इयाद में बसल भोजपुरी साहित्यकार चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंहः भोजपुरी भाषा-साहित्य के एगो अनन्य साधक आ पुजारी - डा. चंद्रेश्वर

सन् 1979-80 के आसपास आरा शहर में बहुते सक्रियता, सरगरमी आ हलचल रहे; खलिसा साहित्ये ना, सियासतो के संसार में। एह छोटहन क़स्बाई शहर में सेना, संगठन आ दल के केवनो कमी ना रहे। जगहे-जगह हर मुहल्ला आ गलियन में तख़ती,बोर्ड भा बैनर दिखाई पड़त रहे --- कुँवर सेना,आज़ाद सेना आ ब्रह्मर्षि सेना के। आईपीएफ आ सभे कम्युनिस्ट दलवन के नरवो (स्लोग्न्स) हर जगह देवालन प पढ़े के मिल जात रहे। ओह में सबसे सुंदर लिखावट में नारा(स्लोग्न) आ संदेश लिखाइल रहत रहे आईपीएफ के ! लाल रंग में ! देखि के लागे कि आरा लाले-लाल बा। अबहियो ओहिजा लाल रंग अवरू गाढ़े भइल बा। ओकरा चटकपन में तनिको कमी नइखे आइल। ओह घरी हिन्दी आ भोजपुरी में लिखेवाला नवहा रचनाकारनो के एगो खेप सामने आ गइल रहे जेवना में दर्ज़न भर से ज़ादा लोग रहे। सभे लाल रंग से स्नात आ सराबोर रहे। एही में एगो हमहूँ रहीं आ ओहघरी खलिसा भोजपुरिए में लिखत रहलीं। जेवन कविता,गीत भा कहनी लिखत रहीं, ऊ सब ज़ल्दिए आरा से निकलेवाला दूगो भोजपुरी पाक्षिक -- 'चटक-मटक' (संपादक-- चितरंजन ) आ 'गाँवघर' (संपादक-- भुवनेश्वर श्रीवास्तव 'भानु') में छप जात रहे। हम पहिला हाली 'चटक-मटक' में छपल रहीं,ओकर 16 --31 जुलाई,1979 वाला अंक में। एगो कहानी 'घरवा सून भइल' छपल रहे,जेवन आरा जैन कॉलेज कैंपस में चार जुलाई के भइल गोली कांड प आधारित रहे। ई लिखाइल रहे 07 जुलाई के आ छप गइल एक-डेढ़ हफ़्ता के बादे।
चितरंजन जी के पास हम आपन कहानी ले के सीधे 'चटक-मटक' के दफ़्तर में चहुँप गइल रहनी, एगो संघतिया रजिन्नर ओझा के संगे। ऊ दफ़्तर रहे ओह घरी गोपाली कुँआ के पास लक्ष्मी प्रिंटिंग प्रेस में। ऊ जगह रजिन्नर भाई के देखल रहे। ऊ काँग्रेस के नवहा नेता रहलन शहर में। गली-गली के पता जानत रहलन। हम सबसे पहिले कहानी लिखे के जानकारी उन्हुके के देले रहलीं। ऊहे कहलन कि चल तोहरा के चितरंजन जी से मिलवावत बानी। पहिलके रचना नीमन से छपल आ जल्दी छपल। एह में छपल रचनन के साथे हमार पता के आधार प हमरा के खोज के मिलेवाला पहिलका भोजपुरी के बड़ रचनाकार रहलीं चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह जी। हम महाराजा हाता,कतिरा में जगदीश लॉज में एगो रूम लेके रहत रहीं। हमार दाखिला बी.ए,हिन्दी (ऑनर्स) में जैन कॉलेज में भइल रहे। चौधरी जी जब हमरा रूम प भोरहरिए चहुँपलीं त कहनी कि 'का हो,तोहरे नाँव चंद्रेश्वर ह ? तूँहीं 'चटक-मटक' आ 'गाँवघर' में छप रहल बाड़?"
