दिन बहुराइल बा - सौरभ पाण्डेय

दिन बहुराइल बा अब जाके
सदियन के ऊँघी टूटल बा
चमक उठल बा मन मरुआइल
मनसायन जे घड़ी बनल बा

सूरुज के ना आवल लउके
बेरा डूबल कहाँ बुझाओ
आन्ही-पानी, ओला-पाला
केकर ओ’रहन कवन दियाओ

अधमुअला अस रहे अजोध्या
रोआँ-रोआँ प्रान बहल बा

पीढ़ी ना पीढ़ियन के चिंता
बनल फाँस हिरदै में जामल
ताकत टुक-टुक बरिसन बीतल
रहल करेजा बाकिर तातल

गत्ते-गत्ते, रेसे-रेसे
लोक राग के तान चढ़ल बा

मन में, तन में, जन में, कन में
राम बिरल बन व्यापल बाड़े
जे बन्हले मरजादा जग के
ऊ दसरथसुत जनमल बाड़े

इचकी भर ई बात भुलाके
निहतनियन के तींत बढ़ल बा

तन से मनई मन से राछछ
उतपाती अतताई पागल
मन्दिर भर ना अहसासो के
तुरला थुरला में बस लागल

जिद-जबरी के घटा-टोप बलु
पाँच सदी के बाद छँटल बा॥
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लेखक परिचय:-
नाम: सौरभ पाण्डेय
एम-2 / ए-17, ए.डी.ए. कौलोनी
नैनी, इलाहाबाद -211008 (उप्र).
सम्पर्क - 09919889911





मैना: वर्ष - 10 अंक - 121 (जनवरी 2024)

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