राममड़इया गह-गह करे - भगवती प्रसाद द्विवेदी

राम-राम भाई-बहिन सभे!
रामजी अब टेन्ट से घरे लवटि अइनीं आ प्रान-प्रतिष्ठा का बाद जन-जन में बेयापे लागल बानीं। राममड़इया गह-गह करे लागल बा। जे सवाल उठावत बा, ओकर त बाते दीगर बा। 'जे मोरा राम के ना, से कवना काम के!' जब ले सांस,राम से आस। जब सर्वोच्च न्यायालय के फैसला अयोध्या राम मंदिर के पच्छ में आइल आ पछिला पांच अगस्त के मंदिर निरमान के दिसाईं भूंइ पूजन भइल, राम के चरचा फेरु से जन-जन के जबान पर आ गइल। अइसन लागल, जइसे बरखा में भींजत, वने-वने भटकत राम घरे आ गइल होखसु। ई कइसन संजोग बा कि एगो लोकगीत में राम के मुकुट, लछुमन के पटुकवा (दुपट्टा) आ सीता के मांग के सेनुर भींजे के चरचा बा, फेरु त राम के घरे लवटे के जिकिर होत बा:

'मोरे राम के भींजे मुकुटवा,
लछुमन के पटुकवा,
मोरी सीता के भींजे सेनुरवा
कि राम घरे लवटहिं ।'

एक बेरि फेरु दूरदर्शन पर रामायण के लवटानी का भइल कि सउंसे लोक राममय हो गइल। हमनीं के लोक राम से बड़हन राम के नांव के मानेला आ ओकर भरपूर आस्था बा कि एह कलजुग में जोग, जगि आ धेयान से बढ़िके राम-गुन गवला के महातम बा। एही से गांव से लेके नगर-महानगर ले दुर्गा पूजा आ दशहरा का बादो रामलीला के अभिभूत करेवाली परिपाटी रहल बा। काशी में रामनगर के रामलीला ओइसहीं मशहूर बा, जइसे मीरजापुर के कजरी -

'लीला रामनगर के भारी,
कजरी मीरजापुर सरनाम!'

दरअसल भोजपुरी लोक के कन-कन में राम बेयापेलन। होत फजीरे एक-दोसरा से हाथ जोरिके 'राम-राम ' होला। आखिरी सांस ले इहे अरज कइल जाला -

'राम के नाम हृदय में धरो, न सरै, न गलै, नहिं होत पुराना!'

हरदम चिरनवीन रहेला ई राम नाम। तबे नू मरला का बादो इहे आवाहन कइल जाला 'राम नाम सत् है!'

जन-जन में जवन राम रमल बाड़न, ऊ महाराजाधिराज का रूप में राज करेवाला राम ना हउवन। ऊ त वने-वने भटकत राम के पूजेला, सीता का वियोग में रोवे-कलपे वाला राम के देखिके लोर बहावेला। लोक के नायक हउवन रावन समेत तमाम दईंतन के सरबनास करेवाला राम। ताड़का के बध आ अहिल्या के उद्धार करेवाला राम। सबरी के जूठ बइर खाए वाला राम। दलित निषाद ,केवट से दोस्ती निबाहेवाला राम। हरेक परानी में ऊ ओही राम के जोहेला। तबे नू गोसाईं जी के कहनाम रहे - 

'सियाराममय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरि जुग पानी ।' 

एही पानी से भरल-पुरल परानी के लखिके संत रैदास बेरि-बेरि गोहरवले रहलन-

'प्रभु जी, तुम चंदन, हम पानी!
प्रभु जी, तुम दीया, हम बाती।'

बेगर पानी में रगरले ना चंदन से गमक मिली, ना बाती बिना दीया से अंजोर। एही से राम लोक में रमल बाड़न आ लोक अपना भीतर पइसल राम में रमल रहेला।

ओही लोक के प्रतीक रहलन मंगनी बाबा। टीका-फाना कइले आ कांख में झोरी दबले ऊ भीखि मांगसु ।हरेक दुआर पर जाते ऊ शुभकामना देसु - 

'राम मड़इया गह-गह करे, चारो कोन दरब से भरे, लाख कोस पर दीया जरे!'

उन्हुकर मए तुकबंदी रामे से शुरू होत रहे आ जिनिगी के सभे किछु ऊ रामे के निछावर कऽ देत रहलन।जइसहीं ऊ आवसु, लोग-लरिका चारू ओरि से घेरि लऽ स। ऊ झूमि-झूमिके गावे लागसु -

'राम नाम लड्डू, गोपाल नाम घीव
हरि नाम मिसिरी, घोरि-घोरि पीव!'

