आज रऊआँ सभ के सोझा मैना के चऊथा अंक परस्तुत बा। निक लागता। उम्मीद बा कि मैना रऊआँ सभ के मन माफ़िक धीरे-धीरे आगे बढ़ रह बे। एहू अंक में खाली दू गो काब्य रचना बाड़ी सऽ। ए अंक में धरीक्षण मिश्र जी कऽ 'शिवजी के खेती' औरी चन्द्रशेखर मिश्र जी कऽ 'गाँव क बरखा' रचना रऊआँ सभ खाती।
- प्रभुनाथ उपाध्याय
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साँप के हजार मुँह पाँच बा भतार मुँह
सब घर-बार भूत प्रेत खचमचिया ।
एक पूत छव मुँह एक के हाथी के मुँह
घरे भीखि रोजी कइसे जुटिहे खरचिया ।
सुसुकि सुसुकि गौरी बोलतारी शिव जी से
शिव जी का सुनि सुनि आवतारी हँसिया ।
हँसिया के देखि गौरी करेली गुनान औरी
शिव जी से बिनती करेली एक संसिया ।।1।।
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हमरे गाँव क बरखा लागै बड़ी सुहावन रे।।
सावन-भादौ दूनौ भैया राम-लखन की नाईं,
पतवन पर जेठरु फुलवन पर लहुरु कै परछाईं।
बनै बयार कदाँर कान्ह पर बाहर के खड़खड़िया,
बिजुरी सीता दुलही, बदरी गावै गावन रे।। हमरे....
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