पं. व्रतराज दुबे 'विकल' के चार गो कविता

भारत आपन देस महान

मूड़ी लमहर ऊंच हिमालय
महादेव के हs देवालय
दहिना हंथवा धाम दुअरिका
बायां हथवा हs अरुनालय
हिया बीच हिलकोरे गंगा
खतमावे सब पाप निसान।
भारत आपन देस महान।।1।।

रामेसर हs पउंआ पावन
करे समुन्दर नित नहवावन
धरती महतारी बोलेली
ममता जहवां करे मनावन
करुना दया बसेली इहंवे
इहंवे बा सब गुन के खान।
भारत आपन देस महान।।2।।

अनरथ जब जग में बढ़ियाला
धरम धरा से भाग पराला
पांव धरम के फेर जमावे
प्रभु के आवे के पर जाला
इहंवे के धरती पर आके
करें प्रभु सबके कल्यान।
भारत आपन देस महान।।3।।

सिरजन के जब कार नधाइल
ई धरती पहिले सिरजाइल
पहिले जीव जनमले इहंवे
तब जाके दुनिया छितराइल
इहंवे भारी धूम मचावत
परगट भइल पहिलका ग्यान।
भारत आपन देस महान।।4।।

तप से तेज इहां जागेला
चिन्तन से चिन्ता भागेला
मनन करत मन रास्ता पकड़े
धरम-करम में दिल लागेला
इहंवा पाहुन पूजल जाले
असली धन हs धरम ईमान।
भारत आपन देस महान।।5।।

नेह नहाइल गांव इहां बा
आपस में अपनाव इहां बा
हर मौसम आवेला इहंवा
सुख के सही पड़ाव इहां बा
रात इहां चानी अस लागे
सोना अइसन लगे बिहान।
भारत आपन देस महान।।6।।

देंह निअर ई देस हमर बा
गतर (अंग) निअर सब गांव नगर बा
अलग-अलग बाहर से लउके
भीतर सबके एगुड़े जर बा
मौका पर सब मिले प्रेम से
बन जाला तब हिन्दुस्तान
भारत आपन देस महान।।7।।

चिरइन के गुंजार इहां बा
अन-धन के भरमार इहां बा
मानवता के महक बिखेरत
हर जिउअन से प्यार इहां बा
जब-जब जनम परे लेवे के
मिले इहे धरती असमान।
भारत आपन देस महान।।8।।
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जगबs कहिया वीर जवान

दिन में भइल अन्हरिया बाटे
अइसन घिरल बदरिया बाटे
बाटे रोअत आज अंजोरिया
बकुलो लउकत करिया बाटे
धरम-करम सब धोखा खाता
थर-थर कांपेला ईमान।
जगबs कहिया वीर जवान?

ना अंगरेजी सासन बाटे
ना तुरकी सिंहासन बाटे
बाटे अब आपन अनुसासन
सगरे सतुआ-धासन बाटे
तहरा पिछुआरे आ-आ के
डिभुकs ता बइठल सैतान।
जगबs कहिया वीर जवान?

घाकड़ सभे धधाइल बाटे
छलिया सब छितराइल बाटे
बाटे कइसन मौसम आइल
भरलो पेट भुखाइल बाटे
आंख मून तंू सूतल बाड़s
कबले होई तहर बिहान।
जगबs कहिया वीर जवान?

काबू कहां लुकाइल बाटे
सुस्ती काहें आइल बाटे
बाटे के बहकवले तहके
साहस तहर सथाइल बाटे
लोहा तोहर रोके के अब
केहू के नइखे कन्तान।
जगबs कहिया वीर जवान?

बलिदानिन के बतिया देखs
माई के दुरगतिया देखs
देख तू जुलमिन के जागल
सबके मातल मतिया देखs
बेसी अबहिन बिगड़ल नइखे
उठ के तूं मारs मैदान।
जगबs कहिया वीर जवान?
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विनती

विनती करिने हमू माई सुरसती जी के।
विदया के देवी बुधिमती महारानी के।।

सुमती कुमती सब गति के सम्हारेवाली।
हंस असवार महतारी वीनापानी के।।

देदीं तनी ध्यान संविधान के विधान पर।
दसवा बदल दीं भोजपुरी के कहानी के।।

हमनी के बेरी मत देरी करीं भगवती।
हरीं भोजपुरियन के सकल हरानी के।।
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सपना के संपत

