भोजपुरी साहित्य के वर्सटाइल जीनियस चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह 'आरोही' - संतोष पटेल

देश के आज़ादी के बाद भोजपुरी साहित्य के विकास में बहुत साहित्यकार लोगन के अनुपम योगदान बा जे सभे आपन कलम से लिखल के, सङ्गे सङ्गे दोसरो के कलम के सम्मान देत ओकर लिखल के एक जगहे सँग्रह करके आवेवाला पीढ़ी के सौंप देलस लो। एकरा में पिपरा, पूर्वी चम्पारण से गणेश चौबे के नाम ऊपर बा बाकिर उहे कड़ी में हम भोजपुर के पिरो के गांव नोनार के साहित्यकार चौधरी कन्हैया सिंह आरोही जी के नाम लिहल चाहब। 
हम इहाँ के 'वर्सटाइल जीनियस' एह से कहिले कि इहाँ के लेखन में जेतना गद्य गंभीरता से आइल बा ओतने पद्य के प्रमुखता बा। साहित्य विद्या के कवनो अइसन क्षेत्र नइखे जेकरा पर इहाँ के दृष्टि ना गइल होखे आ इहाँ के सृजन ना कइले होखीं। पद्य में देखल जाव त आरोही जी कविता, हाइकू, सेनरयू, ग़ज़ल, गीत, बरवै, सोरठा, दोहा, बहजन सवैया, कुंडलियां सब में आपन योगदान देले बानी। उहे गद्य में कहानी, एकांकी, नाटक, उपन्यास, प्रबन्धकाव्य, सन्दर्भ ग्रन्थ आ कोश निर्माण आदि में गंभीर काम कइले बानी।
आरोही रचनावली- एक , आरोही जी के लिखल 114 गो भोजपुरी कहानी आ लघुकथा के सँग्रह ह। एकर सम्पादन - जानल मानल साहित्यकार जितेंद्र कुमार जी कइले बानी। वर्ष-2016 में प्रकाशित एह सँग्रह के सम्पादन में जितेंद कुमार जी के इ लिखल प्रासंगिक बा, 
"चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह भोजपुरी भाषा के समर्पित रचनाकार थे। भोजपुरी कहानी के वे सशक्त हस्ताक्षर थे। उन्होंने 90 कहानियाँ लिखी, भोजपुरी साहित्य में बहुत कम कथाकार हैं जिन्होंने चौधरी जी से अधिक कहानियाँ लिखी है।"
आरोही रचनावली-दो, आरोही जी के लिखल एकांकी आ नाटकन के संग्रह ह। एकर सम्पादन अंकुश्री जी कइले बानी। झारखंड के सुप्रसिद्ध साहित्यकार अंकुश्री जी उ सभ 70 गो नाटक आ एकांकी के एह सँग्रह में रखले बानी जवन चौधरी कन्हैया सिंह जी लिखले रहीं। 
अंकुश्री आपन सम्पादकीय में लिखत बानी कि "जब चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह 'आरोही' के ई महसूस भइल कि भोजपुरी भाषा में नाटकन के अभाव बा त उ नाटक लिखे के शुरू कर देलन। कविता आ कहानी के साथे साथे उ खूब नाटक लिखलन।"
गोपी गीत साल 2018 में आइल जवना के भूमिका के आपन बात में चौधरी जी लिखत बानी - गोपी गीत गोपी कृष्ण के पौराणिक मिथक के परंपरागत आ निर्जीव आवृति ना कर के ओकरा के समकालीन भारतीय जीवन के अनुरूप मानवीय धरातल पर चिन्हित कइल गइल बा। 
आरोही जी लिखत बानी-
"गोपी बावरी बीणा के धुन पर प्राण समर्पित करे वाली हिरनी हई स। राग, द्वेष, ईर्ष्या से परे स्वछंद प्रेम केंपथ प्रशस्त करे वाली जीव हई स। गोपी गीत वर्तमान के हकीकतन के आईना ह।"
भोजपुरी कथाकोश में भोजपुरी भाषा में प्रकाशित सन 1948 से लेके 4 अप्रैल 2017 तक के कहानी के संदर्भ मिल सकेला। भोजपुरी में शोध करे वाला विद्यार्थी गण ला ई एगो पक्क़ा स्त्रोत बा जेकरा में तमाम कथाकार आ कहानी के जिक्र बा। 
सम्पादकद्वय कृपाशंकर प्रसाद आ दिलीप कुमार के मानल बा कि "साहित्य में कवनो कोष महीना दू महीना में खत्म हो जाये वाला विधा ना ह। ई कथा कोश चौधरी साहेब के बरिसन के तपस्या के फल ह।" 
बात सोरहनिया साँच बा कि 1948 से जवन सफर शुरू होखत बा उ चौधरी साहब के सांस रुकले पर 2017 में खत्म भइल। लगभग 70 साल के सफर कम ना नू होखेला। लोग त एकाध साल में उज़बूजा जाला। सबसे बड़हन बात ना कवनो साहित्य के सम्मान के इच्छा आ ना कवनो विशेष प्रतिष्ठा के कामना। भोजपुरी के विकास उहे लोग कर पवले बा जे आपन घर फूंक के तापे के जिगरा राखे ला आ चौधरी साहेब भारत भर कर यात्रा करि के 6 हज़ार भोजपुरी कहानी खोज निकले बानी ई कवनो मामूली बात नइखे। भोजपुरी माई के प्रति ई प्रेम अनमोल बा। दरअसल साहित्यकार जब आंदोलनकारी बनि जाला त ओकरा मन में आपन भाषा के विकास के प्रति उत्कट प्रेम भरि जाला जवना के नायाब उदाहरण कन्हैया जी बानी।
यशस्वी सम्पादक साहेबगंज झारखंड के रामजन्म मिश्र जी के सम्पादन में चौधरी साहब पर एगो किताब आइल- चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह 'आरोही' इयादों के झरोखा में। तकरीबन 37 गो साहित्यकार लोगन के आलेख एह पुस्तक में संग्रहीत बा। प्रमुख रूप एह संकलन में डॉ तैयब हुसैन साहब उहाँ के एकांकी पर, डॉ ब्रजभूषण मिश्र जी उहाँ के ग़ज़ल पर, डॉ गजाधर सिंह उहाँ के लिखल कुँवर गाथा पर लिखले बानी त सम्पादक कन्हैया जी के भोजपुरी भाषा के सजग सिपाही कहत बानी। समीक्षा प्रकाशन, दिल्ली से 2018 में प्रकाशित एह किताब में पठनीय आलेख बाड़ी सन जवन शोधार्थियन खातिर फ़ायदामन्द साबित होखीं।
ऊपर तमाम किताब के जवन जिक्र बा ओकर सूत्रधार बानी चौधरी साहेब के पुत्र कनक किशोर जी। 
कनक जी आपन बाबुजी के विरासत के बड़ा सम्भाल के रखत बानी ना त हम कई साहित्यकार के घरे जानी जेकर दूसरा पीढ़ी आपन साहित्यकार पिता भा दादा के लिखल पांडुलिपि मूस के हवाले कर देला आ मूस ओकरा पर आपन लेडी हग के ओह घर में साहित्य के मर जाए के घोषणा कर देला।

