगिया' मनोरंजन प्रसाद सिंह जी ऊ रचना हऽ जेवना पर अंगरेजी सरकार रोक लगा देले रहे एसे ई कबिता ए देस में ना छप पावल। बाकिर ई कबिता मारीशस गईल औरी ओहि जग से ए कबिता परचार भारत में भईल। ई कबिता देस परेम के भाव से भरल बे। ई कबिता खाली देस खाती परेमे नईखे देखावत बाकिर देस इतिहास और ओह समय पर अंजोरो डालत बे। 
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सुन्दर सुघर भूमि भारत के रहे रामा
आज इहे भइल मसान रे फिरंगिया।
अन्न धन जल बल बुद्धि सब नास भइल
कौनों के ना रहल निसान रे फिरंगिया॥

जहॅवाँ थोड़े ही दिन पहिले ही होत रहे,
लाखों मन गल्ला और धान रे फिरंगिया।
उहें आज हाय रामा मथवा पर हाथ धरि
बिलखि के रोवेला किसान रे फिरंगिया॥

सात सौ लाख लोग दू-दू साँझ भूखे रहे
हरदम पड़ेला अकाल रे फिरंगिया।
जेहु कुछु बॉचेला त ओकरो के लादि लादि
ले जाला समुन्दर के पार रे फिरंगिया॥

घरे लोग भूखे मरे, गेहुँआ बिदेस जाय
कइसन बाटे जग के व्यवहार रे फिरंगिया।
जहॅवा के लोग सब खात ना अधात रहे
रूपया से रहे मालामाल रे फिरंगिया॥

उहें आज जेने-जेने आँखिया घुमाके देखु
तेने, तेने देखबे कंगाल रे फिरंगिया।
बनिज-बेयपार सब एकहू रहल नाहीं
सब कर होइ गइल नास रे फिरंगिया॥

तनि-तनि बात लागि हमनी का हाय रामा
जोहिले बिदेसिया के आस रे फिरंगिया।
कपड़ों जे आवेला बिदेश से त हमनी का
पेन्ह के रखिला निज लाज रे फिरंगिया॥

आज जो बिदेसवा से आवे ना कपड़वा त
लंगटे करब जा निवास रे फिरंगिया।
हमनी से ससता में रूई लेके ओकरे से
कपड़ा बना-बना के बेचे रे फिरंगिया॥

अइसहीं दीन भारत के धनवा।
लूटि लूटि ले जाला बिदेस फिरंगिया।
रूपया चालिस कोट भारत के साले-साल
चल जाला दूसरा के पास रे फिरंगिया।

अइसन जो हाल आउर कुछदिन रही रामा
होइ जाइ भारत के नास रे फिरंगिया।
स्वाभिमान लोगन में नामों के रहल नाहीं
ठकुरसुहाती बोले बात रे फिरंगिया॥

दिन रात करे ले खुसामद सहेबावा के
चाटेले बिदेसिया के लात रे फिरंगिया।
जहॅवाँ भइल रहे राणा परताप सिंह
और सुलतान अइसन वीर रे फिरंगिया॥

जिनकर टेक रहे जान चाहे चलि जाय
तबहु नवाइब ना सिर रे फिरंगिया।
उहॅवे के लोग आज अइसन अधम भइले
चाटेले बिदेसिया के लात रे फिरंगिया॥

सहेबा के खुशी लागी करेलन सब हीन
अपनो भइअवा के घात रे फिरंगिया।
जहवाँ भइल रहे अरजुन, भीम, द्रोण
भीषम, करन सम सूर रे फिरंगिया॥

उहें आज झुंड-झुंड कायर के बास बाटे
साहस वीरत्व दूर भइल रे फिरंगिया।
केकरा करनिया कारन हाय भइल बाटे
हमनी के अइसन हवाल रे फिरंगिया॥

धन गइल, बल गइल, बुद्धि आ, विद्या गइल
हो गइलीं जा निपट कंगाल रे फिरंगिया।
सब बिधि भइल कंगाल देस तेहू पर
टीकस के भार ते बढ़ौले रे फिरंगिया॥

नून पर टिकसवा, कूली पर टिकसवा
सब परटिकस लगौले रे फिरंगिया।
स्वाधीनता हमनी के नामों के रहल नाहीं
अइसन कानून के बाटे जाल रे फिरंगिया॥

प्रेस एक्ट, आर्म्स एक्ट, इंडिया डिफेन्स एक्ट
सब मिलि कइलस ई हाल रे फिरंगिया।
प्रेस एक्ट लिखे के स्वाधीनता छिनलस
आर्म्स एक्ट लेलस हथियार रे फिरंगिय॥

इंडिया डिफेंस एक्ट रच्छक के नाम लेके
भच्छक के भइल अवतार रे फिरंगिया।
हाय हाय केतना जुवक भइलें भारत के
ए जाल में फांसे नजरबंद रे फिरंगिया।

केतना सपूत पूत एकरे करनावा से
पड़ले पुलिसवा के फंद रे फिरंगिया।
आजो पंजबवा के करि के सुरतिया
से फाटेला करेजवा हमार रे फिरंगिया॥

भारते के छाती पर भारते के बचवन के
बहल रकतवा के धारे रे फिरंगिया।
छोटे-छोटे लाल सब बालक मदन सब
तड़पि-तड़पि देले जान रे फिरंगिया॥

छटपट करि-करिबूढ़ सब मरि गइलें
मरि गइलें सुधर जवान रे फिरंगिया।
बुढ़िया महतारी के लकुटिया छिनाइ गइल
जे रहे बुढ़ापा के सहारा रे फिरंगिया॥

जुवती सती से प्राणपति हाय बिलग भइल
रहे जे जीवन के आधार रे फिरंगिया।
साधुओं के देहवा पर चुनवा के पोति-पोति
रहि आगे लंगटा करौले रे फिरंगिया॥

हमनी के पसु से भी हालत खराब कइले
पेटवा के बल रेंगअवले रे फिरंगिया।
हाय हाय खाय सबे रोवत विकल होके
पीटि-पीटि आपन कपार रे फिरंगिया॥

जिनकर हाल देखि फाटेला करेजवा से
अँसुआ बहेला चहुँधार रे फिरंगिया।
भारत बेहाल भइल लोग के इ हाल भइल
चारों ओर मचल हाय-हाय रे फिरंगिया॥

तेहु पर अपना कसाई अफसरवन के
देले नाहीं कवनो सजाय रे फिरंगिया।
चेति जाउ चेति जाउ भैया रे फिरंगिया से
छोड़ि दे कुनीतिया सुनीतिया के बांह गहु
भला तोर करी भगवन्त रे फिरंगिया॥

दुखिआ के आह तोर देहिआ भसम करी
जूरि-भूनि होइ जइबे छार रे फिरंगिया।
ऐही से त कहतानी भैया रे फिरंगी तोहे
धरम से करू ते बिचार रे फिरंगिय॥

जुलुमी कानुन ओ टिकसवा के रद क दे,
भारत के दे दे तें स्वराज रे फिरंगिया।
नाहीं त ई सांचे-सांचे तोरा से कहत बानी
चौपट हो जाई तोर राज रे फिरंगिया॥

तेंतिस करोड़ लोग अंसुआ बहाई ओमें
बहि जाई तोर सभराज रे फिरंगिया।
अन्न-धन-जन-बल सकल बिलाय जाई
डूब जाई राष्ट्र के जहाज रे फिरंगिया॥
-------------------- मनोरंजन प्रसाद सिंह
अंक - 35 (7 जुलाई 2015)

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