भोजपुरी के एकनिष्ठ साधक - सूर्यदेव पाठक'पराग'

भोजपुरी साहित्य आ ओसे जुड़ल साहित्यकार लोग पर विचार करे पर अजीबोगरीब स्थिति से गुजरे के पड़ेला। अनेक साहित्यकार त कवनो एक विधा में लगातार साधना कके कवि, कहानीकार,लघुकथाकार भा उपन्यासकार का रूप में आपन पहचान बनावे में सफलता पा जाले। कुछ अइसनो साहित्यकार मिलले जे कवनो विधा में एगो कइसनो किताब छपवा के चुप्पी साध लेले आ अपना के निराला, प्रेमचंद या आचार्य रामचन्द्र शुक्ल मान के आत्ममुग्ध रहेले।सभका बावजूद ज्यादा भोजपुरी साहित्यकार अइसनो बाड़े जे आपन प्रतिभा के सही उपयोग हिंदी में करेले,बाकिर भोजपुरियो में आपन जगह बनावे आ धाक जमावे खातिर कबो कुछ लिख के आ कवनो बतकही चाहे सम्मेलन में दर्शन देके ' भोजपुरी सेवी ' भइला के ठप्पा लगवा लेले।अइसन तथाकथित बड़ नाँववाला साहित्यकार 'भोजपुरी के पार्ट टाइम लेखक' होले जिनका से भोजपुरी का कल्याण के ज्यादा उमेद ना कइल जा सकेला।एह तरह के भोजपुरी सेवियन में ऊपर से भोजपुरी प्रेम के झलक जरूर मिल जाई बाकिर अपना माई भाषा के प्रति एकान्त निष्ठा के अभावे रही। भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता अभी ले ना मिलला के पीछे भोजपुरिया लोग के मन में अपना भाषा के प्रति एकान्त निष्ठा के इहे अभाव कारण रहल बा। बंगला आ मैथिली भाषा के साहित्यकार एह माने हमनी का अपेक्षा काफी जागरूक बाड़े।ऊ अपना लोग से अपने बोली में बात करेले आ अपने भाषा में साहित्य साधना कके ओके चोटी तक पहुंचावे के हर संभव प्रयास करेले। भोजपुरी के साहित्यकार त गिनले गुँथल होइहें जे भोजपुरी में बोलें- बतियावे़ ,लिखें- लिखवावें आ नवकी पीढ़ी के डाँट - डपट के भोजपुरी बोले आ लिखे पढ़े खातिर प्रेरित कइल करें।


भोजपुरी के दिशाई एह तरह के सोच के बवंडर जब दिमाग में उठेला तब भोजपुरी के एगो निष्ठावान साधक चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह के इयाद करिया बदरी से घिरल आसमान में बिजुरी का चमक नियर आंख के सोझ झलक जाला।
चौधरी जी के पूरा साहित्यिक जीवन भोजपुरी का प्रति पूर्णतः समर्पित रहे।उनका समर्पण में दुविधा के कवनो जगह ना रहे। भोजपुरी में सोचल, भोजपुरी में बोलल, भोजपुरी में लिखल, नवकी पीढ़ी के भोजपुरी पढ़े-लिखे खातिर प्रेरित कइल आ अपना पइसा से साल भर में कईगो किताब छपवा के भोजपुरी सेवियन के बाँटल उनका जीवन के अभिन्न अंग बन चुकल रहे।
चौधरी जी का भोजपुरी सेवा में सरकारी सेवा कबो बाधक ना रहल,बलुक कृषि विकास पदाधिकारी भा प्रखंड विकास पदाधिकारी का पद पर रहला से आम आदमी के समस्या आ दुख- दर्द जाने के मौका मिलत रहला से कहानी, लघुकथा, नाटक आदि लिखे खातिर' प्लाट ' आसानी से मिल जात रहे,जवना से प्रेरणा पा के चौधरी जी के कलम थथमे ना पावत रहे।
चौधरी जी गद्ध चाहे पद का जवना विधा पर कलम चलवलीं , ओकरा पर जम के लिखलीं, मेधा मेटावे भा ओह विधा के रचनाकार में नाँव गिनावे खातिर ना लिखलीं। तीन गो कविता संग्रह, तीन गो कहानी संग्रह,चार गो एकांकी संग्रह, तीन खंड में संदर्भ ग्रंथ,, तीन गो प्रबंध काव्य आ दूगो नाटक एह बात के सबूत बा। एगो ग़ज़ल संग्रह आ एगो हाइकु संग्रह का अलावा चौधरी जी के तीन गो पुस्तकन के अलग महत्व बा। भोजपुरी में ' सतसई ' के प्रकाशन आज ले नइखे भइल,बाकिर चौधरी जी के लिखल एक हजार दोहन के संग्रह ' आरोही हजारा ' आ के भोजपुरी में ' हजारा परंपरा ' के नेंव रखा गइल। तुलसी का ' रामचरितमानस' में जहाँ तहाँ सोरठा के झलक मिल जाला, संभवतः कुछ दोसरो कवि लोग हाथ अजमवले होई।