बरसै बदरिया - हरिराम द्विवेदी

नन्‍हीं–सी गुड़िया के गोदिया उठवलैं
लोरिया सुनाय नैन निदिया बलवलैं
अँगले में झरैला दुलार हो बाबा मोर आवैं बखरिया॥

नेहिया की छँहियाँ में गुनवाँ सिख्‍वलैं
बचपन से बड़पन उमिर ले पढ़वलैं
नेहिया कै भरल भंडार हो बाबा मोर आवैं बखरिया॥

दुखवा उठाइ धरे सुखवा बिछउलैं
हँसि हँसि के सबही के नेहिया लुटउलैं
मोहिया भरल बा अपार हो बाबा मोर आवैं बखरिया॥

कविता के रस होला सँझिया बिहनवाँ
गउवाँ के गितियन में बसैला परनवाँ
गीतन से करैलें सिंगार हो बाबा मोर आवैं बखरिया॥
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लेखक परिचय:-

नाम: हरिराम द्विवेदी
जन्म: 12 मार्च 1936
जन्म स्थान: शेरवा, मिर्जापुर, उत्तरप्रदेश
परमुख रचना: अँगनइया, पातरि पीर, जीवनदायिनी गंगा,
साई भजनावली, पानी कहे कहानी, पहचान, नारी, रमता जोगी,
बैन फकीर, हाशिये का दर्द, नदियो गइल दुबराय
सम्मान: साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान,
राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा),
साहित्य भूषण (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा),
साहित्य सारस्वत सम्मान (हिंदी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग) तथा अन्य
अंक - 113 (03 जनवरी 2017)

1 टिप्पणी:

  1. मंत्रमुग्ध कर देनेवाली रचनाएं!!
    'पानी कहै जिनगाणी के कहानी मितवा'- हरिभैया के इस बारहमासा को भी प्रकाशित किया जाय ।

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