चौधरी जी के बात आ मुलाक़ात में एगो अजगुत जादू रहे। लागल कि हम केवनो बहुते फेमस रचनाकार हो गइल बानी। हमरो एगो पहचान बा। हमरा के लोगबाग अब हमरा रचनन के आधार प जाने लागल बा।असल बात ई रहे कि चौधरी जी के सुभाव बहुते निर्मल,अहमशून्य (ईगोलेस) आ उदार रहे। ऊ नवहा रचनाकारन के मन में उछाह भरे के हालो खूब जानत रहलन। जइसे माली बाग में पौधन के सींचेला आ ओकर जड़ मजबूत करेला,ऊहे काम नवहा रचनाकारन के ले के चौधरी जी करसु। ऊ पीठ पीछहूँ रचना आ ओकर रचनाकारन के चरचा करसु। ऊ बहुते बेबाक आ साफ़ बोलेवाला रहलन। बतकही में कतो से लचर-पचर ना बतियावत रहलन। ऊ स्वाभिमानी ओतने रहलन। ऊ बहुमुखी प्रतिभा के रचनाकार रहलन। ऊ पद्य-गद्य दूनो में 'समाभयस्त' रहलन। चौधरी जी पहिलके मुलाक़ात में हमार भोजपुरी भाषा के आलोचना कइलन। ऊ कहलन कि 'तूँ अपना एगो कहानी में हिन्दी शब्द 'तपस्या' के 'तपेसवा' काहे लिखले बाड़ ? एकरा से 'बेसवा'(वेश्या) के ध्वनि मिल रहल बा।' ई सुनि के हम हटपटा गइल रहनी आ ओहघरी ततकाल हमरा केवनो बात ना सूझल रहे। उन्हुकर भोजपुरी भाषा प बहुते बारीक पकड़ रहे।
गीत,कविता,कहानी, निबंध के संगे 'भोजपुरी साहित्य दर्पण' नियन शोधपरक किताबो तैयार कइले बाड़न। उन्हुकर दर्ज़न भर से ज़ादा पुस्तक प्रकाशित भइल बाड़ी स। ऊहाँ के निधनोपरांत क क गो पुस्तक छपल बाड़ी स नया कलेवर आ साज-सज्जा में। एह में ऊहाँ के सुयोग्य आ साहित्यकार सपूत कनक किशोर जी के मेन रोल बा।
चौधरी जी हिन्दी में लिख सकत रहलन ; बाकिर ना लिखलन भा लिखलन त कम लिखलन। ऊ केहू के आपन माई के बोली आ भाखा भोजपुरी में लिखे खातिर बहुते प्रेरित करत रहलन। ऊ भोजपुरी के अनन्य साधक-पुजारी आ समर्पित रचनाकार रहलन। ऊ भोजपुरी में क क गो महत्व के कहानियन के रचना कइले बाड़न। उन्हुकर एगो कहानी 'बड़प्पन' के हम सन् 1982-83 में पढ़ले रहीं। ओइसे ई कहानी सन् 1969 के जुलाई में बनारस से छपे वाली पत्रिका 'भोजपुरी कहानियाँ' में छपल रहे। तब हम नौ साल के होखब। एह कहानी के हम भोजपुरी के कहानी के सफ़र में मील के पत्थल मानेलीं। चौधरी जी के एह कहानी के अंत बहुते बेजोड़ आ कलात्मक बा। एह कहानी के अंत से जेवन सच्चाई उभरत बा ऊ हमनी के तथाकथित सभ्य आ बड़कवा कहाएवाला लोगन के मुखउटा के नोच घालत बा। बड़प्पन धनवान डागदर में