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लेखक़ परिचय:-
पिता: डॉ गोरख प्रसाद मस्तना
माता: श्री मती चिंता देवी
जन्म: 4 मार्च, 1974, बेतिया, पश्चिम चंपारण, बिहार
शिक्षा: रिसर्च स्कॉलर (भोजपुरी) विषय " भोजपुरी साहित्य के विकास में चंपारण के योगदान",
एम ए (त्रय) (इंग्लिश, हिंदी भोजपुरी), एम फिल (इंग्लिश)
स्नातकोतर डिप्लोमा (अनुवाद, पत्रकारिता व जनसंच्रार), सिनिअर डिप्लोमा (गायन)
सम्प्रति: संपादक - भोजपुरी ज़िन्दगी, सह संपादक - पुर्वान्कूर, (हिंदी - भोजपुरी ), साहित्यिक संपादक - डिफेंडर (हिंदी- इंग्लिश- हिंदी), रियल वाच ( हिंदी), उपासना समय (हिंदी),
भोजपुरी कविताएँ एम ए (भोजपुरी पाठ्यक्रम, जे पी विश्वविद्यालय ) में चयनित " भोजपुरी गद्य-पद्य संग्रह-संपादन - प्रो शत्रुघ्न कुमार
सदस्य : भोजपुरी सर्टिफिकेट कोर्स निर्माण समिति, इग्नू, दिल्ली
सदस्य: आयोंजन समिति - विश्व भोजपुरी सम्मलेन, दिल्ली, महासचिव - पूर्वांचल एकता मंच,
राष्ट्रीय संयोजक - इन्द्रप्रस्थ भोजपुरी परिषद्
महासचिव - अखिल भारतीय भोजपुरी लेखक संघ, दिल्ली
प्रचार मंत्री - अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मलेन, पटना
प्रकाशन: भोर भिनुसार (भोजपुरी काव्य संग्रह), शब्दों के छांह में (हिंदी काव्य संग्रह), Bhojpuri Dalit Literature- Problem in Historiography
प्रकाश्य: भोजपुरी आन्दोलन के विविध आयाम, भोजपुरी का संतमत- सरभंग सम्प्रदाय, Problem in translating Tagore's novel - The Home and The World, अदहन (भोजपुरी के नयी कविता)

मैना: वर्ष - 7 अंक - 120 (अक्टूबर - दिसम्बर 2020)

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