इक दिन बहुत हाहाकार मचल
भात, दाल, तरकारी में।
काहे भैया नून रूठल बा
बैठक भइल थारी में।
दाल- तरकारी गुहार लगइलक
नून के बैठ गोर थारी में
तरकारी कहलक सांस छूटता
दाल बा मरे के तैयारी में।
भात कहलक हे नाथों के नाथ
रऊआ बीना इ दुनूं अनाथ
रऊआ जे एकनी में मिल जइति
हमरो जीवन धन्य बनइति।
थरिया कहलक हम रहेम खाली-खाली
भात-दाल-तरकारी जे ना हमरा के सम्भाली
बाज-बाज के हम टूट जायेम
रऊआ जे ना एकनी के पाली।
फिर आगी सुन आइल भागल पराइल
चुल्हा चौकी भी साथे लाइल
नून के लगे जा के
हाथ जोड़ रहे खड़ियाइल।
आगी धइलक आपन बात
चुल्हा-चौकी आऊर का हमर औकात
चीनी जे दे भी देता साथ
ना जलेम तबो हम दिन रात।
फेर सभ मिल, नून के बड़ाई कइलक
नून के खूब जयकार लगइलक
ई देख नून मस्त भइल
सब में मिल के ब्यस्थ भइल।
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