पंछी दूर ठिकाना बा।
कहिया ले ई रात अन्हरिया
बइटल हँसी उडाई
कब विहान के झिलमिल रेखा
सपना बन मुस्काई।
कब ले धुन्ध छँटी जिनगी के
कहँवा भोर सुहाना बा॥
गाछी-गाठी घूम-घूम के
खोजे रैन बसेरा
का सुख-दुख के मिलन-विन्दु पर
ठमकल आज सबेरा?
पर अरमान अधूरा ले के
गावत फिरत तराना बा॥
मन के प्यास बुझावे खातिर
ना सावन घन आवे
रटन पपीहा के सुन के, ना
स्वाती जल बरसावे।
जीवन के उजड़ल बगिया के
आसे महज बहाना बा॥
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