रामचरितमानस का कसवटी पर लव-कुश कांड के प्रामाणिकता - डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

हमरा बचपन में दूइ गो ज्वाला प्रसाद जी के टीका वाला रामचरितमानस पढ़े के मिलल बा, जवना में लव-कुश कांड त रहबे कइल, छेपको कहानी बहुत पढ़े के मिलल। अपना समय में मुंबई से प्रकाशित ज्वाला प्रसाद जी के टीका वाला रामचरितमानस सबसे अधिक प्रसिद्ध आ लोकप्रिय रहे। बाद में गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित रामचरितमानस के सस्ता संस्करण गुटका से बड़हन रूप में घरे-घरे पहुँचे लागल आ अतना लोकप्रिय भइल कि बाकी प्रकाशनन के किताबि आम आदमी का स्मरण से बहरियाए लागलि आ आजु चरचा से बाहर हो गइली सन।

आजु भलहीं सर्वाधिक प्रामाणिक संस्करण का रूप में हमनी भीरी गीताप्रेस के पहुँच घर-घर तक हो गइल बा बाकिर एहू साँच के नकारल नइखे जा सकत कि पहिले का संस्करणन के प्रभाव कमे समय में बहुत परि गइल रहे।

अक्सरहाँ लोक-चर्चा का एह तरह के विषय लोगन का जबान प होला आउर साइत ईहे कारन बा कि लवकुश कांड नियन अलगा से जोरल गइल कहानियो दूइ से तिनिए शतक में तुलसी का रामचरितमानसो में जुड़ गइल आ लोकप्रियो हो गइल। जइसे,
१. एगो साधारन नागरिक अपना घर में सीता जी के परतोख देत अपना मेहरारू पर संदेह करत रहे। राम जी ई सुनले त सीता जी के राज से निकालि दिहले।
२. सीता जी जंगल चलि गइली अउर जंगले में ऋषि वाल्मीकि का आश्रम में उनका दूनो पुत्रन- लव आ कुश के जनम भइल।
३. राम अश्वमेध यज्ञ कइले आ ओह यज्ञ में सीता जी उनका सङे ना बइठल रहली, बलुक एकरा खातिर ऊ सीता जी के सोना के मुरती बनववले।
४. जब लव-कुश बड़ हो गइलन, रामकथा गावे में लोकप्रियता हासिल कइलन, तब राम जी उनका के अपना दरबार में बुलवलन, ओह लोगन का मुँह से राम-कथा सुनलन अउर तब जाके उनुका रोमांच भइल आ बाद में उनका पता चलल कि ई दूनों लइका उनकरे बेटा हवन। सीता जी अपना पवित्रता के परीक्षा देबे खातिर धरती में समा गइली।

सीता जी के परित्याग आ उहाँके धरती में समा गइला के कहानी राम कथा के सर्वाधिक संवेदनशील अंश बाटे, जवना के सच्चाई लोक में बहुत फइलला का बादो आजुओ विवादास्पद बा। लव-कुश कांड के कथा वाल्मीकि रामायण का बालकांड आ उत्तरकांड का सङहीं, महाभारत, कालिदास का 'रघुवंश' महाकाव्य का सङे पद्मपुराण में भी मिलता। आ एह सभ का कथानक में समानता का सङे विषमता भी मिलता।

वाल्मीकि रामायण का अनुसार श्री राम के दुगो जुड़वा पुत्र लव-कुश के जन्म वाल्मीकि ऋषि का आश्रम में भइल। एकर जानकारी शत्रुघ्न जी के रहे। बाद में जब राम अश्वमेध यज्ञ करे लगले तब महर्षि वाल्मीकि लव-कुश के राम-कथा के गायन करे के निर्देश दिहले। यज्ञ के घोड़ा छोड़ला आ श्रीराम का सेना का सङे लव-कुश का युद्ध के वर्णन एहिजा नइखे मिलत। बाद में श्रीराम का आदेशानुसार सीता जी भी अपना पवित्रता के सिद्ध करे खातिर धरती में समा गइली आ एकरा बाद लव-कुश श्री राम का सङे रहे लगलन।

