अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस - राजीव उपाध्याय

आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हऽ। माने अबले के चलन के हिसाब से एगो इवेंट। सालगिरह टाइप के! जदि एकरा के इवेंट के हिसाब से देखल जाओ तऽ बधाई तऽ बनत बा। मने 'हार्दिक बधाई' आ 'हार्दिक शुभकामना' जइसन परंपरागत बाकिर पॉप्यूलर जूमलन के आसमान में जरुर उछाले के चाहीं। अउरी एही तरे एगो सलाना जलसा नियर एकरो इतिश्री रेवा खण्डे समाप्तः; बिल्कुल हिन्दी दिवस अउरी पखवाड़ा नियर। बाकिर जूमला से कुछ ना कुछ जनजागरन तऽ होए जाला अउरी संगहीं माहौल बनि जाला अउरी माहौल के सुख के बाते अलगा बा। एकदम स्वार्गिक!

हमार मातृभाखा भोजपुरी हऽ बाकिर भोजपुरी हमार मातृभाखा हऽ एह बात के पता हमरा बीस बरिस के उमिर में जा के चलल। भला होखे दिल्ली के ऊ हमरा उपर ई बरियार एहसान कइलस। ना तऽ का जाने हम कबों ई बात जानिए ना पइतिं। बाकिर ओकरा पहिले ले हमरा तऽ इहे पता रहे कि हिन्दी हमार मातृभाखा हऽ।

हमरा ई नइखे पता एकरा के का नाम दीं। उदासीनता आ हीनता के बोध! एह सभ के बीच बिसेस आ चिन्ता के बिसय ई बा कि आजुओ करोड़न लोगन के पता ले नइखे कि उनकर मातृभाखा भोजपुरी हऽ। ई सभ लोग हिन्दी के आपन मातृभाखा मानेला। एतने ना बलुक भोजपुरी बोले वाला मध्यमवर्ग अपना लइका-बच्चन के ई बतइबे ना करेला कि भोजपुरी ओह सभ के मातृभाखा हऽ। उनका घरन में आ तऽ भोजपुरी बोलल जाला भा अँग्रेजी (शिक्षा, क्षमता, जरूरत आ कई बेर दिखावा के हिसाब से)।

यदि साचों में हमनी के भोजपुरी भा अपनी मातृभाखा के ले के गंभीर बानी जा तऽ हमनी के सोशल मीडिया में भोजपुरी में भले लिखीं जा चाहें ना बाकिर हमनी अपना घर के लइकन से भोजपुरी में बतियावे के चाहीं। बदलल समाज बेवस्था में सरकार के बहुत बरियार जोगदान बा बाकिर सगरी दोख सरकार पऽ डालि दिहला से हमनी के जिम्मेदारी खत्म ना हो जाई। जदि लोग एह बेरा ना चेताई तऽ दोसर भाखा जल्दिए मातृभाखा बनि जइहन सऽ अउरी हमनी के देखते रहि जाइब जा। जदि संभव होखे तऽ हमनी के इवेंड मोड से बहरी निकसि के अपनी मातृभाखा (संस्कृति आ अथाह ज्ञान) के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी ले प्राकृतिक तरीका से हस्तांतरित करीं जा।
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लेखक परिचय:-
पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश
लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र
संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in
दूरभाष संख्या: 9650214326

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