माला - सुभाष पाण्डेय

नेता जी सोमार के गाँव में वोट माँगे आवेवाला रहनीं। अतवारे के साँझि के नेता जी के खास पूरन घर-घर फूल के माला बाँटत रहलें। पूरन के गिनती गाँव के मनबढ़ू आ पियक्कड़ नौजवानन में होत रहे। ऊ माला देत जासु आ कहत जासु कि नेता जी जब दुआर पर आईं त ईहे माला पहिना के स्वागत करे के बा।
केहू उनुका डर से भा केहू उनुका राय से माला ले लिहल लेकिन दू अदिमी, फुलेसर आ चनेसर माला ना लिहलें। साफ कहि दिहल लोग कि हमनीं का ई नेता, इनके नीयत आ इनकी पाटी के नीति नीमन ना लागेला त माला काहें पहिनाइबि जा।
दूसरा दिने नेता जी के गाँव में दौरा भइल। हर दुआरी गइनीं। स्वागत भइल आ माला पहिरावल गइल। फुलेसर आ चनेसर के दुआरे नेता जी ना गइनीं।
तिजहरिया चनेसर साग-सब्जी किने बजारे जात रहलें। अबे सड़क पर कुछुवे दूर चलल रहलें कि पीछे से तेज चाल से मुँह ढँपले आवत एगो दुपहिया सवार उनके जबरदस्त ठोकर मारि के तेज चाल से आगे भागि गइल। ओ सवार के केहू देखनिहार चीन्हि ना पावल। चनेसर सड़क से दस फुट दूर जा के गिरलें। हल्ला मचल। लोग दउरल। कवनो तरे अस्पताल पहुँचावल गइलें। अस्पताल में पता चलल कि चनेसर के दुनू गोड़ आ दुनू हाथ टूटि गइल बा। माथा पर बहुत जोरदार चोट के चलते बेहोश हो गइल बाड़ें।
खबर सुनि के फुलेसरो देखे गइलें। चनेसर के हालत देखि के भीतर से काँपि गइलें। आपन घर-परिवार, बाल-बच्चा सब के सलामती के चिंता सतावे लागल।
दूसरा दिन होत बिहान फुलेसर पूरन के दुआर पर पहुँचलें। पूरन के देखते कहलें - 'ए पूरन! नेता जी अब कहिया अपना गाँवें घूमे आइबि?'
'नेता जी अब कहिया आइबि, कवनो ठीक नइखे। पूरा लोकसभा घुमे के बा। तू काहे खातिर पूछत बाड़? नेता जी से कवनो काम बा का?' - पूरन पुछलें।
'ना, नेता जी से कवनो काम त नइखे। अगर उहाँ का आईं त एगो माला हमरो घरे भेजवा दिहऽ। - कहि के फुलेसर हारल मने लवटि चललें।
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सुभाष पाण्डेय
प्रधान सम्पादक, सिरिजन, भोजपुरी पत्रिका।
मुसेहरी बाजार, गोपालगंज, बिहार।

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