लोक जीवन में राम जी के आस्था - जनकदेव जनक

"जय रामजी के भाई,"
सामने से आवत बुधन के देख के लोटन प्रनाम कइलें आ पूछलें, "का हाल बा ?"
"राम राम भाई। सब रामजी के दया बाटे। तू बताव आपन हालचाल। कइसन बाड़अ?" लोटन प्रनाम के जवाब देत पूछलें।
"ठीक नइखे भाई। का कहीं, दुसमन हरमेश पाछा लागले रहत बाड़ेंसन, बहुते दिन से परेशान बानी।" दुखी मन से लोटन कहलें।
"जेकरा के राम ना बिगड़ेहें, ओकरा के केहूं ना बिगाड़ी भाई। राम के नाम लअ। सब ठीक हो जाई। सबुर के फल मीठा होला।"
राम राम पर आपसी बतकही के ई रीत बहुत पुरान बाटे। एक दुसरा के देखके मुंह से निकलीय जाला - 'राम राम , जय रामजी के!' एकर मतलब भइल कि राम गंवई जीवन के चेतन आ अवचेतन मन में रचल -बसल बाड़ें। भारत के आत्मा ग्रामीण अंचल में बसेला। गांवन में आजो परंपरा बा कि केहू परिचित सामने पड़ जाला त राम राम होंइए जाला।
लोक जीवन में राम के नाम बड़ा बेयापक बाटे। राम आदमी के रोम रोम में बसेलेंन। घट घट में बेयाप्त बाडेंन। राम के माया जन मानस पर सवार बाटे। जन सरोकार से ओतप्रोत राम के अलग कइल बड़ा कठिन बा। चाहे बोल चाल के भासा होखो भा घर गृहस्थी के दशा। गिनती के शुरुआत राम एकम राम होखो चाहे मुअला के बाद राम नाम सांच हअ। कायस्थी भासा रामगति देहु सुमित होखो भा अष्टजाम अनुष्ठान के मंत्र हरे राम हरे कृष्णा। जनम मरन, शादी बिआह, परब तेवहार में रामेराम बा।हर जगे राम नाम के लूट बा।

राम नाम के लूट बा लूट सके से लूट,
अंत काल पछताई उ जेकर प्रान जाई छूट।

साधु संगत होंखो भा गंवई अंचल। हर जगे राम नाम के लूट मचल बाटे, जेकरा लूटे के बा उ लुटता आ जेकरा जपे के बाद उ जपता। केहूं राम नाम के जपे में मगन बाटे त केहूं राम राम के रटे में। कन कन में राम बेयाप्त बाडेंन। एही से कहल गईल बा -

'राम के नाम सदा मिश्री, उठत बइठत ना बिसरी।'

जन जन के मन में बइठल राम कबहूं बिसरे वाला नइखन। धरती पर जन्म लेवे वाला आदमी हरमेशा अपने जनम सवारथ के बारे में सोचत रहेला कि ओकरा जन्म लेवे के मतलब का बा। एही से संत लोग कहले बा -

'राम नाम सब कहे दशरथ कहे ना कोय,
एक बार दशरथ कहे तो जनम सवारथ होय।'

लोग पछताला कि राम नाम के महिमा उ जवानी में कदम रखते काहे ना पा लिहलस। काहे कि कलजुग में राम के नामे भव सागर पार करवाई -

'कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा।'

जाड़ा पाला के दिन बड़ कठिन होला।सुरूज भगवान के ना उगला से दिन पहाड़ लेखा बन जाला।ओहू में जब आसमान में बदरी घेरले रहे ला त लइकन के खेल बिगड़ जाला। उ सुरुज भगवान आ बदरी के लुका छुपी देखके मगन हो जालें आ कोरस सुर में गा उठलें -

'रामजी रामजी घामकर
सुगवा सलाम कर,
तोहरा बालकवा के
जाड़ लागत बा।'

एह नश्वर संसार में राम नाम के दोकानदारी चलावे वालन के कमी नइखे। ओकनी के मुंह में राम बगल में छुरी रहेला। राम नाम जपना पराया माल अपना,करे में देर ना होला। लोगन के उल्टा उस्तुरा से मुरत रहेलन सन।एही से कहल गईलक बा -

