नरहरि चंचल मति मोरी - संत रैदास

नरहरि चंचल मति मोरी। 
कैसैं भगति करौ रांम तोरी।। 

तू कोहि देखै हूँ तोहि देखैं, प्रीती परस्पर होई। 
तू मोहि देखै हौं तोहि न देखौं, इहि मति सब बुधि खोई।।

सब घट अंतरि रमसि निरंतरि, मैं देखत ही नहीं जांनां। 
गुन सब तोर मोर सब औगुन, क्रित उपगार न मांनां।। 

मैं तैं तोरि मोरी असमझ सों, कैसे करि निसतारा। 
कहै रैदास कृश्न करुणांमैं, जै जै जगत अधारा।।
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लेखक परिचय:-

नाम: संत रैदास
जन्म: 1398 (१४३३, माघ पूर्णिमा)
जन्म स्थान: काशी, उत्तर प्रदेश, भारत
निधन: 1518




अंक - 61 (5 जनवरी 2016)

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