सन् १९७८ में प्रकाशित हास्य व्यंग काव्य 'श्रीहीरोचरितमानस '(लेखक सूर्यदेव पाठक'पराग') में मात्र पाँचगो सोरठा शामिल बा,बाकिर जब चौधरी जी के कलम सोरठा का ओर चलल त एक हजार के एगो सोरठा कोश ' सहस्त्रदल 'नाँव से प्रकाशित भइल।।बरवै छंद में रचना काल दोहा आ सोरठा के अपेक्षा टेढ़ आ कठीन होला।तवनो छंद के साध के चौधरी जी एक हजार बरवै रचलीं आ ' अजस्रधारा ' नाँव से एगो बरवै कोश प्रकाशित करा दिहलीं।
चौधरी जी के सभ रचना मात्रा आ गुणवत्ता- दूनू दृष्टि से पूर्ण बाड़ी सं। चौधरी जी के लिखल पुस्तकन के चर्चा क्रम में उनकर निधनोपरांत २०१८ में प्रकाशित एक सौ एगारह गो पदन के एगो अनमोल संग्रह 'गोपी गीत' के खास महत्व बा। चौधरी जी पौराणिक प्रसंग के समकालीन स्थितियन से जोड़ के देखे के प्रयास कइले बानी।' आपन बात ' में चौधरी जी के कहनाम बा - ' गोपी गीत ' में गोपी कृष्ण के परंपरागत आ निर्जीव आवृत्ति ना करके ओकरा समकालीन भारतीय जीवन के अनुरूप मानवीय धरातल पर चिंहित कइल गइल बा।एह प्रसंग में चौधरी जी के मान्यता बा कि मौलिकता हमेशा अपना मातृभाषा में विकसित होले।इहे कारण बा कि गोपी गीत के भाषा भोजपुरी बा।
' गोपी गीत ' भाषा,छंद, शब्द- विन्यास,गीतिमयता,गतिमयता आ रसमयता से भरपूर काव्य कृति है,जवना में साहित्य साधना के पौढ़ रूप देखल जा सकत बा।' गोपी गीत ' चौधरी जी का काव्य वृक्ष के अइसन सरस, मधुर आ पाकल फूल ह जवन राधा कृष्ण के समर्पित नैवेद्य हो के आस्वाद हो गइल बा। आपन खून पसेना एक कके तैयार कइल ' भोजपुरी इनसाइक्लोपीडिया (संदर्भ ग्रंथ ) भाग १ आ २ वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अरूण मोहन भारवि का कुशल संपादन में चौधरी जी के निधनोपरांत प्रकाशित भइल ह जवन भोजपुरी के अध्येता आ शोधकर्ता खातिर बहुत उपयोगी बा।
अभी हाल आ चौधरी जी के एगो गीत संग्रह 'माटी करे पुकार' प्रकाशित भइल बा। रामनाथ पाठक का अनुसार- " माटी करे पुकार गीत संग्रह चौधरी जी के लिखल एक सौ गीतन के संग्रह ह। एह में भोजपुरी माटी प उगल भावन के कविता के विषय नइखे बनावल गइल,बलुक एह में सउंसे देश के झांकी मिल रहल बा। हास्य,वीर आ सिंगार के पायल-झनकार के साथ मिलके चौधरी जी के हिरदय के अनुभूति सदेह हो गइल बा।
चौधरी जी का समूचा साहित्यक कृतियन पर विचार कइला के बाद उनकर एगो तस्वीर इयादन के पटल पर झिलमिलाये लागत बा।उनका से केतना बेर आ कहाँ कहाँ भेंट भइल, केतना बार पत्राचार भइल,कवन कवन बतकही भइल आ उनकरा से कतना लाभान्वित भइली,एकर लेखा- जोखा कइल आसान नइखे। अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का कार्य समिति के बैठक में चौधरी जी से अक्सर भेंट होते रहत रहे।हम जब कवनो भोजपुरी सम्मेलन के अधिवेशन में चौधरी जी से मिलत रहीं त उहाँ का ओर से नया प्रकाशित पुस्तक के प्रसाद जरूर पवलीं। सम्मेलन में पहुंचल नया आ अपरिचित साहित्यकारन से परिचय कइल, पुस्तकन के आदान-प्रदान आ ' भोजपुरी साहित्यकार दर्पण ' चाहे महत्वकांक्षी ग्रंथ ' भोजपुरी इनसाइक्लोपीडिया ' खातिर सामग्री एकट्ठा कइल चौधरी जी के उद्देश्य बन गइल रहे।