सुघर आलोचक के सुघर कृति: पढ़त - लिखत - कनक किशोर

डॉ सुनील कुमार पाठक भोजपुरी साहित्य के एगो सुपरिचित हस्ताक्षर हवें जे गद्य, पद के साथे भोजपुरी आलोचना के क्षेत्र में आपन बरियार उपस्थिति दर्ज कइले बानीं। डॉ नीरज सिंह के कहल ह कि ' भोजपुरी आ हिंदी में संगे - संगे लगातार लिखेवाला आ लगातार बढ़िया लिखेवाला कई लोगिन में एगो महत्त्वपूर्ण नाम डा .सुनील कुमार पाठक जी के बा । उहां के नवीनतम कृति ' पढ़त - लिखत ' के प्रकाशन से भोजपुरी आलोचना के नया दिशा आ दृष्टि मिली।पाठक जी जतने बढ़िया लेखक हईं, ओतने बढ़िया आ गंभीर पाठक आ सबसे बढ़के बहुत बढ़िया आदमी आ मित्र '। ' कुछु लिख दिहीं ' भा ' कुछ लिखा जाव ' के भाव लेके पाठक जी ना चलीं। पाठक जी एगो गंभीर अध्येता हईं आ लिखबो करींला विषय वस्तु के गहराई में डूबिए के ना ओकरा विस्तारो में घूम - टहलके।' पढ़त - लिखत ' पुस्तक दू भाग में विभक्त बा । पहिला खंड में अलग - अलग विषयन प लिखल छः गो आलेख शामिल बाड़न स आ दूसरा खंड में आधुनिक भोजपुरी कविता के समृद्ध करेवाला कुछ प्रमुख रचनाकार लोगिन के प्रकाशित कृतियन पर बहुत गंभीरता से बात कइल गइल बा। पाठक जी के आलोच्य दृष्टि कवनो रचना भा विषय पर आपन विचार ना थोपले रचना के परिवेश आ परिस्थिति के मर्म के समझत ओकर सम्यक मूल्यांकन करेला जे एह संकलन से गुजरला पर महसूस होता।उहां के कहनाम बा कि ' एह किताब के सगरी समीक्षात्मक आलेखन में प्रतिपाद्य विषय भा रचनाकार के रचने के भीतर से ओकर संवेदना आ अनुभूतियन के पकड़े के प्रयास कइल गइल बा,ना कि वेद- पुराण के दर्शन आ पाश्चात्य भा पौर्वात्य पंडितन के भारी-भरकम शास्त्रीय ज्ञान- चिंतन के बल पर भोजपुरी कवियन के लोक- चेतना आ लोक- संवेदना के परखे के कोशिश कइल गइल बा। रचना के राह से गुजरे वाली आलोचने रचना के प्रकृति, ओकर संवेदना, रूचि आ रचाव- एह सगरी उपादानन के प्रति न्याय कर सकत बिया'। आगे इहो कहत बानीं कि कवनो समाज के अनुभूति आ चेतना के मूल्यांकन जब ओह समाज के मापदंडे पर होखी तबे रचनाकार के अभिव्यक्तियन के साथे न्याय हो पाई।साहित्य के परख के इहे गुण इहां के भोजपुरी आलोचना के क्षेत्र में एगो अलग पहचान देले बा। भोजपुरी साहित्य में लिखात बहुत बा बाकिर ओह अनुरूप ओह लिखलकन पर बात - बतकही नइखे हो पावत आ नाही ओकर सम्यक मूल्यांकन होखत बा। अइसना समय में पाठक जी के ' पढ़त - लिखत ' हमनी बीच आके कह रहल बा कि ई सब काल्हु के बात रहे अब पढ़ि के गंभीरता से लिखातो बा।हमरा त ' पढ़त - लिखत ' पढ़ि के भोजपुरी के अनेक विषयन पर बतकही आ कुछ सेसर कृतियन के परख बड़ी सुखद लागल,आत्मीक रसो मिलल।

