लगाव - डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना

रऊआँ सभ के सोझा आज डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना जी के लघुकथा 'लगाव' पेस करत बानी। ई एगो छोटी मुकी कहानी बे। आँखि बन क लिहल जाओ तऽ ए कहानी में कुछु नईखे लेकिन जईसहीं रऊआँ आँख खोलब तऽ जिनगी कऽ ऊ सच लऊकी जेवना के हाथ थाम्हि के आदमी ई लमहर जिनगी काट लेला औरी खाली काटीए ना लेला; बाकी खुशी-खुशी काटेला। अपनापन औरी लगाव जिए के खाती परान नियर काम करे ला। ऊहे बात डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना जी अपनी ढँग से कहत बानी।

--------------------------------------------------------------------------
बेटा बड़का हाकिम रहले आ पतोह बड़का प्रोफेसर। घर में नोकर चाकर, दुअरा पर स्कार्पिओ गाड़ी, काथी ना रहे। घर में लहवर बरसत रहे। पतोह जेतने लक्ष्मी रहली ओतने सुरसती। भोजन अपने बनाके ससुर जी के परोसस, पंखा झलस अइसन सुख त केहूए केहूके नू मिलेला। बाकिर आज ना जानी जे काहे उ रामलालजी के इच्छा भोजन पर ना जात रहे। दू कवर खइलें आ हाथ धो लेलें। सुधा जे उनकर पतोह रहली। बड़ा आदर से पूछली-"बाबूजी। आजु बड़ा उदास बानी।"
कबो कबो आदमी अपना हिया के हलचल आखर में बेयान ना कर पावेला। चिरई के चहचहाहट जब चुप्पी में बदल जाए त जरूर कवनो तुफान के अन्देशा हो जाला। कुछ एही नियर हाल रामलाल जी के रहें। बेटा जब औफिस से लवटलें त बाबूजी के अनदिनहा के नियर अखबार आ कवनो किताब पढ़ते ना दिखले, त उनका माथ उनकल कि बाबूजी बानी कहाॅं? जे घर में चुप्पी पसरल बा।
आज कल आदमी अपने आपे में एतना अझूराइल बा जे ओकरा दूर-दूर के त छोड़ी, अपना आसे-पास के खबर नइखे रहत। साइत अइसने जरूर कवनो अनहोनी रहे जवना के असर घर में बुझाात रहें। अपना घरवाली से अबही बतिआवे शुरूए कईले कि पड़ोस के काकी आ जमली। पंहुचते पुछली- 
"ए दुल्हिन! आज त तोहरा सास के पुण्य तिथि नू हवे। हर साल एह दिने कीर्तन होत रहें। पंडिजी लोगिन के जिमावल जात रहे, एह बरिस काहे उदासी बा।"
एतना कहल रहे कि सभे अवाक रह गईल। एक दोसरा के निहारत सबका मुॅंह पर उदासी अउर अफसोस के भाव पसर गईल। कहल बा कि काम के बोझ एक त आदमी के बान्ह लेवेला कि उ अपना जिम्मेदारियों भुला जाला। उ त अफसोस कराइए देला। आज उहे भइल रहे। 
प्रोफेसर सुधाकर जी दुखाइले मन से रामलाल जी के कोठरी के ओरिया जब धीरे-धीरे केवाड़ी हटवली त देखली कि बिछावना पर ओंठगल रामलाल जी आंख में चश्मा लगवले छत ओरिया निहारत रहले उ चश्मा उनकर स्वर्गवासी पत्नी के रहे जवना के पहिर के ना जानी कवना दुनिया में हेरा गइल रहलें। आंखी के कोरन से लोर झरत जात रहे। सुधा के बुझा गइल कि लगाव का कहाला।
-------------------------------------------------------------------------------

                               लेखक़ परिचय:-


जनम 
स्थान: बेतिया, बिहार 
जनम दिन: 1 फरवरी 1954 
शिक्षा: एम ए (त्रय), पी एच डी 
किताब: जिनगी पहाड़ हो गईल (काव्य संग्रह), एकलव्य (खण्ड काव्य), 
लगाव (लघुकथा संग्रह) औरी अंजुरी में अंजोर (गीत संग्रह) 
संपर्क: काव्यांगन, पुरानी गुदरी महावीर चौक, बेतिया, बिहार
------------------------------------------------------------------------------
<<< पिछिला                                                                                                                       अगिला >>>

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.