उनका आदेश पर ' भोजपुरी साहित्यकार दर्पण ' भाग- दू आ तीन खातिर साहित्यकारन के परिचय भेजे के अवसर हमहूं पवले रहीं। गोरखपुर के एकमात्र भोजपुरी संस्था ' भोजपुरी संगम ' के एगो मासिक बइठकी में चौधरी जी शामिल भइल रहीं।ओह समय ' भोजपुरी साहित्यकार दर्पण- ४ पर काम चलत रहे।उनका आदेश पर बइठकी में बटोराइल सब भोजपुरी साहित्यकारन के एकहेगो पर्ची देके ओह पर सभ से उनकर परिचय लिहलीं।रात में ' भोजपुरी कहानियाँ ' के पूर्व संपादक आ प्रतिष्ठित कहानीकार गिरिजा शंकर राय 'गिरिजेश' का आवास पर फेर बइठकी भइल आ उनका निजी पुस्तकालय से कुछ भोजपुरी पुस्तकन के जानकारी पाके ' भोजपुरी संगम ' के संयोजक सत्यनारायण मिश्र ' सत्तन ' का आवास पर रात्रि विश्राम कइनीं। ' गिरिजेश ' जी के मरणोपरांत उनकर एगो कहानी संग्रह ' राघव मास्टर ' के प्रकाशन भइल, जवना के आरंभ में ' गिरिजेश ' जी के व्यक्तित्व- कृतित्व पर दस एगारह पृष्ठ के हमार लिखल एगो शोधपरक आलेख शामिल रहे। चौधरी जी के गिरिजेश जी से बहुत अपनापन रहल रहे।शायद जब ऊ 'भोजपुरी कहानियाँ ' के संपादक रहले तब से। ' राघव मास्टर ' छप के आवते चौधरी जी के फोन आइल कि कहानी संग्रह के दू प्रति भेजवा दीं। पुस्तक पवला पर चौधरी जी हमार आलेख पढ़ के फोन पर कहले रहीं - ' गिरिजेश ' जी पर बहुत मेहनत क के लेख तैयार कइल बा।' स्पष्टवादी आ गुणग्राही चौधरी जी के अनुकूल प्रतिक्रिया पा के हमरा खुशी भइल, काहे कि ओकरा में कवनो कमी लउकित त चौधरी जी बिना बतवले ना बकसतीं। ' स्पष्ट वक्ता न वंचकः ' के साक्षात रूप रहीं चौधरी जी।
चौधरी जी भोजपुरी के बड़ साहित्यकार त रहले रहीं, भोजपुरी भाषा साहित्य के गहन अध्येतो रहीं।इहे कारण रहे कि भोजपुरी के शोधकर्ता उनका से सहयोग लेवे खातिर सम्पर्क बनवले रहत रहले। विषय चयन से लेके शोध कार्य में उनका भरपूर मदद मिल जात रहे चौधरी जी से।
साहित्यकार का साथे एगो त्रासदी ई रहेला कि उनका निधन के बाद उनकर प्रकाशित कृतियन संरक्षण ना भइला से ऊ अप्राप्त हो जाली सं आ अप्रकाशित पांडुलिपि रद्दी के भाव बिका जाली सं,जवना से साहित्यकार के जीवन भर के तपस्या से रचल साहित्य लुप्त हो जाला भा कुछ प्रकाशित साहित्य इतिहास का पन्ना में सिमट के रह जाला। साहित्यकार के उत्तराधिकारी सुपुत्र पिता का समूचा भौतिक संपदा के स्वामित्व साधिकार सहेज लेले, बाकिर उनका साहित्यक विरासत आ प्रतिष्ठा के रक्षा ना कर पावस।
ई गर्व के बात बा कि चौधरी जी के साहित्यक विरासत सम्हारे खातिर उनकर सुपुत्र कनक किशोर जी तैयार बाड़े आ अबले 'आरोही रचनावली 'तीन खंड में प्रकाशित करा चुकल बाड़े आ कुछ पुस्तक अलगो से प्रकाशित करावे में जुटल बाड़े।एकरा खातिर कनक जी आ उनकर सहयोगी परिवार धन्यवाद के अधिकारी बा।
भोजपुरी के तपस्वी साधक चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह 'आरोही ' के साहित्यक अवदान पर अभी ले कवनो शोध कार्य भइल बा कि ना,ई हमरा पता नइखे,बाकिर शोधी लोगन का ध्यान एहू तरफ जाये के चाहीं ताकि सही मूल्यांकन हो सके,जवना के ऊ अधिकारी बाड़े।
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सूर्यदेव पाठक'पराग'
द्वारा श्री देवेन्द्र मिश्र
C-499/F, इंदिरा नगर, लखनऊ-226016
मोबाइल नं -9451462773
मैना: वर्ष - 7 अंक - 120 (अक्टूबर - दिसम्बर 2020)

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