ई चिरई रूपी जीव त रामे के हऽ आ ई खेत रूपी संसारो रामे के। फेरु का पूछेके बा - 

'रामे के चिरई, रामे के खेत, खा लऽ चिरई भरि-भरि पेट!'

मंगनी बाबा जवन किछु मांगसु, रामे के नांव पर। जवन किछु कहसु, रामे से जोड़िके। उन्हुका अधिका ना, खाली पेट भरिके परवाह रहत रहे। ऊ इहो कहसु - 

'ना मांगिले हाथी-घोड़ा, ना मांगीं अशरफी,
रामजी के नांव मांगीं पेटवा के खरची!'

मंगनी बाबा नियर सउँसे भोजपुरी लोक राममय रहल बा आ ओकरा जिनिगी के आधार राम गुन गावल रहल बा। तबे नू ऊ नित नवीन राम के नांव हिरदया में बसवले राखेला -

'राम के नाम हृदय में धरो, न सरै, न गलै, नहिं होत पुराना!'

'उलटा नाम जपत जग जाना, बाल्मीकि भए ब्रह्म समाना।'

कहल जाला कि 'मरा-मरा' जपत-जपत डकइत बाल्मीकि 'रामायण ' रचिके अमर महाकवि हो गइलन।भोजपुरिया समाज कबो मरण से ना त डेराला, ना अमरता का पाछा भागेला। एही से ओकर जिनिगी जियतार बनल रहेला -

'मरण को जिसने बरा है, उसी ने जीवन भरा है।'

शक्ति के आराधना रामोजी ओह घरी कइले रहलन, जब रावन का संगें उन्हुकर निरनायक लड़ाई होत रहे आ राम-रावन के महासमर अनिर्णित रहि गइल रहे। राम रात में दैवीय शक्ति के आराधना शुरू कऽ दिहलन। देवी के चरन में एक-एक कऽके सइ गो फूल चढ़ावे के रहे, बाकिर एगो फूल कम परि गइल। रात में सूतल कुदरत से कइसे फूल तूरल जा सकत रहे? गुनावन में परल राम के मन परल कि माई कोशिला उन्हुका के 'राजीव नयन 'कहत रहली। जरूर उन्हुकर आंखि कमल लेखा होई। सोचिके ऊ एगो आंखि निकालिके देवीमाई के समर्पित कइल चहलन। जइसहीं ऊ आंखि निकाले खातिर तलवार उठवलन, एकाएक परगट होके माई भगवती उन्हुका जीत के वरदान देत उन्हुके में समा गइली ।

महाप्राण निराला के अमर रचना 'राम की शक्ति-पूजा' एही भाव भूंइ प रचाइल रहे, जवना के आधुनिक रामचरितमानस मानल जाला। ओह में देवी के राम खातिर उद्गार रहे -

'साधु साधु साधक! धीर धर्म धन्य राम!
कह लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम
होगी जय, होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन!
कह माता शक्ति राम के बदन में हुई लीन।'

आजुओ नवरात्र में शक्ति-साधना के परंपरा कायम बा।

जब राजघराना के बात आवेला त खंजड़ी बजावत बालक राम के आवाज सुनिके ऊ हिरनी बेयाकुल हो जाले, जवना के संतान मिरिगा शावक के शिकार कऽके ओकरे सुकवार चाम से खंजड़ी बनावल गइल रहे। पछिला दू साल कोरोना महामारी का चलते नवरात्र के मोका पर भलहीं मंच प रामलीला ना भइल, बाकिर दूरदर्शन रामलीला जरूर देखवलस,नवकी पीढ़ी रामायण देखिके अभिभूत भइल। कहातो आइल बा -

'राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है/ कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है।' 

आजुओ धनुर्धर वनवासी रामे लोकमानस के राजाराम बाड़न। तुलसियो बाबा 'कानन' के 'शत अवध समाना' कहले रहलन। लोक खातिर समर्पित लोक में रचल-बसल राम जब ले सृष्टि के अस्तित्व बरकरार रही, जन-जन में एही तरी रचल-बसल रहिहन आ आपन लोक आधारित भारतीय संस्कृति अइसहीं जियतार बनल रही, राममड़इया गह-गह करत रही। रामे के चिरई, रामे के खेत, खा ल चिरई भरि-भरि पेट ! राम नाम लड्डू, गोपाल नाम घीव, हरी नाम मिसिरी घोरि-घोरि पीउ! जै सियाराम!
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मैना: वर्ष - 10 अंक - 121 (जनवरी 2024)

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