कौ ठगवा नगरिया लूटल हो।। टेक।।
चंदन काठ कै वनल खटोलना,
तापर दुलहिन सूतल हो।। 1।।
उठो री सखी मोरी माँग सँवारो,
दुलहा मोसे रूसल हो।। 2।।
आये जमराज पलंग चढ़ि बैठे,
नैनन आँसू टूटल हो।। 3।।
चारि जने मिलि खाट उठाइन,
चहुँ दिसि धू-धू उठल हो।। 4।।
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
जग से नाता टूटल हो।। 5।।
-------------- कबीरदास
अंक - 5 (11 सितम्बर 2014)
चंदन काठ कै वनल खटोलना,
तापर दुलहिन सूतल हो।। 1।।
उठो री सखी मोरी माँग सँवारो,
दुलहा मोसे रूसल हो।। 2।।
आये जमराज पलंग चढ़ि बैठे,
नैनन आँसू टूटल हो।। 3।।
चारि जने मिलि खाट उठाइन,
चहुँ दिसि धू-धू उठल हो।। 4।।
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
जग से नाता टूटल हो।। 5।।
-------------- कबीरदास
अंक - 5 (11 सितम्बर 2014)
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