तिन तिन चले छिपाय - पलटूदास

जिन दिन पाया वस्तु को तिन तिन चले छिपाय॥

तिन तिन चले छिपाय प्रगट में हो हरक्कत।
भीड़-भाड़ में डरै भीड़ में नहीं बरक्कत॥

धनी भया जब आप मिली हीरा की खानी।
ठग है सब संसार जुगत से चलै अपानी॥

जे ह्वै रहते गुप्त सदा वह मुक्ति में रहते।
उन पर आवै खेद प्रगट जो सब से कहते॥

पलटू कहिये उसी से जो तन मन दै लै जाय।
जिन जिन पाया वस्तु को तिन तिन चले छिपाय॥
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पलटूदास

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