प्यार होते सहूर आ जाई - सुभाष पाण्डेय

ज्ञान गुन रीति लूर आ जाई।
प्यार होते सहूर आ जाई।

डीठि लागल रही निसाना पर
कुछ ना कुछ तऽ जरूर आ जाई।

जाम साकी शराब मौसम बा
घूँट मारीं सुरूर आ जाई।

झूठ के झूठ ना कहल जा त
साँच पर सब खसूर आ जाई।

जोन्ह के चान जनि बतावल जा
ना त ओकरो गरूर आ जाई।

रूप के बाग सींचि के राखीं
ना त पतझड़ हजूर आ जाई।
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सुभाष पाण्डेय
प्रधान सम्पादक, सिरिजन, भोजपुरी पत्रिका।
मुसेहरी बाजार, गोपालगंज, बिहार।

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