ना ग़रीब एक्कावान गनिया में दिखाई परत बा। हम बहुते कहानियन के पढ़लीं बाकिर चौधरी जी के एह कहनिया के अंत इयाद रहि गइल बा ; जइसे प्रेमचंद के 'कफ़न' के,चेखव के 'दुःख' के,भीष्म साहनी के 'चीफ की दावत' के,'मार्कण्डेय के 'हंसा जाइ अकेला' के, अमरकांत के 'ज़िंदगी और जोंक' के, शेखर जोशी के 'बदबू' के भा 'मेंटल' के। चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह जी ओइसे त लगभग हर विधा में लिखले बानी ; बाकिर हम उन्हुकरा के मूल रूप से कहानीकारे मानिला। भोजपुरी कहानी विधा में ऊहाँ के अमिट छाप छोड़ले बानी। उन्हुकर कहानियन के भा गीत-कवितन के पच्छधरता बिल्कुल साफ़ बा।
एक बेर हमरा के लेके ऊहाँ के भलुनी धाम के एगो कवि सम्मेलन में गइल रहीं सन् 1981-82 में। ओह में बहुते बड़हन-बड़हन भोजपुरी के कवि -गीतकार आइल रहे लोग। ओही में हम पहिलका बेर भोजपुरी के सिद्ध-साधक आ महाकवि गणेश दत्त 'किरण' आ कुंजबिहारी 'कुंजन' से मिलल रहीं। ओही में किरण जी हमरा के पढ़े खातिर आपन भोजपुरी उपन्यास ' रावण उवाच 'देले रहन आ कुंजन जी के एगो पतराहे कविता के बुकलेट मिलल रहे जेवना के नाँव भोर परि गइल बा।
चौधरी जी के संगे हम एक -दू बेर मिथिलेश्वर जी के घरे गइल बानी,आरा,महाराजा हाता में। चौधरी जी के बतकही कहीं -कतो बेलाग आ साफ़ हेत रहे। ऊहाँ के आपन मन के बात कतो छुपावत ना रहीं,साँच उगिलिए के दम लेत रहीं | मिथिलेश्वर जी से बराबर ऊहाँ के भोजपुरिए में लिखे के निहोरा करत रहीं।
चौधरी जी के पता छपे गाँव वाला-- नोनार,पीरो,भोजपुर।
नोनार नाँव सबके ज़ुबान प रहत रहे। चौधरी जी एक बेर हमरा गाँव प गइल रहलन, सन् 1982 में। ऊ सन् 1983 में हमार बियाह के अगुवाइयो में पड़ल रहलन; बाकिर हमार बियाह के संजोग ओह घरी ना बनल रहे अने जोड़ा ना लागल रहे। ओह घरी हम बी.ए.(ऑनर्स) में पढ़त रहलीं।
जब हम 'जनवादी लेखक संघ' से जुड़ल रहीं त चौधरी जी के बुरा लागल रहे। ऊहाँ के कहनाम रहे कि लेखक स्वतंत्र होला। ऊ खलिसा सच के पैरोकार होला। ऊ वाद आ संगठन आ दल से जुड़ के कमज़ोर हो जाला। तूँ नवहा लोग वाद के चक्कर में फँस रहल बाड़। ओह घरी हमरा प चौधरी जी के सुझाव के केवनो असर ना भइल रहे। एकरा बादो ख़ास बात ई रहे कि ऊहाँ के हमरा प सनेह कम ना भइल रहे। ......त ई 'बड़प्पन' रहे चौधरी जी के !
