बढ़ल महंगाई - गणेश नाथ तिवारी 'विनायक'

बढ़ल महंगाई बाटे तनिको ना सोहाता।
जातिये धरम पर खाली खतरा बुझाता॥

कहे खातिर पुरहर भइल बा विकास
धरती पर कुछ्वु ना बाटे मय आकाश।
जनता की अँखियाँ में धुरा झोंकाता
जातिये धरम पर खाली खतरा बुझाता॥

पाटी आ पउआ में लोगवा बँटाइल
जनता कि बतिया पर इंग्लिश छँटाइल।
नव,छव पनरह के फिफ्टिंन लिखाता
जातिये धरम पर खाली खतरा बुझाता॥

आइबि हम सत्ता में बनिके मसिहा
दोसरा घर मे अंडा देबि बनिके पपिहा।
भोट दे के नेतन के जनता पिसाता
जातिये धरम पर खाली खतरा बुझाता॥

पुछेले जनता चुनाव वाली बतिया
भागेलन जइसे खाके भागेला बरतिया।
सोझा के नाक पाछा घूम के धराता
जातिये धरम पर खाली खतरा बुझाता॥
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