पंकज तिवारी के आठ गो कविता

1.

मेघा फारि के बरसा मघ्घा, बुड़ि गा गांउ जंवार
बखरी बइठल छान उजड़ि गइ मचि ग हाहाकार
यार अब कइसे जियाई, पार हम कइसे पाई

मेघा घरे में कूदि रहल बा, चूल्हउ में घुसि आइल
कपड़ा लत्ता चूल्हा चौका बहि ग हाथ न आइल
कइसन आज बिपतिया टूटल पड़ि ग दऊ के मार
यार अब कइसे जियाई, पार हम कइसे पाई

कइयउ जने के घरे के माटी बहि ग कुलि मड़ई में
रहल बइठका मनई खातिर उहौ बहल गड़ही में
बड़े जतन से पाले रहनी सपना टुटल हमार
यार अब कइसे जियाई, पार हम कइसे पाई

रोज रमइया गड़ही पाटत रहा त रोके नाहीं
काटि गइल कुल पेड़ रूख हम कबहूं टोके नाहीं
आज बिपतिया के बरसे से खुलि ग आंख हमार
यार अब कइसे जियाई, पार हम कइसे पाई

खूनन के आंसू रोवत बाटी हम बइठि दुआरे
नहकइ कोन्टल भर पियास में काटे मेड़ बघारे
तनिक बढ़ावे के फेरा में दुखी सकल संसार
यार अब कइसे जियाई, पार हम कइसे पाई
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2.

खेते से जब खटिके फलाने, अपने घरे में आवेले।
लेइ लोटा में पानी दुल्हनिया, गुड़े के साथे धावेले।।

घुट-घुट एक्कइ सांस में पूरा लोटा चाटि गयेन भैया,
टक-टक एकटक दुलहिन देखे केतना थका रहेन सैंया।
तर-तर चूये तन से पसीना गमछा लेइ झुरवावेले।
खेते से जब खटिके फलाने, अपने घरे में आवेले।।

गोरू बछरू के कांटा कोयरे के करत जुगाड़ रहिन,
दुलहिन बड़ी गुनागर रहलीं खटि के खाना खात रहिन।
एहर-ओहर के कानाफूसी में ना समय गंवावेले।
खेते से जब खटिके फलाने अपने घरे में आवेले।।

रोज समय से छोटके के ऊ भेजत रहिन सकूले में,
बड़का लइका बहीपार बा खटइ न कब्भों भूले में।
अंगुरी धइ के रोज सिखावंइ समझ में नइखे आवेले।
खेते से जब खटिके फलाने अपने घरे में आवेले।।

आज दुलहिनों गुस्से में बा पारा चढ़ल अकाश में,
बड़का गोल बा दिना भरेसे बहुतइ पिटे भड़ास में।
संझा कि जब लउटा बड़का बेलना पीठिया साजेले।
खेते से जब खटिके फलाने अपने घरे में आवले।।
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3.

चलऽ चली हे गोंइयां तोंहके गांउ घुमाई हो
पोखर ताल तलैया सब के कथा सुनाई हो

सावन के झुलुआ पर कइसे झूलें गांव जंवार
कइसे कजरी के बेला में बंटत बा घर-घर प्यार
सुनऽ हम तोंहंइ सुनाई हो
पोखर ताल तलैया सब के कथा सुनाई हो

दादा दादी शान घरे के रहत रहा गुलजार
एनके प्यार से जगमग-जगमग करत रहा घर-द्वार
सुनऽ हम तोंहंइ सुनाई हो
पोखर ताल तलैया सब के कथा सुनाई हो

स्वर्ग से सुन्दर गांउ बा भइया, पावन उंहां के लोग
तुलसी नीम गांव के थाती, हर लेवें सब रोग
सुनऽ हम दवा बताई हो
पोखर ताल तलैया सब के कथा सुनाई हो

घर-घर में चौपाल सजेला बरसै प्यार के बोल
मीठे-मीठे बोल झरैं अस जइसन शहद के घोल
सुनऽ हम बोल सुनाई हो
पोखर ताल तलैया सब के कथा सुनाई हो
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4.