बहरहाल, चौधरी जी हमरा के आपन बेटा बरोबर मानत रहलन आ कहसु कि तूँ कनक किशोर के समउरिया बाड़। ऊ जब आरा में सन्1984-85 के आसपास कृषि फारम के बगल में डेरा लेके रहत रहन, सपरिवार त हम अक्सर उन्हुका से मिलत रहीं। एक बेर ऊ जब देखलन कि हमार कुरुता के बटन टूटल बा त कहलन कि द एकरा के लगवा दीं। ऊ अक्सर अपना घर से किछु खियाइये के विदा करसु। देखते-देखत हमनी के समइया केतना बदल गइल। अब कतो दीया भा टारच ले के खोजलो प चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह लेखा भा चितरंजन सिंह लेखा आदमी ना मिलिहें,नवहा रचनाकारन के पीढ़ी के चिंता करेवाला भा स्वागतो करेवाला।
हमार संपर्क रहल उन्हुकरा से सन् 1980 से सन् 1986-87 तक। ऊ हमार गर्दिश के दिन रहे त अपना के सँवारे आ रचहूँ-गढ़हू के ताप से तवाइल दिन रहे। हम कह सकत बानी कि ओह दौर में चौधरी जी के सनेह के संबल हमरा के बहुते ताक़त देले रहे आ हम निराशा के भँवरजाल में जाए से बाँचि गइल रहीं। बाद में हम जब नौकरी में आ गइल रहीं, सन् 1996 में त सन् 2000 के आसपास उन्हुका से मिले गइल रहीं,आरा में। होमगार्ड ऑफिस के बगल वाला ऊहाँ के मकान में। गरमी के दिन रहे आ चौधरी जी हमनी दूनो परानी के आम के जूस पिअवले रहीं। चौधरी जी से देर तक बात होत रहल। ऊहाँ के लेखन के ले के उछाह पहिलहीं लेखा देखत बनत रहे। ओहू दिन हमरा नीके से इयाद बा कि चौधरी जी वाम-जनवादी लेखक संगठन के विरोधे में बोलल रहन।
चौधरी जी के स्टैन्ड क्लीयर रहे,पहिलहीं वाला। ऊ रचना के दम प जिये आ मरे वाला रचनाकार रहलन। उन्हुकर कहल एगो बात हमरा कबो ना बिसरे कि 'रचना में दम होई त ओकर चरचा होखबे करी। आलोचक के पीछे रचनाकार के कबोे ना भागे के चाहीं। ओकरा के अने आलोचक के पुरोहित ना बूझे के चाहीं।'
चौधरी जी के लेखन के एकही मुख्य आधार रहे --समाज आ व्यक्ति के जिनगी के जथारथ अवरू सच्चाई। ऊ खलिसा सच के तरफ़दार रहलन। जबतक जियलन आ लिखत रहलन ,साँच प आँच ना आवे देबे के भरपूर परयास कइलन। हम भोजपुरी के एह अजगुत ......अनन्य साधक आ पुजारी के बेरि-बेरि नमन करत बानी।
----------------------------------
डा. चंद्रेश्वर
जन्मः 30 मार्च, 1960, बक्सर,बिहार 
एसोसिएट प्रोफेसर आ हिन्दी विभागाध्यक्ष,
एम.एल.के.पी.जी.कॉलेज,बलरामपुर,उत्तर प्रदेश
चार गो हिन्दी पुस्तकन के प्रकाशन 
दू गो कविता संग्रह -'अब भी '(2010),'सामने से मेरे' (2017) 
एगो शोधालोचना के पुस्तक 'भारत में जन नाट्य आंदोलन'(1994) 
एगो साक्षात्कार के पुस्तिका 'इप्टा-आंदोलनःकुछ साक्षात्कार' (1998) 
भोजपुरी में स्मृति आख्यान 'हमार गाँव' (2020) 
शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक: 'हिन्दी कविता की परंपरा और समकालीनता' (आलोचना), 'मेरा बलरामपुर' अवरू तीसरा काव्य संग्रह -'डुमराँव नज़र आयेगा'
631/58,'सुयश',ज्ञान विहार कॉलोनी
कमता-226038,लखनऊ
मोबाइल नंबर--7355644658
मैना: वर्ष - 7 अंक - 120 (अक्टूबर - दिसम्बर 2020)

2 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्रिया भोजपुरी मैना के |

    जवाब देंहटाएं
  2. राऊर भोजपुरी में गजब के मिठास बा आ प्रवाह बा।चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह के व्यक्तित्व के जवना शब्दन में उकेरले बानी उ चमत्कृत करता।

    जवाब देंहटाएं

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.