चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह ‘आरोही’ जी से एगो छोट मुलाकात - जनकदेव जनक

विलक्षण प्रतिभा के धनी,यशस्वी आ ऊर्जावान साहित्यकार चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह ‘आरोही’ के, के नइखे जानत! आरोही जी विद्या दायिनी मां शारदे के वरद पुत्र रहीं. जेकर असीम किरपा उहां पर बरसत रहे. इहे कारन बा कि उहां के साहित्य के हर विधा में आपना कलम के जादू दिखवले बानी. 
आरोही जी से पहिल मुलाकात: हमार पहिल मुलाकात आरोही जी से 16 जुलाई 2014 के धनबाद फौरेस्ट कॉलोनी में भइल रहे. जब हम भोजपुरी के साहित्यिक पत्रिका ‘सूझबूझ ’के संपादक कृपाशंकर प्रसाद के साथे पहुंचल रहीं. ऐसे त हम उहां के रचनात्मक गतिविधियन के वाकिफ रहीं. बाकिर सोझा होखे के कबहूं मौका ना मिलल रहे. उहां के दरवाजा पर खड़ा होके साहित्यकार कृपाशंकर प्रसाद जी जब कॉल बेल बजवनीं त थोड़ा देर के बाद सफेद धोती कुर्ता में एगो रोबदार व्यक्ति दरवाजा खोलल, जेकरा नाक के ऊपर सोनहला फ्रेम में लागल गुलाबी रंग के सुंदर चश्मा चेहरा के आउर आकर्षक बनावत रहे. उहां के देखते हम दुनू आदमी प्रणाम कइनीसं. उहां के प्रफुल्लित मन से सहज आ सरल भाव में हंसत कहनी, “ आज बड़ बढ़िया दिन बाटे कि एके साथे दु-दु गो साहित्यकारन से भेंट भईल. आई सभे, सुआगत बाटे.” 
साहित्यिक विधा के पारखी विद्वान: बइठका में जब आरोही जी आसन जमा लेहनीं त ठीक उहां के सामने सोफा पर हम दुनू आदमी बइठनीसं. बीच में एगो टेबुल रहे. जावना पर कुछ साहित्यिक पत्रिका, किताब, डायरी के अलावा लेखन सामग्री आदि सलिका से राखल रहे. जुलाई के महीना आधा पार कर गइल रहे, बाकिर गरमी के ताप आ उमस कम ना रहे. काहे कि हमनी तलफत दुपहरिया में उहां के घरे गइल रहीसं. देह से पसीना चुअत रहे. बाकिर ओह कमरा में लागल कुलर के हवा में हमनी के सब गरमी हवा हो गइल. उमस से मछियाइस मिजाज वापस आइल, तब जाके जान में जान आइल. 
एहीं बीचे आरोही जी हमरा से पत्र पत्रिकन में छपल रचनन आ किताबन के बारे में जानकारी लेवे लगनीं. ताकि प्रकासित होखे वाला किताब ‘भोजपुरी कथाकोश’ में ओहके डालल जा सके. 
“ सबसे पहिले ई बताई कि कवन कवन विधा में राउर रचना बाड़ीसं?” आरोही जी सवाल कइनीं. 
“ लिखे के शुरूआत हम नाटक से कइनी. पहिल नाटक मजबुरी रहे. ओकरा बाद कहानी ,लघु कथा, लेख, साक्षात्कार, फीचर, कविता, मुक्तक, दोहा, कुंडली आदि पर कलम लगातार चलत रहेला.” 
उहां के फेरू पूछनी,“ प्रभात खबर के धनबाद संस्करण में राउरा ‘भोजपुरी पाती’ के साप्ताहिक लेखन करत रहीं. ओह में ‘भोजपुरी पाती ’ के कातना अंक छपल रहे?” 
हम बतवनी,“ सन 2004 से 2009 तक लगातार ‘भोजपुरी पाती ’ के लगभग -155 अंक छपल. जवन हास्य व्यंग्य पर आधारित रहे. बुचना के माई अपना मरद के चिट्ठी लिखे. जेमे सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक घटना क्रम भा सरकारी तंत्र के अबेवस्था आ खोट पर चोट होखे. जावना के अखबार के पाठक बड़ा चाव से पढ़स आ अगिला अंक आवे के इंतेजार करस. ” 
आरोही जी हमरा से फेनू पूछनी,“ ओह में कवन कवन पात्र बाड़ेंन सं?” 
