गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ - संत रैदास

गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ।

गांवणहारा कौ निकटि बतांऊँ।। टेक।।

जब लग है या तन की आसा, तब लग करै पुकारा।
जब मन मिट्यौ आसा नहीं की, तब को गाँवणहारा।।

जब लग नदी न संमदि समावै, तब लग बढ़ै अहंकारा।
जब मन मिल्यौ रांम सागर सूँ, तब यहु मिटी पुकारा।।

जब लग भगति मुकति की आसा, परम तत सुणि गावै।
जहाँ जहाँ आस धरत है यहु मन, तहाँ तहाँ कछू न पावै।।

छाड़ै आस निरास परंमपद, तब सुख सति करि होई।
कहै रैदास जासूँ और कहत हैं, परम तत अब सोई।।

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लेखक परिचय:-


नाम: संत रैदास
जन्म: 1398 (१४३३, माघ पूर्णिमा)
जन्म स्थान: काशी, उत्तर प्रदेश, भारत
निधन: 1518


अंक - 57 (8 दिसम्बर 2015)

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