'जब तक है जिंदगी फुर्सत ना होगा काम से,
ऐसा समय निकालो मिलन हो जाए राम से।'

लोक जीवन में गीत, संगीत आ नृत्य के चोली दामन के संबंध होला। ओकरा बिना लोक जीवन नीरस लागेला। बिना राम के लोक संस्कृति अधुरा बाटे। ओकरा के होरी, चइता, सोहर, लोक गीत जीवंत बनावेला। गीतन के लय आ संगीत के ताल पर माहौल राममय हो जाला। संगीतों में राम के महिमा अपरम्पार बाटे।

फगुआ के गीतन में- होरी खेले रघुबीरा अवध में होरी खेले रघुबीरा..., ओहीं जी चाइता में रामजी लिहलें जनमवा हो रामा चइत मासे, चइत मासे हो चइत मासे...सोहर गीतन में- कौशल्या लूटावे नेह छोहअ ममता आ दशरथ लूटावे अन्न धन सोनवा हो, रामजी लिहलें जनमवा ... आदि लोक संस्कृति के प्रान हटे।

माता कैकई आ राजा दशरथ के वचन पूरा करे खातिर सुकुमार राम के वनवासी रूप में बन जाये के पड़ल रहे। उनुका साथे मासुम उनुकर जीवन संगिनी सीता आ छोट भाई लछुमन रहलें। राह चलत ओह लोग के बिचित्र दशा में देखके देखनिहार लोगन के आंख भर जाव।एह परिदृश्य पर एगो लोक गीत के बानगी देखल जाव -

'रामजी के देखिके पूछला बटोहिया बबुआ बोलना, 
कहवां हटे घरवा दुआर बबुआ बोलना...'

लोक संस्कृति में कीर्तन भजन के बोल आदमी के अध्यात्म के तरफ ले जाला, निराश मन में राम भक्ति के बीच अंकुरित करेला, जीवन में शांति आ आनंद के अनुभूति करावे ला।

कहल गईल बा कि मेहरी के मारल आ घर से भागकर मरद के कतहीं ठौर ना मिले। बाकिर रामजी के किरपा से घर से भागल तुलसीदास संत कवि बन गइले आ राम चरित मानस के रचना कइलें।

'चित्रकुट के घाट पर लागल संतन के भीड़,
तुलसी दास चंदन घिसे तिलक लगावे रघुवीर।'

रामायण के रचयिता दस्युराज बाल्मीकि के कथा भी तुलसी दास से कम नइखे । रामजी के किरपा अइसन भइल कि राम के उल्टा नाम "मरा मरा" रट के बाल्मीकि आदि कवि बन गइलें।

'जान आदि कवि नाम प्रतापू ,भयउ सुद्धकरि उलटा जापू।'

चंपारण के नीलहा आंदोलन राम भक्त मोहन दास करमचंद गांधी के महात्मा गांधी बना दिहलस। उनुकर प्रिय भजन -

'राघोजपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम।
सीताराम जय सीताराम भजो प्यारे तू सीताराम...'

ओहीं जा कृष्ण मुरारी के भक्ति रस में लीन मीरा के भजन में राम के दर्शन अजुबा बाटे -

'पायोजी मैंने राम रतन धन पायो,
वस्तु अमोलक दी सदगुरु किरपा कर पायो
मीरा के प्रभू गिरधर नागर...'

संत कबीर के साखियन में राम के बखान -

'सकल हंस में राम बिराजे,
राम बिना कोई धाम नहीं।'

संत रविदास जी के राम प्रेम -

'अब कैसे छुटे राम रट लगी
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी...।'

आखिर में

'होइहै वही जो राम रुचि राखा,
के करे तरफ़ बढ़ाए साखा।'
----------------------------------------------
लेखक परिचय:-नाम: जनकदेव जनक
पता: सब्जी बगान लिलोरी पथरा झरिया,
पो. झरिया, जिला-धनबाद
झारखंड (भारत) पिन 828111,
मो. 09431730244







मैना: वर्ष - 10 अंक - 121 (जनवरी 2024)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.