भोजपुरी आलोचना काल्हु आजु आ काल्हु

आपन कहनाम में पाठक जी भोजपुरी आलोचना पर गम्भीराह पड़ताल कइले बानीं गहराई में जाके। सांच कहीं त एकरा के भोजपुरी आलोचना के संक्षिप्त इतिहास के संज्ञा देल जाय त कवनो अतिसंयोक्ति ना होखी। उहाँ के भोजपुरी आलोचना/समीक्षा में का बा? का ओकर आधार होखे के चाहीं? आगे का करे के जरूरत बा? एह सब बिन्दुयन पर आपन बिचार खुल के रखले बानीं।। निश्चित रूप से ऊ बिचार जोग बा आ भोजपुरी आलोचना के आपन राह बनावे में मददगार साबित होखी ई कहल जा सकेला। हमरा समझ से एकरा के तनी अउर विस्तार देके ' भोजपुरी आलोचना के सफर ' भा ' भोजपुरी आलोचना के यथार्थ ' शीर्षक से एगो अलगे आलेख के रूप में संकलित रहित त भोजपुरी आलोचना के हाल - फिलहाल के काम भा छूटल - फटकल सब समेटा जाइत। कुल मिलाके आपन कहनाम के बहाने भोजपुरी आलोचना काल्हु,आजु आ काल्हु के सुंदर आ विचारणीय प्रस्तुति बा पाठक जी के आपन कहनाम। भोजपुरी आलोचना के साथे आपन कहनाम में भोजपुरी साहित्य के इतिहासो पर संक्षिप्त में बात कइले बानीं आ एह बात के स्वीकार कइले बानीं कि ' जे एगो सच्चाई बा कि भोजपुरी साहित्य के सुव्यवस्थित इतिहास - लेखन के काम अभियो अपना सिरिजनहार के बाटे जोहत दिख रहल बा '।बात ई शत् प्रतिशत सही बा। भोजपुरी समीक्षा आ भोजपुरी इतिहास लेखन के आगे के राह पर बिचार करे खातिर आपन कुछ सुझावो देले बानीं। डॉ पाठक के कथन ह कि ' हिन्दी आ भोजपुरी में ई संतुलन आगहूं बनल रही। बात तरफदारी के आई तऽ बचवा माई के अँचरे के मोल चुकाई '। पाठक जी के ई कथन उहां के भोजपुरी प्रेम आ भोजपुरी के प्रति समर्पण के द्योतक बा।

लोकगंधी विषयन प सार्थक बतकही


खंड ' क ' में छव गो लोक से जुड़ल लोक रस - राग में डूबल विषय पर मजीगर आ सार्थक बतकही कइल गइल बा।' मातृभाषा के सवाल ' में माई, मातृभूमि आ मातृभाषा के महता बतावत मातृभाषा के सवाल पर बड़ा गहन बिचार कइल गइल बा। रचनाकार के कहल कि ' अपना मतारी, मातृभूमि आ मातृभाषा से अथोर नेह - छोह आ श्रद्धा रखेवाला मनइये ' विश्वात्मा ' के सच्चा पुजारी हो सकत बा '।लेखक के ई कथन लोक से जुड़ाव के परिचायक बा।एह आलेख में लेखक खाली आपन मातृभाषा के पक्ष में कतहीं खाड़ नइखे लउकत ऊ बात समष्टि के आ लोक हित आ साहित्य हित के करत नजर आवत बाड़न। लोक भाषा के विकास से हिन्दिओ के ताकत बढ़ी एकर प्रमाण देवे के जरूरत नइखे।आज हिन्दी के जे स्वरूप बा ऊ खुद ओकर गवाह बा।' तूहूं बढ़ऽ, फूला - फरऽ आ हमरो के जीये दऽ' के लोक सिद्धांत अपनवले पर हिन्दी आ लोक भाषा दूनों के भलाई बा आ लड़ाई से दूनों दल के हानी होला ई जानल बा। भाषा के बहाने लेखक लोप होत जा रहल लोकभाषा आ लोकभाषा के देश के एक सुत्र में बान्ह के राखे क्षमता पर सार्थक बतकही कइले बाड़न।

' बाबा दुलहा बने हैं ' में नीलहा आन्दोलन जे ' चम्पारण सत्याग्रह ' के नाम से जानल जाला के प्रभाव आ ओकरा से जुड़ल प्रसंगन आ स्वतंत्रता आन्दोलन के दुल्हा गाँधी बाबा से जुड़ल भोजपुरी लोकगीतन के बड़ा रोचक आ यथार्थ परक वर्णन कइल गइल बा।नीलहन के अत्याचार, चरखा के महत्व, विदेशी कपड़न के वहिष्कार, आदि से जुड़ल सुराज के अलख जगाने वाला लोकगीतन के जरिए ' चम्पारण सत्याग्रह ' के सफलता आ संदेशन के समझे, परखे आ मूल्यांकन के सार्थक प्रयास कइल गइल बा।

1857 विद्रोह के अस्सी बरिस के महान योद्धा,कुशल प्रशासक आ सच्चा देश भक्त बाबू कुंवर सिंह के गौरव गाथा भोजपुरी लोकगीतन आ साहित्य में मिलेला। ओहि गौरव गाथा पर विस्तार से बात लेखक ' धन भोजपुर धन भोजपुरिया पानी, अस्सी बरिस में चढ़ेला जवानी ' में कइले बानीं। होली, जोगीरा, चैता, बिरहा, पचरा, धोबी गीत,पाँवरिया गीत, मानर, पँवारा, प्रकृति गीत, खेल गीत, लोकगीत आ लोकगाथा में कुंवर शौर्य गाथा के गीतन के परितोख के साथ रखत आधुनिक भोजपुरी साहित्य में कुंवर सिंह के चरितनायक बनाके प्रबंध काव्य आ नाटकन के बढ़िया जानकारी बड़ा विस्तृत रूप में प्रस्तुत कइल गइल बा एह आलेख में। भोजपुरी क्षेत्र के स्वातंत्र्य चेतना पर कुंवर सिंह के नायक बना बात करत लेखक के एगो प्रस्ताव बा कि भोजपुरी क्षेत्र के विरासत, ऐतिहासिक परम्परा, सकारात्मक प्रतिरोधी संस्कृति के पुनर्मूल्यांकन होखे के चाहीं। निश्चित रूप से एह तरह के खोज - खबर लेला से, शोध कइला से माटी में दबल ढेर सांच सामने आई एह में दू मत नइखे।

' एही ठैंया झुलनी हेराइल हो रामा ' में रचनाकार ' चइता ' भा ' चैती ' लोकगीत पर सारगर्भित बतकही कइले बानीं। लेखक के कहनाम,लोकगीतन के जेतना ले विभेद बा ओमें' चैता ' ले जादा मधुरता, सरसता, कोमलता, आ भावप्रणवता कवनो दोसर शैली में ना मिली। ' चैती ' के सरसता में घुलल मानव मन के जवन तरलता,उछाह, बाँकपन, भंगिमा आ वियोगजनित विरह भावना बा,ऊ कहीं ना मिली '। वसंत/ मधुमास के प्रोढ़ महीना चइत जेह में मादकता चरम पर रहेला,विरह सहले ना सहाय एही से उत्पाती के संज्ञा देल गइल बा। उत्पाती के नू लक्षण ह कि केकरो झुलनी त केकरो नथिया हेरा जाता आ मादकता अइसन की केहू चइत के झकोर देवे पर राजी नइखे होत।खाली सिंगार आ विरह के भाव चइता अपना में ना समेटले रहेला, ऊ अपना में पापी देवरा, सुघरी ननदिया, भउजी के छेड़छाड़, राधा कृष्ण के मनुहार, राम जन्म के उल्लास, निर्गुण सगुण के बखान, भक्ति भावना आ गार्हस्थिक जीवन के हास - परिहास समेटले रहेला।पाठक जी के एह आलेख से गुजरला पर चइता के ई सब रूप देखे के मिलत बा साथे चइता/चैती के विभेद से अवगत होखे के पाठक के मिलत बा।चइता के भावाभिव्यंजना में लाक्षणिकता आ बिम्बात्मकता के भरमार रहेला जे आलेख में उद्धृत चइता गीतन के देखे से स्पष्ट बा। ' बासमती चाँदनी उबीछ दीं त कइसे ' में रचनाकार भोजपुरी में नवगीत के सिरिजना पर बात कइले बाड़ें। गीत के शिल्प पर लोकधुन,लोक छंद आ लोक कला के असर रहेला। गीत करवट बदल नवगीत के रूप में आवे के क्रम में जवन जतरा कइलस, हिन्दी नवगीत के सफलता के प्रभाव, हिन्दी नवगीत से अलगाव के बिन्दु, भोजपुरी नवगीत के सफर आ ओकर सफर में सहायक रचनाकारन के साथे भोजपुरी नवगीत के समृद्धता पर गहन आ शोध परक तथ्य एह आलेख में रचनाकार बड़ी सटीक ढंग से प्रस्तुत करे में सफल बाड़ें।ई निश्चित रूप से पाठक जी के पढ़त - लिखत फार्मूला के प्रतिफल ह।

