चलि मन हरि चटसाल पढ़ाऊँ।
गुरु की साटि ग्यांन का अखिर,
बिसरै तौ सहज समाधि लगाऊँ।
प्रेम की पाटी सुरति की लेखनी करिहूं,
ररौ ममौ लिखि आंक दिखांऊँ।
इहिं बिधि मुक्ति भये सनकादिक,
रिदौ बिदारि प्रकास दिखाऊँ।
कागद कैवल मति मसि करि नृमल,
बिन रसना निसदिन गुण गाऊँ।
कहै रैदास राम जपि भाई,
संत साखि दे बहुरि न आऊँ।
-----------------------------------
लेखक परिचय:-
नाम: संत रैदास
जन्म: 1398 (१४३३, माघ पूर्णिमा)
जन्म स्थान: काशी, उत्तर प्रदेश, भारत
निधन: 1518
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें