अबे कुछ साँस बाकी बा - सुभाष पाण्डेय

छोड़ा के हाथ जनि जाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।
तनिक बिलमीं गजल गाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

अबे हठ बा निहारबि मौत के अपनी तबे जाइबि,
विदा के गीत जनि गाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

बिना साहस बिना बल शांति के सब बात थोथा हऽ,
वचन ई साँच गठिआईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

नयन में जोति बा बहुते दिखाई देत बा सब कुछ,
अपन चश्मा ना पहिनाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

उगावे के ह सूरज-चाँद फिर नवका समय खातिर,
रवाँ असमान बनि जाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

लगा के पाँव में पैकड़ चली कइसे भला अदिमी,
पथल के पाँव बनवाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

दरद के लोर में सानल पिसाने के सुखल रोटी,
हँसी सब लोग छिपि खाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

लड़ाई हर घरी जानल अजानल शत्रु से बाटे,
चलीं कुछ के त निपटाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।

न बा 'संगीत'' साहित शास्त्र ना तहज़ीब कविता के,
बितावे दिन कहाँ जाईं, अबे कुछ साँस बाकी बा।
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सुभाष पाण्डेय
प्रधान सम्पादक, सिरिजन, भोजपुरी पत्रिका।
मुसेहरी बाजार, गोपालगंज, बिहार।

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