' कोरोजीवी कविता भोजपुरी के ' में लेखक कोरोना काल के संबंधित भोजपुरी काव्य संसार पर बढ़िया विमर्श कइले बानीं। भोजपुरी साहित्य कोरोना काल के नीमन आ बाउर दूनों परिस्थिति के गवाह रहल बा।रचनो नीमन आ बाउर दूनों भइल बा।समीक्षक आलेख में स्पष्ट कर देले बाड़ें कि विषय पर बिचार करत खा खाली कोरोना पर लिखल कविते पर ना करोना मानवेत्तर प्रकृति पर पड़ रहल सब प्रभाव आ ओह से जुड़ल संवेदना आ अनुभूतियन के अपना अध्ययन में शामिल कइले बाड़ें। कोरोजीवी कविता के मतलब कोरोना पर समग्रता में काल चिंतन करे वाली कविता से लिहल गइल बा। आलेख में दूगो कमी नजर आवत बा।पहिलका की आलेख में कोरोना काल के भोजपुरी साहित्य के कोरोजीवी काव्यन के समग्रता से ना समेट के टापा - टोंइया उठा के बिचार कइल गइल बा। मुख्यतः खाली भोजपुरी जंक्शन के कोरोना विशेषांक पर केंद्रित रह के।दूसर की आलेख पुरान बुझात बा जवना में कोरोना के आफ्टर इफेक्ट्स में आवेवाला समय आ समाज के जवन रूप रंग के देखावल गइल बा, कल्पना कइल गइल बा ऊ कागज पर सुंदर जरूर लागत बा बाकिर आजु के समय के सच्चाई से दूर बा। कवि के कल्पना खातिर ऊ सही आ साकारात्मक कहल जाई बाकिर आलोचक आ समीक्षक खातिर ना।एह खंड के दूसर आलेखन के अपेक्षा ई आलेख निश्चित रूप से कमजोर लागत बा।कोरोजीवी कविता के व्यापक फलक आ संरचना में विविधता के देखत समीक्षक के बिचार के सपाट बयानी त ना कहल जाई बाकिर आलेख खातिर तनी अउर विषय वस्तु के गहराई में जाके मोती इक्कठा होखित त विषय पर बढ़िया बतकही पढ़े के मिलित।

