खोजे गइनीं हीरा आ हाथे लागल खीरा - कनक किशोर

सभे के चाह मोती हीरा के होला। बाकिर मोती आ हीरा ना हाथे लागेला आसानी से। कबीर साहब कहले बाड़ें कि

जिन खोजा तिन पाईया, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।

किनारे बइठ के कल्पना के जाल फेंकला प त मछरियो ना भेंटाय फेरू मोती कहाँ से भेंटाई भाई। मोती खातिर समुंदर के गहराई में उतरे के पड़ेला, मोती खुद किनारे ना आवे। हीरा कोइला के खादान में मिलेला बाकिर ओह खान में काम करेवाला के जिनिगी भर मुँह में करिखे लागेला। गुणवत्ता के पहचान करि मेहनत कर कोइला के हीरा बनावे वाला जौहरी के हीरा के पहचान होला। बिना मेहनत कहाँ कुछ बढ़िया भेंटाला। साहित्य समुंदर ह जे अपना गर्भ में मोती रखले बा, अइसन खादान ह जेकरा में हीरो छुपल बा। कल्पना के कोरा में बइठ के कइल रचना में आर्टिफिशियल चमक - धमक मिली बाकिर ना प्राकृतिक धमक मिली ना स्थायित्व। कोरा कल्पना के बले उड़ावल साहित्यिक तिलंगी धरती से ना जुड़ला से,काल के ना पढ़ला से आ लोक के ना समझला से समय के साथ ना उड़ पावे आ ना कालजई बन पावे। महामाया विनोद जी के साहित्य के सिरिजना खातिर कथन ह -

देखल यथार्थ
भोगल जिनगी
मन में उठल भाव
कल्पना के उड़नखटोला पर
उड़ के आवेला।

तब जाके साहित्य कागज पर उतरेला। साहित्य में कल्पना के जगह बा बाकिर भोगल यथार्थ से अलग हट के ना। लोक से कटि आ यथार्थ से हटि साहित्य समय आ साहित्य के आईना ना बन सके। चंद्रप्रभा जी कहले बाड़ी - " जब कवनो रचनाकार अपना व्यक्तिगत जीवन के भोगल सत्य के साथे अपना आसपास के समाज के उपजल दरद, तकलीफ आ कड़वा सच्चाई के एक साथ अपना अनुभव के तेल में डुबाके तथ्यात्मक दस्तावेज के बाती बना ओह संघर्ष के समावेशी रूप में साहित्य के सरोकार से जोड़के ओकरा के अभिव्यक्ति देला तब ऊ महज व्यष्टि के कहल के प्रतिबिंब ना होके अपना समय आ साहित्य के आईना बन जाला। जे ओकरा के पढ़ेला ऊ ओकर आपन इतिहास आ वर्तमान जस लागेला।" अइसन साहित्य के विस्तृत फलक में झंकला पर बुझाला कि ऊ पाठक के बन्हल परिपाटी के बाहर देखे - समझे के दृष्टिकोण देला।काल के ताप में तपल जिनिगी के यथार्थ आ जिनिगी के संघर्ष पथ के धूर में सनाइल साहित्यिक सिरिजना कालजई बन जाला आ अपना में साहित्यिक मोती - हीरा छुपवले रहला ।

रचना कतनो सेसर होखे तबो सर्वमान्य ना हो पावे।एक के खातिर सेसर त दूसरा खातिर सतही।एकर कारण लोक के अंतर बा।अइसना में लोक के रूचि के परिष्कृत कइल साहित्य के काम ह। एह खातिर पाठक के राय आ सवाद के समझे के होई। लोक के भाव आ ताव के बूझे के होखी ना त ना लोक अपनाई ना समय। गुणवत्ता पूर्ण साहित्यो कबो - कबो आपन पहचान ना छोड़ पावे साहित्य जगत में आ अकाल मृत्यु के शिकार हो जाला कबो बाजारवाद के प्रभाव में त कबो मंच के आभाव में। ' जे दिखेला उहे बिकेला ' के सामाजिक संस्कृति में आपन जगह ना बना पावे साहित्यिक हीरा - मोती युक्त साहित्य आ लेखक के बइठका से बाहर के मुँह ना देखि पावे। कहलो गइल बा एगो शायरी में -

बहुत से मोती मर जाते हैं
समंदर के कोख में
हर कोई तो उँगलियों की
रौनक नहीं होता।

ई त तब होला जब बढ़िया साहित्य सामने आके आपन जगह ना बना पावे बाकिर ओकर सोंची जे भ्रुण हत्या के शिकार हो जाला। साहित्य संसार के मुँह ना देख पावे अर्थ के आभाव में आ पांडुलिपि के रूप में रह जाला लेखक तक समिट के।ओह साहित्य में छिपल मोती मर जाला आ ओकर रौनक दुनिया ना देख पावे।