पद्म पुराण का कथा में पहिल बार अश्वमेध यज्ञ के घोड़ा धइ लिहला का कारन श्रीराम का सेना से लव-कुश युद्ध करतारन। ओह युद्ध में जब लव कुश हनुमान आ सुग्रीव के बंदी बनाके आश्रम लौटतारन त सीता जी लव-कुश के बतावतारी कि श्री रामे उनुकर पिता हवन। ऊ हनुमान आ सुग्रीव के कैद से आजाद कर देतारी, बाद में ऊ लोग राम के घोड़ा लौटा देता। एहिजो श्रीराम द्वारा सीताजी बोलावल जातारी बाकिर सीताजी धरती में समाहित नइखी होत बलुक ऊ श्री राम का सङे अयोध्या में रहते तीन अश्वमेध यज्ञ में भी शामिल होतारी।

लोक में सर्वाधिक प्रचलित तुलसी का रामचरितमानस में भी लव-कुश के श्रीराम का सेना का सङे युद्ध के वर्णन नइखे। ओहिजा अश्वमेध यज्ञ खातिर यज्ञ का घोड़ा के छोड़ला आ पकड़ला के कहानी नइखे मिलत। हँ, ई चर्चा जरूर मिलत बा कि सीता जी लव आ कुश नाँव के दू गो लइकन के माई रहली। बाकिर लोकापवाद का डर से सीता जी के परित्याग आ धरती में उनका समाहित होखे के कहानी रामचरितमानस में नइखे मिलत।

बिसवास जोग नइखे लागत

वाल्मीकि रामायण का उत्तरकांड से जतना जानकारी मिलता, ऊ बिसवास जोग नइखे लागत। पता चलता कि लव-कुश के किशोर भइला का बाद ऊहन लोग का मुँह से राम-कथा सुनला का बादे राम के पता चलल कि ऊ दूनों राम के बेटा हवन जबकि ओह दूनों लोगन का जनम के जानकारी शत्रुघ्न जी के पहिलहीं से रहे। का अइसन हो सकता कि राम जी का अपना भाइयन का बीचे छिपाव आ दुराव रहे?
ईहो कइसे हो सकता कि राम जी का राजा भइला का बाद के उनका अंश के वीरता, मर्यादा, चरित्र अउर संस्कृति का संगीत-कला संपन्न व्यक्तित्व वाल्मीकि जी का लेखनी के प्रभावित ना कइले होखे? ई कवनो साधारन बात रहे का?
राम बाली आ रावण के बध का बाद ओह लोगन के भाई- सुग्रीव आ विभीषण के राजगद्दी दे दिहले, त बिना सोचले-समझले का ?
जेकरा खातिर भूखल-पियासल जंगल-जंगल भटकत रहन, जेकरा खातिर रावण जइसन ताकतवर राजा से बानर-भालू के सेना बनाके जुद्ध कइलन, ओह राम के चरित्र अतना कमजोर रहे, ऊ कान के अतना कमजोर रहन कि केहूँ का शक कइला पर ऊ अपना मेहरारू के राज से निकालि दिहले? एकरा से मर्यादा पुरुषोत्तम राम का मर्यादा में बट्टा नइखे लागत का ?
लोग त कहेला कि आदमी प्रेम में आन्हर हो जाला। राम के प्रेम अतना कमजोर रहे कि जवना सीता जी के बियाह से पहिलहीं देखिके मोहा गइल रहन माने उनुका प्रेम में आ गइल रहन, उनुकर प्रेम अतना कमजोर रहे कि तनिका सा शक पर टूट गइल ?

जब १००-२०० साल में प्रक्षिप्त अंशन के भरमार लग जाता त हजारन बरिस पहिले का किताबिन में ओकर कतना संख्या रहल होई, एकर खाली अनुमाने कइल जा सकता, ओहके खोजिके निकालल त आसान नइखे। बीच-बीच में विद्वान लोग एकर बहुत प्रयत्न कइलन बाकिर काम भर सफलता कहाँ मिलल ?

