तारकेश्वर मिश्र 'राही' के तीन गो कविता

सेनुर दूध लड़े अपने में

सीता उहाँ गुरुदेव से पूछति,
कइसन वीर महीपत बाने
काहे बदे वन युद्ध छिड़ा,
जवना में मोरा ललना रत बाने
आवत ना हिय चैन मोरा,
दिन-राति वियोग में बीतत बाने
लोग बतावेला रोज इहाँ,
वनदेवी लला तोर जीतत बाने

लाजि न बा तनिको उनका,
जे कि सेना लिये लरिका से लड़ेलें
जाके उन्‍हें समझाईं तनी,
सब का कही, काहें अनेत करेलें
सेना सुनींला कि बाटे अपार,
तबो दुइ बालक नाहिं डरेलें
काहें ऊ युद्ध करावत बा,
जेकरे रन-बाँकुर रोज मरेलें

ना कुछ सूझे, बिना बपऊ तोरे,
संकट भारी कटी अब कइसे
जो लरिका मोरे ना रहिहें,
अँसुआ जिनिगी भर पीयब कइसे
साड़ी सोहाग के नाहिं सिआति बा,
आँचर फाटी त सीयब कइसे
आँखि के ना रहिहें पुतरी,
गुरुदेव भला हम जीयब कइसे

दूध के दाँत न टूटल बा,
सुकुवार सलोना हवें दुनो भइया
आस में पोसत बानी एही,
दुखवा में मोरी सब होइहें सहइया
नाव मोरी मझधार में बाटे,
कोंहाइल बा कहिए से खेवइया
टूटल जो पतवार अधार त,
जाईं कहाँ मोर बोझल नइया

ध्‍यान में देखि मुनी मुसुकालें
कि बेटा आ बाप अड़े अपने में
अइसन लोग सुनी त हँसी,
आ कि आपन रूप गड़े अपने में
धन्‍य विधाता विधान तोरा आ
कि नैन दुनो झगड़े अपने में
कंगन चूडी लड़े त लड़े
इहाँ सेनुर दूध लड़े अपने में
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जिंदगी

दिया के अजोर ह ई जिंदगी।
नदी के तरंग ह कि खेल के पतंग ह।
कि मेला के शोर ह ई जिंदगी।

चार दिशा गन्ध उठे फूल क पराग ह,
कि सावन में भरल पुरल बेइला के बाग ह,
नैना के नीर ह कि चुकी गईल तीर ह,
कि नदी के हिलोर ह ई जिंदगी?

रात दिन की खम्भा पर खड़ा शामियाना,
कि तुलसी की माला के इनल गिनल दाना,
पूजा के थार ह की वीडा के तार ह,
कि हवा के झकोर ह ई जिंदगी?

जहाँ तहा उड़त फिरे धरती के धूल ह,
कि छुअते लजाई गईल छुई मुई फूल ह,
दियना के तेल ह कि पुतरी के खेल ह,
कि आग के ढिढोर ह ई जिंदगी।
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खेत बारी बट जाई

आदमी के सतावला से का फायेदा
दिल प पत्थर चलवला से का फायेदा
नेह अंगना गेडाईल बटाईल हिया
त भीती अईसन उठवला से का फायेदा

खेत बारी बट जाई
अरे अंगना दुवारवा, पाई पाई विरना
हो कईसे भाई के सनेहिया बाटल जाई विरना
कईसे भाई के सनेहिया बाटल जाई विरना

एके रहल बाप एके रहली महतारी
तीन गो फुलईले फुल एके फुलवारी
अबही गवाह बाटे पढे वाला झोरा
चन्दा मामा औरी दुध भात के कटोरा
गंवुवा के लोग आ के बखरा लगाई, फरिआई विरना
हो बोला बांटी के हमार परछाई विरना
हो बोला बांटी के हमार परछाई विरना

हमरा के चाही ना कमाई के रुपईया
बाबु कहब केकरा कहबs तु भईया
राम आ भरत के मिलाप जब होई
कसकी करेजा मन मने मन रोई
पीछे पीछे लोग सब इहे बतियाई, गरियाई विरना
हो गईले बाबु के बेटउवा अलगाई विरना
हो गईले बाबु के बेटउवा अलगाई विरना

तोहरा घरे पुडी पकवान जईहा पाकी
कोना जाके बचवा हमार कवनो झांकी
आके अपना दुख के कहानी जब बांची
हमरा के कुछु नाही दिहली हो चाची
ओने पकवान एने लईकन के रोवाई, ना सहाई विरना
हो तोहरा पुआ पकवान ना घोटाई विरना
हो तोहरा पुआ पकवान ना घोटाई विरना

हमरा तोहरा बेटी के बरात जईहा आई
तु देबs स्कुटर हमरा कुछु ना दियाई
बेटी तोहार जईहे जीप चाहे कार से
बेटी हमार पैदल चाहे डोलिया कहार से
एगो आंख हसी एगो आंसु बरसाई, ना सहाई विरना
हो तहिया कईसन लागी बेटी के विदाई विरना
हो तहिया कईसन लागी बेटी के विदाई विरना

सोच तनी हमरा के का कही जमाना
हसी हसी चुन्नु पाण्डेय मारे लगिहे ताना
चार दिन के संग बा मचावs जनि तबाही
दुनिया हो राग रविन्दर लोग हवन राही
फेरु नाही आई केहु देखे ई कमाई, हउवे काई विरना
हो कईसे माई के अंचरवा बाटल जाई विरना
हो कईसे माई के अंचरवा बाटल जाई विरना
खेत बारी बट जाई
अरे अंगना दुवारवा , पाई पाई विरना
हो कईसे भाई के सनेहिया बाटल जाई विरना
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1 टिप्पणी:

  1. कृपया रउआ लगे श्री तारकेश्वर मिश्र 'राही' जी के लिखल काव्य खंड के कवनो जानकारी होखे जवना से हम इनकर रचना के पढ़ सकीं त जरूर बताई

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