समाज तेजी से बदल रहल बा आ समय के साथ साहित्य के दुनियो। अइसना में हमरा रोग लागि गइल साहित्य के। पहिले ना हम हीरा - मोती साहित्य में खोजनीं ना परोसनी। जिनिगी भर दूर रहनी सोना - चानी से त बुढ़ापा में हीरा - मोती के फेर में का पड़तीं। असहूं चमक - दमक ना भावे हमरा आ हर चमकदार चीज सोना ना होखे इहो जानींला। साहित्य के रोग लागल आ सब छोड़ छाड़के रम गइनी रमता जोगी अस जब कि प्रेमचंद, निराला, परसाई, मुक्तिबोध,बेचन पांडे उग्र के जीवनी से ज्ञात रहे कि पेटो पर आफत आ जाला साहित्यकार के। बाकिर एक त मतिमंद आ ऊपर से उहो मरा गइल नाम के चक्कर में, रास दादा के चक्कर में जे आके पढ़ा गइले मरे के बाद जीये के तरीका। गुरु के पास गइला पर आपन बुद्धि धइल रह जाला। हमहूं गुरु के चक्कर में पड़ गइनीं। गुरु मंत्र मिलल कि जिनिगी भर गींजत रहबऽ कुछु ना भेंटाई बबुओ अपना सिरिजना में हीरा - मोती डाल,गूणवत्ता के मोल होला,उहे रत्न ह साहित्य के,ना होखे पाले त साहित्य समुंदर में डुबकी मार खोज आ ओकर उपयोग करऽ। आगे कहले बड़ से सीखे के चीज ह। बड़का कट पेस्ट के अपना रहल बा त तोहरा मौलिक के बीमारी लाग गइल बा। कहीं के ना रहबऽ।धन धर्म दूनों जाई। धर्म जाई त जावऽ बाजारवाद आ वैश्वीकरण के समय ओकर का जरूरत बा बाकिर धन के मोल समझऽ। गुरुजी आगे कहले सत्ता के लोग कुर्सी के छीना-झपटी करत बा, पार्टी बदलत बा। बाजारवाद में लूट संस्कृति आपन पैर तेजी से पसार रहल बा। बाबा लोग धर्म के बेच रहल बा। अइसना में तू आपन धन लगा साहित्य समृद्धि में लागल बाड़ऽ। अबहूं चेतऽ ना त साहित्य में का होई ई त भविष्य बताई बाकिर कुलबोरन संज्ञा से विभूषित हो जइब एह में शक नइखे। साहित्य के आईना में लोग समाज के चेहरा देखेला तू समाज के चेहरा देख सिरिजना करऽ।पाठक के चित्त आ मस्तिष्क पढ़ि, बाजार के साहित्यिक मिजाज भाप छपबऽ तब जाके साहित्यिक संसार के अमृत मिली पिये के। साहित्य में रस अलंकार के महत्व होला। नया रस बाजारू रस के प्रचलन आज खुब बा,पाठक ओकरा के पसंदो करत बा।जम के परोसऽ।रहल अलंकार के बात त एकरा खातिर कट पेस्ट फार्मूला, बिनु मेहनत भेंटा जाई हीरा - मोती।

गुरु मंत्र दिमाग पर असर दिखवलस। साहित्य में हीरा - मोती खोजे खातिर वर्तमान समय के साहित्य में खूब डुबकी मरनीं। साहित्य के दुनिया में यथार्थ कम भरम भरल पड़ल मिलल। यथार्थ जे रहे उहो पालिस कइल। शुद्ध यथार्थ खातिर हाथ - पांव मारल बेकार।भरम में असहीं मनई पड़ल बा।भरम परोस आ बढ़ा अपना माथे कलंक काहे के लीं ई सोच पालिस कइल यथार्थ के ऊपर के चमकी उधरनी त ई का देखऽ तानी कि सच्चाई के तीन फाँक जोड़ परोसल गइल बा। ऊपर से एगो,भीतरे तीन फाँक खीरा जस।माथ धके बइठ गइनीं कि गइनीं खोजे हीरा आ हाथे लागल खीरा।इयाद पड़ गइलन बाबा जे कहत रहन कृत्रिमता से भाग बबुओ आर्टिफिशियल जुग उहां ले जाके पटकी कि ना तू रहब एक,ना तोहर परिवार आ ना तोहर समाज।बिखरल आ टूटल चीज जुटे ना।जोड़बऽ त ऊपर से एक भीतर से तीन के कहो तेरह मिली। बाजारवादी संस्कृति में सृजित साहित्य में गुणवत्ता - हीरा मोती के खोजल पत्थर पर माथ पटकल रहे। अंधेर नगरी ह बाबू बाजारवाद पाठक के मानस के अपहरण कर चुकल बा। साहित्य सृजन मनोरंजन खातिर होता लोक खातिर ना। निम्न कोटि साहित्य के बाजार भाव बढ़ा देले बा। दोषी खाली बाजार ना हमनियो के बराबर के बानीं जा। साहित्य समुंदर में अधिक गहिरा गइला प सड़ांध बू मारत बा।ई देख आ बाजार में साहित्य आ साहित्यकार के गिरत भाव देख हीरा खोजे के जगह खीरा बेचे लगनी आ किताब के पन्ना पर खीरा के तीन फाँक परोस रहल बानीं। दुकान चल निकल बा आ घर बढ़िया से चल रहल बा। बाजार के मजा देखत बगल के खाली दुकान भाड़ा पर लेनी ह।ओह में अंगरखा,पाग, माला, गुलदस्ता, सम्मान पत्र आ सम्मानित करे वाला सामग्री के दुकान खोलब। साहित्य के दुनिया में एकर बहुत डिमांड बा।पुरान साथी लोग त ग्राहक रहबे करी,नयको रंगरूट के पकड़ के ले आई कमिशन का चक्कर में। साहित्यिक संस्था के पदाधिकारियन खातिर विशेष छूट के व्यवस्था रही।आई स्वागत बा रउवा लोग के ' सम्मान सामग्री भंडार ' में।
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