बड़ कठिन कर्म आलोचना जानीं

समीक्षा/ आलोचना एगो कठिन काम ह। रचना के चहुंओर रचनाकार के उपस्थिति कवना रूप में, केह तरह से आ कहाँ - कहाँ हो सकेला के सारे रचना के मर्म समझल एगो कठिन काम ह। आलोचक के एह दुरूह कार्य के करे खातिर लेखक के मन पढ़े के,ओह परिवेश आ राह के समझहीं के ना पड़े रचना कर्म के विभिन्न पड़ाव, लेखक के जीवन अनुभव के दायरा के भूगोल के फैलाव, रचना के सामाजिक यथार्थ के पड़ताल गहराई से करे के पड़ेला।तब जाके आलोचक रचना के बढ़िया से समझे के नजदीक पहुंच पावेला। अब सवाल उठत बा कि अइसन कठिन आ मेहनत के काम आलोचक काहे खातिर करे? हमरा बुझात बा अइसन काम करे से आलोचक आपन रचनात्मक दुनिया के त आकलन करबे करेला साथे ओकरा के रचनात्मक दुनिया के नया चीजन से अवगत होखे के मौका मिलला। पाठक जी जस आलोचक जे खुद लेखन के दुनिया में गहिरा पैंठ राखेला के एह आलोचना कर्म से रचनात्मक परिपक्वता तनी अउर समृद्ध हो जाला।अब बुझाइल ' पढ़त - लिखत ' के रहस्य। एह पुस्तक के खंड ' ख ' में पाठक जी भोजपुरी के पनरह गो वरिष्ठ आ पुरोधा रचनाकार के व्यक्तित्व आ कृतित्व भा चयनित पुस्तक पर आपन गहिर समीक्षात्मक नजर डालि परोसले बानीं। भोजपुरी माटी, भोजपुरी संस्कृति आ भोजपुरी भाषा के सपूत डॉ रामविचार पाण्डेय जी के व्यक्तित्व आ कृतित्व पर सारगर्भित आलेख ' बिसरइह जनि जब चलि जाईं ' में रखल गइल बा।एह आलेख में पाण्डेय जी के अकूत कविताई के बहुत सुंदर परिचय प्रस्तुत कइल गइल बा। अनिरुद्ध जी भोजपुरी साहित्य संसार के एगो अद्भुत गीतकार रहलीं। ' चहकत प्रान मधुप मन डोलत ' में लेखक अनिरुद्ध जी के भोजपुरी गीतन के काव्य गरिमा आ शिल्पगत निपुणता, बहुरंगी विविधता पर आ गीतन के प्रकृति पर जमके बतकही कइले बानीं जेकरा में कवि के सामाजिक बोध आ प्रकृति से लगाव के बड़ा प्रखर रूप देखे के मिलत बा। ' हम त राही हईं, रूकीं कबले ' में पाठक जी के संस्मरणात्मक आलेख ह।एह आलेख में अपना संस्मरण के बहाने भोजपुरी आंदोलन आ रचनाधर्मिता दूनों एक साथे गंभीरता से साधेवाला पुरोधा पाण्डेय कपिल के काम करे के तरीका आ भोजपुरी आंदोलन में उहां के सक्रियता प विशेष प्रकाश डलले बानीं। ' पढ़त - लिखत रहीं,गुनत - मथत रहीं ' में रचनाकार भोजपुरी पुरोधा अक्षयवर दिक्षित के कृतित्व पर संक्षेप में बात रखत उहां के प्रथम कृति ' अङऊँ ' में शामिल एगारह गो कविता आ मुक्तक पर आपन विचार विस्तृत रूप से रखले बानीं।