येक रात के बात हऽ रहीं कहीं हम जात।
येगो बुढ़िया से भइल रस्ता में मुलकात।।१।।

सुबहित कपड़ा के बिना लागत रहे भिखार।
बिलख-बिलख रोअत रहे रह-रह पुक्काफार।।२।।

कहनी हम तूँ हऊ के, कहँवा बा घर बार।
काहें रोवेलू इहाँ रह-रह सिसकी मार।।३।।

बोलल बुढ़िया बिलख के कथी सुनाई हाल।
जेके हम आपन कहीं उहे बनल बा काल।।४।।

सब कुछ घर में भरल बा, ना बा कहीं अभाव।
लइकन के मारे सदा, मन में टभके घाव।।५।।

बेटी बड़का के हईं बड़का बात विचार।
अपने घर के लोग सब कइले बा लाचार।।६।।

हमहीं भोजपुरी हईं भसवन के रसधार।
सबके करीं सिंगार हम अपने रहीं उधार।।७।।

अजब कहानी हमर बा कइसे करीं बखान।
रोवे के कारन हमर, बा हमरे संतान।।८।।

सिव के हम बेटी हईं माँ गौरी के प्यार।
सगरे परकिरती हमर करे सदा सतकार।।९।।

देवन के फेरा लगल भइल हमर संस्कार।
सरल सुहावन देंह पर बनल बनावट भार।।१०।।

देव सभे अपनाइके दहलें रूप विगार।
संसकिरित लगले कहे हमरा के चुचकार।।११।।

उपसरगे बीसरग सब, गहना बनल हमार।
विभगति प्रत्यय से हमर, होखे लगल सिंगार।।१२।।

दुलहिन हमरा के बना, छिना गइल अधिकार।
हमरा मौका ना मिलल, देखीं हम संसार।।१३।।

रस के गागर छीन के, पीये लागल लोग।
हमरा के बूझे लगल, विसय बासना भोग।।१४।।

झेलत सब झेला इहे हो गइनी हम बूढ़।
केहू ना खोजल कबो हमके मन से ढूंढ़।।१५।।

अब जे खोजे भिड़ल बा ले के मन में चाव।
लागे साधत बा उहो हमसे आपन दाव।।१६।।

केहू पइसा ला हमें चाहे कइल उधार।
केहू अपना नाव ला खोज रहल आधार।।१७।।

लागेला केहू लगे नइखे सही सहूर।
अपना-अपना लाभ ला सभे करे मजबूर।।१८।।

संस्कार आपन हमर, कुहुकेला दिन रात।
नाहीं केहू सुनेला, सही सनातन बात।।१९।।

हमरा गुन मरजाद के सभ्भे कऽकऽ मोल।
बेंचऽता बाजार में, पोथी-पतरा खोल।।२०।।

येही से घर छोड़ के, रो-रो करीं पुकार।
केहू दिलवा दे हमर, जीये के अधिकार।।२१।।

पिंड चकोड़न से छुटे, मिले हमर पहचान।
फुहर-गँवारन से बँचे तनिका हमरो जान।।२२।।

आजादी सबके मिलल, सबके भइल विकास।
कइसन करम हमार बा, दर-दर फिरीं उदास।।२३।।

हमरा के सीधा समझ सभे चलेला चाल।
नेता ना केहू भइल सुने हमर जे हाल।।२४।।

सहत-सहत कबले सहीं हमहू अत्याचार।
संविधान उफ्फर परे जे देता दुतकार।।२५।।

तब कहनी हम सोच के माई सुनऽ हमार।
करुनाकर भगवान से बतिया कहब तहार।।२६।।

करुनाकर के दया से सुधरी तोहर भाग।
करुनाकर के कथा से किस्मत जाई जाग।।२७।।

अब रोव के ना परी राखऽ ई बिसवास।
तहरा खातिर करब हम, सजी बरत उपवास।।२८।।

जान भले जाई हमर, तहर बँचायब मान।
हमरो ईहे परन बा, मदद करें भगवान।।२९।।

होखे ना देहब कबो तहके हमू उदास।
मरजादा तोहर बढ़ी, होखी ना उपहास।।३०।।

तबले हमरा हाथ में आइल इक अखबार।
जवना में छापल रहे सुग्घर सामाचार।।३१।।

संविधान के सूचि में सामिल होके आज।
भोजपुरी के माथ पर चढ़ल खुसी के ताज।।३२।।

बरतराज के हिया के बिहँसल तब अनुराग।
भोजपुरी सामाज के खुल गइल अब भाग।।३३।।

आईं मिलके करीं जा, माई के गुनगान।
सुन लहले सब बात के, करुनाकर भगवान।।३४।।
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