“ भोजपुरी पाती में बुचना के माई के साथे बुचना आ फुकनी काकी मेन पात्र में बाटे लोग. बुचना आ फुकनी काकी चिट्ठी के सूत्रधार रहे लोग. एही पात्रन के ताना बाना पर चिट्ठी तइयार होखे. बाद में एकर संकलन किताब के रूप में “चिट्ठी बुचना के माई के” नाम से नवजागरण प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित भइल. ” 
आरोही जी के गंगाधाम जाये के बाद ‘भोजपुरी कथाकोश’ किताब रूप में बाजार में आइल. ओह किताब में हमार 125 रचनन के प्रकाशन भइल बाटे. एह बतकही के बीचे हमनी के आगा शरबत आ जलखई के कुछ चीज आ गइल. शरबत पीके मन तर हो गइल. ओकरा बाद मीठा आ नमकील के सवाद चखे लगनीसं. थोड़की देर के बाद फेरू बतकही चालू भइल. आरोही जी हमरा से अपना गांव जवार, देश परदेश के साहित्यकार मित्रन के नाम पूछे लगनीं. जवना के जवाब हम देत गइनीं. जेमे पत्रकार साहित्यकार उमेश सिंह, कवि वैज्ञानिक मदन मोहन त्वरण, साहित्यकार गंगाशरण शर्मा, कवि अनिल सिंह सेंगर, बिट्टू सिंह, राज कुमार सिंह, कवि वीरेंद्र कुमार मिश्र‘अभय’ जी, साहित्यकार चन्देश्वर प्रसाद, कवि श्यामनारायण पांडेय, कवि आ रंग कर्मी गुरु चरण ‘गुरु’,नाटककार आ रंगकर्मी राजेश कुमार आदि के नाम लिहनीं. 
आत्मीयता बेमिसाल: “ बड़ा होना अच्छा है बड़प्पन उससे अच्छा है.” ई सदगुन आरोही जी के सर चढ़ के बोलत रहे. हमरा बुझाइल कि कृतित्व आ व्यक्तित्व से साहित्य सेवी लोग अइसही प्रभावित ना रहे. काहे कि उहां के अव्वल दरजा के साहित्यकार के साथे साथ एगो अधिकारियो रह चुकल रहीं. जब आरोही जी के अचार, बेवहार आ विचार सोझा देखे के मिलल त हम उहां के सादगी के कायल हो गइनी. दुनू आदमी में लगभग हर रोज फोनिक बतकही होखे. एक दिन हम अपना कार्यालय में समाचारन के संपादन करत रही, तभीये आरोही जी के फोन आ गइल. कुशल क्षेम के बाद उहां के कहनी कि आज जिउतिया हटे जनक जी, बाकिर देखी ना कतही मरूआ के आटा ना मिलत हा. हमारा खातिर धनबाद ओतना देखल सुनल नइखे. का एकर जोगार झरिया में ना हो पाई! आरोही जी के एह आत्मीय आग्रह पर पर हम बागबाग हो गइनी. मन उच्छाह से भर गइल. हम जबाव दिहनीं, “ एकदम हो जाई,सर। तिनको चिन्ता मत करीं.” 
हम उहां से कहनी,“ सिंदुरिया पट्टी झरिया में रउरा कहूं के भेज दीहीं. तुरंते समस्या के समाधान हो जाई.....” तले ओने से आरोही जी कहनी, “ ई काम रउरे करे के बा. आटा लेके धनबाद आ जाई. हम रउरा राह जोहब. हमरा मुंह से निकल कि आच्छा ठीक बा.ओकरा बाद हम अपना आफिस इंचार्ज से छुट्टी लेके बाहर निकल गइनी. साथे अपना कार्यलय में बइठल खबरची लोग पर एक नजर दउरइनी. ओह मेंसे एक खबरची के बाइक पर बइठ के बाजार गइनी आ मरूआ के आटा कीननीं. फेरू ओरोही जी से मिले खातिर धनबाद चल दिहनीं. 