' सूरज के माथा से चुअल धूप के पसेना ' आलेख में लेखक प्रो. ब्रजकिशोर जी से जुड़ल अपना संस्मरण के रखत उहां के कृति ' जोत कुहासा के ' आ ' बूंद भर सावन ' प बड़ी विस्तार से बतकही कइले बानीं। सांचे कविता आ ओकर रचयिता कवि के काव्य निपुणता के अस्वाद पाठक के समक्ष बढ़िया से रखे में रचनाकार सफल रहल बाड़न। भोजपुरी पुरोधा चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह ' आरोही ' के कविता संग्रह ' माटी कहे पुकार ' पर लेखक गंभीर बतकही विस्तार से कइले बाड़ें आलेख ' तन के दीप नेह के बाती/ जरी देस खातिर दिन राती ' में। चौधरी जी के कवितन में कल्पना से अधिका यथार्थ के आ भावना से अधिका विचार के प्रमुखता, प्रकृति वर्णन में चित्रात्मकता आ मानवीकरण अउर जीवन के संघर्ष आ चुनौतियन के झलक मिलत बा आलेख के उद्धृत कवितन में। सूर्यदेव पाठक ' पराग ' साहित्य में पांडित्य आ आचार्यत्व के साथे लौकिक जीवन के सच्चाई आ अनगढ़ सौन्दर्य के प्रतिमूर्ति हईं जे हिन्दी, संस्कृत आ भोजपुरी के संगम में डूबकी लगा मोती चुनेवाला व्यक्तित्व के रूप में आजुओ माई भाषा के भंडार भर रहल बानीं।' विचार के झोरी जथारत के जमीन पर ' में लेखक उनके साहित्यिक योगदान पर बात करत उहां के भोजपुरी काव्य के मूल्यांकन दिसाई सार्थक प्रयास कइले बानीं। पराग जी के भोजपुरी काव्य संसार पर सांगोपांग विमर्श एह आलेख में एक जगह देखे के मिलत बा। ' सुर में सब सुर ' में ' तैयब हुसैन पीड़ित ' के दूगो कृति ' सुर में सब सुर ' आ ' अनसोहातो ' में संग्रहीत काव्य पर गहिरगर विमर्श कइल गइल बा। आलेख में उद्धृत कवितन आ विमर्श में आइल बिन्दू सब ई प्रमाणित करे में सफल बा कि तैयब देश, समाज आ समय से जुड़ल एगो जागरूक कवि हवें जेकर कविता अपना में आम मनई के जिनिगी के सुख - दुख, संघर्ष आ प्रतिरोध समेटले रहेला।

एही तरे ' कवि! तू धरती राग लिखऽ ' अशोक द्विवेदी के कृतित्व पर बात करत उहां के कविता संग्रह ' कुछ आग कुछ राग, ' खरकत जमीन आ बजरत आसमान ' में ब्रजभूषण मिश्र जी के काव्य संग्रह ' खरकत जमीन, बजरत आसमान ' , ' गजल जौहर के जिनगी हऽ/ ग़ज़ल जिनगी के हऽ जौहर, में जौहर शफियाबादी के कृति ' रंगमहल ' , ' कविता त छछनत मन के अंजोर हऽ' में भगवती प्रसाद द्विवेदी जी के ' जौ - जौ आगर ' , ' नया जमाना के सोच सगरी/ गजल के तेवर पलट रहल बा ' में तंग इनायतपुरी के गजल संग्रह ' सियासत में गजब बा नाम राउर ' , ' जतिए भइल जहमतिया/ ना ढोअले ढोआला इजतिया ' में बलभद्र के ' कब कहीं हम ' आ अंत में ' कविता के अरज - निहोरा/ ' अरज निहोरा ' के कविता ' में प्रकाश उदय के ' अरज निहोरा ' के केन्द्र में रखिके संबंधित कविता संग्रहन पर त बतकही विस्तार से कइल गइल बा साथे ओह संग्रह के कवितन के शैली, भाषा, तकनीक, काव्य में उपलब्ध प्राण तत्व, कविता के समय, समाज आ लोक जुड़ाव, जीवन संघर्ष, राजनीतिक आ वाद के प्रभाव, गाँव , घर, माटी से जुड़ाव, प्रकृति वर्णन, कविता के निपुणता के मानक मापदंड पर कसावट आदि पर गंभीरता से बिचार आलोचक एह आलेखन में कइले बाड़ें।एह सब के अतिरिक्त सब आलेख में कविता के गुणवत्ता के हिन्दी कवितन से तुलनात्मक अध्ययन समीक्षक रखले बाड़ें जे समीक्षा के वजनदार बनावे के साथे इहो बता रहल बा कि आजु के भोजपुरी कविता कतना पानी में बा आ अगर कमी बा त दूर कइसे होखी।