कसवटी पर साँच के परीक्षा

तब सवाल ई उठत बा कि सत्य के पता कइसे लगावल जाउ। सचाई त ईहे बा कि कसवटिए सोना आ पीतर के भेद करे में समर्थ होखेले। व्यक्ति के चरित्रे ओकर कसवटी होखेला। विषम परिस्थिति में भी जे धर्म के राहि के ना छोड़े, तनिका स्वार्थवश भा भयवश जे अपना जिम्मेदारी से मुँह ना मोड़ ले, दिशाहीन ना हो जाए, ऊहे चरित्रवान होला। राम अइसने चरित्रवान आ एगो असाधारण व्यक्तित्व हवन, जे अपना चरित्र का दम पर अइसन जस पवले कि आदर्श शासन के मतलबे रामराज्य मानल जाला। एहसे नीमन त ईहे होई कि हमनी का राम जी का चरित्र आ स्वभाव का संदर्भ में परखीं जा कि का उहाँका सीता जी के परित्याग कर सकतानी।

अब सवाल ई उठता कि एह बात खातिर कवना रामायण के आधार बनावल जाउ। एकरा उत्तर में हम कहल चाहबि कि तुलसीकृत 'रामचरितमानस' ही वर्तमान में प्राप्त सबसे नवीन अउर बाद के अधिक प्रामाणिक ग्रंथ बाटे। गोस्वामी तुलसीदास वेद-पुराण आदि के पर्याप्त अध्ययन कइले रहन। जाहिर बा, ऊ अपना समय तक के प्राप्त प्रामाणिक आ चर्चित पुस्तकन के अध्ययन त जरूर कइले होइहें। वाल्मीकि रामायण तक पहुँचल एहसे सही नहीं लागत काहेंकि ढेर दिन पहिले के भइला का कारन ओहमें प्रक्षिप्त अंश बहुत ज्यादा हो गइल होई।

तुलसी के राम सीता जी से अपरिमित प्रेम करेलन।

जब राम हनुमान जी के सीता जी से मिलके सुनावेवाला संदेश प्रदान करतारन त विश्व साहित्य में ओह चौपाई के जोड़ नइखे मिलत। प्रेम के मूर्त छवि एहसे कोमल आ अनमोल होइए नइखे सकत।

तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा।
जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं।
जानु प्रीति रसु एतनेहि माहीं॥
(रामचरितमानस, सुंदरकांड)

(हे प्रिय ! हमरा आ तोहरा प्रेम के तत्त्व (रहस्य) खाली एगो हमार मने जानेला अउर ऊ मन हमेशा तहरे जरी रहेला। बस, हमरा प्रेम के सार अतने में बूझि ल।)

प्रेम के ई संदेश ऊ राम देले बाड़न, जे एक पत्नीव्रतधारी हवन, जे राजा होते हुए भी एक पत्नीव्रत धारण कइलन। जेकर पत्नी वनवास काल में जाड़ा, गरमी आ बरसात के हर तरह के कष्ट सहत उनकर साथ दिहली, जवना पत्नी खातिर ऊ समुद्र पर पुल बान्हि दिहले, जवना पत्नी के खोजे आ ले आवे खातिर राम जवने प्राप्त छोट-मोट साधन रहे, बंदर-भालू के सेना जुटाके रावण पर चढ़ाई कइ दिहले, ई ना सोचले कि ऊ कमजोर परिहें कि हारि जइहें। अइसन प्रेमी, अइसन चरित्रवान राम कवनो एगो साधारण नागरिक का अपना घर में अपनी पत्नी पर कवनो गाभी मरला पर संदेह कइसे कर सकता भा लोकापवाद से डेराके का अइसन कठोर निर्णय ले सकतारन ? स्पष्ट बा कि राम के चरित्र का कसौटी पर ई प्रसंग बिल्कुल गलत सिद्ध होत बा।

अब रामचरितमानस का अंतर्साक्ष्य पर तनिका बिचार कइल जाउ। सबसे पहले रामचरितमानस का रामराज्य पर एगो नजर डालल जाउ।

बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि तप जेतनेहि काज।
मागें बारिद देहिं जल रामचंद्र कें राज॥
कोटिन्ह बाजिमेध प्रभु कीन्हे।
दान अनेक द्विजन्ह कहँ दीन्हे॥
श्रुति पथ पालक धर्म धुरंधर।
गुनातीत अरु भोग पुरंदर॥
पति अनुकूल सदा रह सीता।
सोभा खानि सुसील बिनीता॥
जानति कृपासिंधु प्रभुताई॥
सेवति चरन कमल मन लाई॥
जद्यपि गृहँ सेवक सेवकिनी।
बिपुल सदा सेवा बिधि गुनी॥
निज कर गृह परिचरजा करई।
रामचंद्र आयसु अनुसरई॥
जेहि बिधि कृपासिंधु सुख मानइ।
सोइ कर श्री सेवा बिधि जानइ॥
कौसल्यादि सासु गृह माहीं।
सेवइ सबन्हि मान मद नाहीं॥
उमा रमा ब्रह्मादि बंदिता।
जगदंबा संततमनिंदिता॥
जासु कृपा कटाच्छु सुर चाहत चितव न सोइ।
राम पदारबिंद रति करति सुभावहि खोइ॥


सेवहिं सानकूल सब भाई।
राम चरन रति अति अधिकाई॥
प्रभु मुख कमल बिलोकत रहहीं।
कबहुँ कृपाल हमहि कछु कहहीं॥
राम करहिं भ्रातन्ह पर प्रीती।
नाना भाँति सिखावहिं नीती॥
हरषित रहहिं नगर के लोगा।
करहिं सकल सुर दुर्लभ भोगा॥
अहनिसि बिधिहि मनावत रहहीं।
श्री रघुबीर चरन रति चहहीं॥
दुइ सुत सुंदर सीताँ जाए।
लव कुस बेद पुरानन्ह गाए॥
दोउ बिजई बिनई गुन मंदिर।
हरि प्रतिबिंब मनहुँ अति सुंदर॥
दुइ दुइ सुत सब भ्रातन्ह केरे।
भए रूप गुन सील घनेरे॥
(रामचरितमानस, उत्तरकांड)


सीता जी के द्वारा घर के सभ सेवा अपने हाथ से कइल गइल आ एकमात्र श्री रामचंद्र जी का चरणारविंद में प्रेम राखल, सीता जी के लव आ कुश जइसन विजयी-विनयी दू गो पुत्रन के भइल अउर श्री राम का सभे भाइयन के दू-दू गो पुत्रन के भइल ई स्पष्ट करत बा कि श्रीराम के राज्याभिषेक, लव आ कुश- दूनो बच्चन के जन्म अउर उनका बड़ भइला तक सीता जी श्रीराम के साथ अयोध्ये में रहीं।

कुल मिलाके, सीता-निर्वासन के कथा हमरा कल्पित अउर प्रक्षिप्तांश लागतिया आ हम एहके प्रामाणिक नइखीं मानत। एहमें कवनो संदेह नइखे कि ई कथा लोकचरित्र का सुभाव के अत्यंत निकट बिया आ एहीसे प्रामाणिकता का हद तक चर्चित भइल, बाकिर मर्यादा पुरुषोत्तम राम का चरित्र अउर गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस का आलोक में एकरा के आंशिक रूप में भी प्रामाणिक नइखे मानल जा सकत। एह तरह से, हम रामायण का 'लव-कुश कांड' के रामकथा के यथार्थ ना मानिके ह्रासोन्मुख मूल्यन के समय का विकृत मनोदशा के यथार्थ मानतानी।
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लेखक परिचय:-
जन्म: बड़कागाँव, सबल पट्टी, थाना- सिमरी
बक्सर-802118, बिहार
जनम दिन: 28 फरवरी, 1962
पिता: आचार्य पं. काशीनाथ मिश्र
संप्रति: केंद्र सरकार का एगो स्वायत्तशासी संस्थान में।
संपादन: संसृति
रचना: ‘कौन सा उपहार दूँ प्रिय’ अउरी ‘फगुआ के पहरा’
संपर्क :सरकारी प्राइमरी स्कूल, पिपरा के निकट
देवनगर, पोल नं. 28, शाहपुर-पिपरा रोड,
पो. - मनोहरपुर कछुआरा
पटना - 800030
मोबाइल 09831649817 
ई-मेल: rmishravimal@gmail.com

मैना: वर्ष - 10 अंक - 121 (जनवरी 2024)


1 टिप्पणी:

  1. आदरणीय, इस लेख को कई बार पढ़ा,एक-एक शब्द पर विचार भी किया। इस लेख को पढ़ा, एक नवीनताऔर वास्तविकता को समझने की कोशिश किया । आदरणीय आप का यह लेख हृदय को छू लिया है। आप के इस लेख से मन पूत

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