बेफिकिर नदिया नहाइल ना भुलाइल आजु ले।
धूरि में देहिया सनाइल ना भुलाइल आजु ले।
जेठ के तपती दुपहरी आम की बगिया में जा
तुरि टिकोरा नून खाइल ना भुलाइल आजु ले।
एकदिन पिनसिन चुरा के भागि चलनीं जोर से
ऊ धराइल, फिनु पिटाइल ना भुलाइल आजु ले।
खोनि के गुड़ुही भइल कंचा के खेला साँझि ले
ऊ सजी कंचा हराइल ना भुलाइल आजु ले।
बाप से मंगनीं चवन्नी जात बेरा इसकुले
ना मिलल, भुँइयाँ लोटाइल ना भुलाइल आजु ले।
साँझि आके बिन धुवे पग कूदि माँ की गोद में
लोत आँचर की लुकाइल ना भुलाइल आजु ले।
जब कबो 'संगीत' निकसे बस उहे सुर मन परे
लाख कोसिस ना धराइल ना भुलाइल आजु ले।
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सुभाष पाण्डेय
प्रधान सम्पादक, सिरिजन, भोजपुरी पत्रिका।
मुसेहरी बाजार, गोपालगंज, बिहार।
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