जब मर्यादा के गरदा उड़ल: झरिया में 31 जुलाई 2014 के जनवादी लेखक संघ झरिया इकाई के तरफ से कथा सम्राट प्रेमचंद जयंती पर संगोष्ठी होत रहे. अध्यक्षता कृपाशंकर प्रसाद जी करत रही. जबकि संचालन के बागडोर कवि पत्रकार तैयब खान जी संभरले रहीं. ओहमें मुख्य अतिथि नामचीन साहित्यकार चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह रहीं. मंच संचालन के दउरान अजीबो-गरीब घटना घट गइल. मंच पर खड़ा तैयब खान जी के अचानक खैनी खायके सूरती जागल. उहां के अपना कुर्ता से चुनौटी निकलनीं. चुनौटी के एक छोर खोलके अपना तलहथी पर खैनी रखनी आ चुनौटी के दुसरका छोर खोल के अपना अगूंठा के नाखून से चूना उठाके खैनी पर रखनी. ढक्कन से चुनौटी के दुनू खलल मुंह बंद कइनी.ओकरा बाद इंतमिनान से अपना तलहथी पर अगूंठा रखके खैनी मले लगनी. जब खैनी तइयार भइल त ताली से ठोक के मुंह में फांक गइनी. ई तमाशा संगोष्ठी में शामिल कवि,पत्रकार, कथाकार, उपन्यासकार आदि लोग देख के अवाक रहे. बाकिर केहूं टोक ना पवलस कि साहित्यिक मंच पर ई का होत बा! 
अनुशासन प्रिय आरोही जी अपना जगे से खड़ा भइनी आ संगोष्ठी के अध्यक्षता कर रहल कृपाशंकर प्रसाद जी से कुछ बोले के इजाजत लेहनी. ओकरा बाद कहनी,“ ई सार्वजनिक साहित्यिक मंच हअ ना कि कवनो नाच घर! साहित्यिक मर्यादा आ अनुशासन के पालन होखे के चाही. साहित्यकार लोगन के अलावा दर्शक दीर्घा में कुछ सुननिहारो लोग बइठल बा. अइसनका में संचालक महोदय से ई उमेद ना रल कि उहां के मंच पर खैनी ठोक मर्यादा के गरदा उड़ायेम.” आरोही जी के अनुशासित आ मर्यादित बात सुनके सबके ठकुआ मार देलस. आखिर में मंच संचालक महोदय के अपना गलती के एहसास भइल आ उहां के सार्वजनिक रूप से क्षमा मंगनी. ओकरा बाद फेनू संगोष्ठी शुरू भइल.
साहित्यकार चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह‘आरोही’ जी साहित्य के एगो अइसन सुधी साधक रहीं, जे अपना तप बल से साहित्य के विभिन्न रूपन के दीया हरेक क्षेत्र में जरइले बानी. अपना आत्मबल बल के उजास से जहां रहीं तहां से अन्हार के भगावत रहीं. उहां के कलम के नोंक अतना धारदार रहे कि ओह समय के नामी गिरामी साहित्यकारन के चुभत रहे. कलम के दम पर उहां के पहचान एगो आम आदमी से लेके संतरी से मंतरी तक रहे. जब उहां के कलम कोरा कागत पर नृत्य करे लागे त बुझाव की आज कवनों नया कृति के सृजन होई. उहां के गुमनामी के जंगल में भुलाइल कवि,कहानीकार, उपन्यासकार,नाटककार, साहित्यकारन पर अपना कलम के जादू चला के साहित्य जगत में पहचान दिलवनी. कवनों कुशल शिल्पी लेखा विकृत पथर के छेनी हथउरी मार मार के सुघर मूरत बनावनीं. ओह लोग के अपना दिल के पारस मनि छुआ के सोना बना दिहनीं.
हमारो सौभाग्य रहे जे आरोही जी जइशन विद्वान आ सज्जन व्यक्तित्व के दरशन भइल. उहां के साथ बितावल एक एक पल कीमती रहे. उहां के सन्निध्य में जवन नेह छोह मिलल, ओकर शबदन में बयान कइल मुश्किल बा. आखिर में आरोही जी के श्रद्धासुमन अर्पित करत उहें के एगो गजल से! 
काँट से माली लगावत नेह बा 
ग़म इहे जे फूल बा मुरझा रहल. 
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जनकदेव जनक 
लिलोरीपथरा, सब्जी बगान. 
पो. झरिया, धनबाद, झारखंड. 
इमेल- jdjanak@gmail.com 
मो-9431730244





मैना: वर्ष - 7 अंक - 120 (अक्टूबर - दिसम्बर 2020)

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