सुघर आलोचक के सुघर कृति

आलोचना/ समीक्षा एगो कठिन काम ह एह ओर बात ऊपर राखल गइल बा। बाकिर तबहूं फेर से कहल चाहब कि आजु के दौर में आलोचक के जिम्मेदारी पहिले के तुलना में ढेर बढ़ गइल बा। साहित्य में आइल गिरावट के चलते आलोचक के जिम्मा खाली विवेचना - विश्लेषण के काम नइखे रह गइल, रचना के छांट - बांट के कामो देखे के पड़त बा।पाठक जी जस सजग आ प्रबुद्ध आलोचक एह संकलन में बखूबी एह काम के अंजाम देले बाड़ें।आजु के दौर में जहाँ आलोचना संबंध - संपर्क के गंभीर बीमारी से ग्रसित होके संबंध - संपर्क के लेखकन के रचनन में सब खूबी खोजे में व्यस्त बा ओहिजे ' पढ़त - लिखत ' के माध्यम से निपुण भोजपुरी साहित्य(कविता )के खोज भोजपुरी हित के बात करत पाठक जी के उपस्थित देखि सुघर आलोचक के संज्ञा देल कवनो गलत ना होखी। ।आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कहले बानीं कि आजु के आलोचक त पुस्तक के बिना पढ़ले ओकर आलोचना कर देला उहो कि त्रैलोक्यविकंपित ! ' पढ़त - लिखत ' में पाठक जी के आलेखन से गुजरला पर बुझात बा कि पाठक जी खाली पढ़िए के ना ओकरा के मथियो के विश्लेषण कइले बाड़ें।इहो कहल गइल बा कि जे आलोचना कवनो राजनीतिक मतवाद से प्रेरित होला ऊ साहित्य ना होखे, राजनीति होला। पाठक जी के समीक्षा के नजरिया कवनो वाद से प्रभावित नइखे लउकत एकर गवाह संकलन खुद बा। संकलन में संकलित आलेखन खातिर चयनित कवि भा चयनित पुस्तक के बहाने पाठक जी भोजपुरी काव्य संसार के दसा - दिसाई एगो यथार्थ परक विश्लेषण प्रस्तुत कइले बाड़ें जहाँ जगहा मिलल बा जेकरा से आम पाठक के भोजपुरी कविताई का रहल बा आ आजु का का हो रहल बा के सुघर जानकारी मिलत बा। संकलन के भाषा सरल आ ग्राह्य बा। आलोचना/ समीक्षा में पाठक के रस के अभाव लउकेला बाकिर पाठक जी के एह संकलन से गुजरला में कतहीं मन उबत नइखे। संकलित समीक्षन में पुरजोर पाठनीयता बा त ओकर कारण भाषागत बहुस्तरीयता बा आ इहे संकलन के सुघरता बा।पाठनीयता कवनो रचना के सफलता के विशेष मानक होला,ई संकलन एहू दृष्टिकोण से सफल बा। भोजपुरी साहित्य में एह तरह से पढ़त - लिखत चलला से भोजपुरी समृद्ध होखी एह में दू मत नइखे। पाठक जी के एह संग्रह के पुरजोर स्वागत होखे के चाहीं भोजपुरी जगत में।एह संकलन के देखि त बोलहीं के पड़ी ' जय भोजपुरी '।

पुस्तक के नाम - पढ़त - लिखत

लेखक - सुनील कुमार पाठक

विधा - भोजपुरी समीक्षा

प्रकाशक - सर्व भाषा ट्रस्ट,नई दिल्ली

पृष्ठ संख्या - २४८

मूल्य - सजिल्द - ४९९/

अजिल्द - २९९
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राँची, झारखंड
चलभाष - 910224653 







मैना: वर्ष - 11 अंक - 122 (फरवरी-मई 2024)

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