सूतन रहलीं सपन एक देखलीं
सपन मनभावन हो सखिया।
फूटलि किरनिया पुरुब असमनवा
उजर घर आँगन हो सखिया।
अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा
त खेत भइलें आपन हो सखिया।
गोसयाँ के लठिया मुरइआ अस तूरलीं
भगवलीं महाजन हो सखिया।
केहू नाहीं ऊँचा नीच केहू के न भय
नाहीं केहू बा भयावन हो सखिया।
मेहनति माटी चारों ओर चमकवली
ढहल इनरासन हो सखिया।
बैरी पैसवा के रजवा मेटवलीं
मिलल मोर साजन हो सखिया।
----------------गोरख पाण्डेय
अंक - 5 (11 सितम्बर 2014)
सपन मनभावन हो सखिया।
फूटलि किरनिया पुरुब असमनवा
उजर घर आँगन हो सखिया।
अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा
त खेत भइलें आपन हो सखिया।
गोसयाँ के लठिया मुरइआ अस तूरलीं
भगवलीं महाजन हो सखिया।
केहू नाहीं ऊँचा नीच केहू के न भय
नाहीं केहू बा भयावन हो सखिया।
मेहनति माटी चारों ओर चमकवली
ढहल इनरासन हो सखिया।
बैरी पैसवा के रजवा मेटवलीं
मिलल मोर साजन हो सखिया।
----------------गोरख पाण्डेय
अंक - 5 (11 सितम्बर 2014)
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