कुक्कुर के कहानी - 5 - धरीक्षण मिश्र

अध्याय - 5

हमनी के कुक्कुर तेज हवे ई राति राति भर जागेला।
ई सब को से अझुरा जाला डर एकरा तनिक न लागेला॥1॥

एको पतई जो खरके त ई बहुत अगर्द मचावेला।
एकरा अगर्द का मारे दोसर ना कुछ कहि सुनि पावेला॥2॥

गलतू में दूर दूर तक ले हमरा कुक्कुर के नाम हवे।
हुँसियार लोग सब बूझेला कि बोलले एकर काम हवे॥3॥

अवरी कुक्कुर सब पाँच बरिस पर एकबेर बस आवेले।
मालिक का दुवरा लोटिपोटि कोंकिया के पोंछि हिलावेले॥4॥

बाकी दोसरा अवसर पर ऊ गोसयाँ के चीन्हि न पावेले।
आ कबो कबो खुदुकवला पर गुरुना के काटे धावेले॥5॥

लेकिन हमनी के ई कुक्कुर सब दिन सब के पहिचानेला।
ई गोसयाँ और बे गोसयाँ सब के एक बरोबर मानेला॥6॥

एकरा में ना कुछ पइ निकलल ना ऐसे कहीं कुचाल भइल।
एही से एकरा एक जगह पर रहत आज दस साल भइल॥7॥

दोसर केहु वार करे जेतना गेंडा समान ई आड़ेला।
आ कबें कबें सरकारो पर ई सिंह समान दहाड़ेला॥8॥

हमरा कुक्कुर के चीन्हीं त ओकर दोसर उपमा न हवे।
बस थोरे में बुझि जाईं कि ऊ गेंडा सिंह समान हवे॥9॥

बाकी कुछ दिन से एहू में एक बाउर रहनि धरात हवे।
एही से अब कुछ लोगन के मन एहू पर अनुसात हवे॥10॥

कुछ छुटहा और बे गोसयाँ के कुकुरन के एगो गोल हवे।
ओकनी से एकरा आपुस में कुछ मेल जोल के बोल हवे॥11॥

कबें कबें ओकनी का संहति में इहो जब आ जाला।
ओकनी के चालि पकड़ि लेला सब आपन चालि भुला जाला॥12॥

ओकनी के भोकल सुनत सुनत एकरो मन उहाँ बिगड़ि जाला।
तब बिना जियाने राह चलत निमनो अदिमी पर पड़ि जाला ॥13॥

वंशस्थ :-

दियात बाटे कवरा सनेह से जुझार बा कुक्कुर जौन क्षेत्र के।
अघाउ आपे सुख खाइके भले सदा रहो भोंकत आँखि मूनिके॥14॥
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धरीक्षण मिश्र

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
अंक - 106 (15 नवम्बर 2016)

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