ज्ञान गुन रीति लूर आ जाई।
प्यार होते सहूर आ जाई।
डीठि लागल रही निसाना पर
कुछ ना कुछ तऽ जरूर आ जाई।
जाम साकी शराब मौसम बा
घूँट मारीं सुरूर आ जाई।
झूठ के झूठ ना कहल जा त
साँच पर सब खसूर आ जाई।
जोन्ह के चान जनि बतावल जा
ना त ओकरो गरूर आ जाई।
रूप के बाग सींचि के राखीं
ना त पतझड़ हजूर आ जाई।
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