राजू आज परदेश से अपना देश जा तारें। वइसे त राजू के ऑफिस बम्बई में बा बाकिर ऑफिस का काम से हफ्ता - दस दिन खातिर विदेश जात आवत रहेलें। ई पहिला बेर बा कि दू महिना खातिर, ईहां अफ्रिका आवे के पड़ल रहे। फ्लाईट का डिपार्चर होखे में अभी तीन घंटा से बेसिए के देरी बा। पता ना काहे ई नियम बनल बा जे अन्तर्राष्ट्रीय उड़ान खातिर कम से कम चार घंटा पहिले एयरपोर्ट पर पहुंचल जरुरी बा जबकि सब फार्मलिटी एक-डेढ़ घंटा से बेसी के काम नइखे।
देश माने उनकर शहरी आवास। राजू के बाबूजी जब ले रहीं, पूरा परिवार का संगहीं दोसरा शहर में रहे लागल रहनी। उहां के सीधा सिद्धांत रहे जे परिवार अलग अलग रहला से, एक त आपसी प्यार ओतना मजबूत ना रह पावेला आ चिन्ता बनल रहेला से अलग। बाबूजी के असमय मृत्यु, पूरा परिवार के हिला दिहल। बाबू जी का ना रहला का बाद राजू ओही शहर में रह के कसहूं आपन पढाई पूरा कइलें। जब राजू नोकरी करे लगलें, तऽ माई का संगे दोसरा शहर में रहे लगलें आ गांव से सम्पर्क लगभग ना खानी रह गइल रहे। वईसे त राजू के गांव से संबंध पहिलहीं से कमे रहे।
फ्लाईट के इन्तजार करऽत करऽत जब मन उबिआए लगल तऽ अड़ोस पड़ोस में बईठल जातरी लोग से बातचीत होखे लागल। पता चलल कि एक जना बुजुर्ग तऽ राजू का एकदम बगले का गांव के हउवन। नाम रहे राम जी सिंह। उमर का हिसाब से राजू उनका के काका कह के बोलवलन त उनकर कवनो विपरीत प्रतिक्रिया ना देख के बस राम जी सिंह, राजू के काका बन गइलें। अब उनके से बतकही होखे लागल। समय कटला का संगे, गांव जवार के समाचार मिलल, काहे से कि राम जी काका मोबाईल का माध्यम से गांव से हरमेशा जुड़ल रहेलें आ बीस बरिस से परदेश में रहला का बादो गांव जवार का सब घटना पर अपडेट लेत रहेलें।
बातेबात में रामू काका अपना एगो लइकाईं का मित्र का बारे में बतावे लगलें आ राजू दूगो मित्र के बात कहानी जइसन सुने लगें। नाम राखला प पता चलल कि उ मित्र केहू अउर ना राजू के बाबूजी हीं रहनी। जब ई बात राजू बतवलें त राम जी काका का खुशी के देखते बनत रहे। विदेशी एयरपोर्ट प काका खुशी से चिल्लात राजू के अंकवारी में भर के रोवे लगलें, जईसे उनकर आपने कवनो बिछूड़ल बेटा मिल गईल होखे। राम जी काका कहलें कि जब से तूं अपना माई के लेके शहर में आ गईलऽ, तब से तोहरा लोगन का बारे में कवनो जानकारीए ना मिलत रहे। राजू तुरन्त घरे फोन लगा के माई से सब बात बतवलन। ओने से माईयो राम जी काका से बात करे के इच्छा बतवली आ कहली कि राम जी बाबू के तूं अपना संगे घरे ले के अइहऽ आ एक दू दिन, ईहां रह के उहां का गांवे जाएब।
राजू से उनका माई अउर पूरा परिवार के सुख - दुख पूछे में कब तीन घंटा बीत गईल, पते ना चलल। फ्लाईट में बोर्डिंग कईला का बाद, बगल वाला जातरी से सीट के अदला बदली क के दूनों जने फेर घर परिवार आ जवार का बतकही में डूब गईल लोग। राम जी काका का जब ई पता लागल कि राजू के भाई लोग पढ़ लिख के अलग अलग शहर में नौकरी करऽता लोग आ माई राजूए का संगे रहेली त उनका चेहरा पर निश्चिंतता के जवन भाव लउकल, उ राजू के बहुत कुछ सोंचे प मजबूर क दिहल।
राम जी काका का बेवहार आ विचार से राजू का आज एगो नया सीख मिलल कि मित्रता खाली एगो संबंध के नांव ना हऽ, बलूक एगो आत्मिक जुड़ाव हऽ आ राम जी काका, राजू का बाबूजी से ओहिंगऽ जुड़ल बाड़न, ना तऽ लइकाई का मित्र का परिवार से आज केतना लोग भावनात्मक जुड़ाव रखले बा। जहां आपन भाई बहिन धन-दउलत आ भौतिक सुख सुविधा का पीछे खून के संबंध नइखे निभावत, उहां राम जी काका जइसन लोग बा जे नवका पीढ़ी के प्यार आ संबंधन का खुशबू के अहसास करा रहल बा, जवना मिठास से राजू आज ले दूर रलेहँ।
एतने में एयर होस्टेस के आवाज आइल जे विमान अब बम्बई पहुंचे वाला बा। राजू, अपना माई का कहला अनुसार राम जी काका के ले के जब अपना फ्लैट में पहुंचलें, माई खाना बना के तइयार रखले रहली। सूते से पहिलहीं राम जी काका राजू का माई से कह दिहलें जे भउजी रउरा से मिले खातिर आज रूक गइनी हँ बाकिर बिहने फजिरहीं गांव खातिर निकल जाइब।
भोरहीं रामजी काका गांव खातिर चल गइलें आ राजू सोंचे लगलें जे सवारथ के तनिका सा तेआग आ प्यार के विस्तार दे के जब बहुत सारा लोग के आपन बनावल जा सकेला तऽ तनिका सा बेसी सुख सुविधा खातिर रिश्तन के मार के अदमी का भला कवन धरोहर मिल जाता। एयरपोर्ट पर मिलल, एक तरे से बिल्कुल अनजान, राम जी काका आज राजू खातिर एगो प्रकाश स्तंभ बन गइल बारन।
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