ठंढा-ठंढा पनिया पिपरवा के छांव रे
स्वर्ग से सुन्दर देहात मोरा गांव रे

होत भेनसहरी पुरूबवा से सुरजू
हंसि-हंसि आपन लुटावेले प्रकाश हो
हरियर पाती पीयर फूल हंसि देहनी
मारे खुशी पागल, भइल बा अकाश हो
बदर बदर चूयेले महुआ अ जामुन
टूटि परे बीने खातिर गंउवा गिरांव रे
स्वर्ग से सुन्दर देहात मोरा गांव रे

रोज रोज सुबहे किसान नाधे हरवा
चरे खाति गोरू सब गइलेन बहरवां
अमवा के तरे लइका खेलतारेन खेला
हरी हरी दुबिया पे गावेलेन कहरवां
चिल्होरपाती लुकाछिपी सब खेलें
कगजे के गड़ही में बोरे सब नांव रे
स्वर्ग से सुन्दर देहात मोरा गांव रे

गन्ना के रस अउरी चन्ना चबैना
मिलि बांटि खांइ राम रमई रवन्ना
घर-घर दही अउरी माठा के अजादी
कछखर अमवां के खट्टा-खट्टा पन्ना
लइकन सयान सब रहें मिलि-जुलि के
लोगवन में तनिको ना रहे मनमुटाव रे
स्वर्ग से सुन्दर देहात मोरा गांव रे
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5.

मिलिके दीप जलावे के बा
तिमिर से आगे जाये के बा

राह कठिन बा कांटो वाली,
पर एकरे ही पार उजाला।
हार मान लिहले से अच्छा,
हौ लड़िके मरि जावे वाला।।
घुट-घुट के जीयब, का जीयब,
डटि के पथ पे आवे के बा
मिलिके दीप जलावे के बा
तिमिर से आगे जाये के बा

गान हमेशा ओकर होई
काल से लड़िके जे बढ़ि जाई
पावेला हर बार वही कुछ,
जे पावे के प्रण करि जाई
ई जीवन त सब जीयेलेन,
जग में कुछ कर जावे के बा
मिलिके दीप जलावे के बा
तिमिर से आगे जाये के बा
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6.

कस देवता के कोप होइ गवा
कहो फलाने लोप होइ गवा

कुल जोन्हरी के मूर कतरिग्या
छुट्टा बर्धा खेतवइ चरिग्या
अधबेजवा में रहि गइ बेहनि
बारिस में फेरी सूखा परिग्या
मौसम दुश्मन तोप होइ गवा
कहो फलाने लोप होइ गवा

के खेलइ सित्तोड़ भुंइधपकी
खेलब गेम मोबइल पबजी
राम भजन कुछ निकइ न लागइ
ठूंसि कान में मारब मुसकी
बतिया कहां अलोप होइ गवा
कहो फलाने लोप होइ गवा

के तारा के माटी रगड़इ
झउवा भरि के लादी कचरइ
ई कुलि काम न हमसी होये
नहकइ मोर कमरिया पकड़इ
महकइ शम्पू सोप होइ गवा
कहो फलाने लोप होइ गवा

सपना होइग्या दूध दही सब
चना चबैना खांड़ मिली कब
सतुआ घोरि के पीये खातिर
सतमेलुआ अन कहां मिली अब
घर घर पेप्सी कोक होइ गवा
कहो फलाने लोप होइ गवा

कब झुंडन में ऊंखि चुहाये
मारि के ढेला आम तोड़ाये
अहरा पर के बाटी चोखा
कहो फलाने कब दिन आये
कोरोना क प्रकोप होइ गवा
कहो फलाने लोप होइ गवा
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7.

कइसे के रहबइ अकेलवां, पिया हो जनि जा बहरवा
तजि देबै आपन परनवां, पिया हो जनि जा बहरवा

सँइया बेदरदी ना तनिको रहम बा
लागे जइसे मनवा में तनिको ना गम बा
सुनि लिहिते हमरो कहनवा, पिया हो जनि जा बहरवा
कइसे के रहबइ अकेलवां, पिया हो जनि जा बहरवा

छेड़ेला पवन तान मन बहकावेला
कइसे बताईं जिया खूबे हुलसावेला
बहकेला मनवा परनवा, पिया हो जनि जा बहरवा
कइसे के रहबइ अकेलवां, पिया हो जनि जा बहरवा

सुनि ल जे गइलऽ त ठीक नाहीं होई
हमरा नियन केहू ढीठ नाहीं होई
खाइ लेबि माहुर सजनवा, पिया हो जनि जा बहरवा
कइसे के रहबइ अकेलवां, पिया हो जनि जा बहरवा
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8.

मन लहकता कूदि परधानी में, का बा जजमानी में ना

मारि सेंट छिड़काउब, एक्खे बूलैरो लियाउब
टुटही सइकिल से मन बा परेशानी में, का बा जजमानी में ना

काहे सिधा गठियाइ, पेनभ सूट-बूट टाई
नाहि रहब घरे, रहब राजधानी में, का बा जजमानी में ना

करि पूजा सबके पाठ, रुपिया मिले गिन के साठ
अब न रुपिया के रहब परेशानी में, का बा जजमानी में ना

रहे दुलहिनी के राज, साड़ी गहना साज-बाज
नाहि कमी रहे ठाट-बाट शानी में का बा जजमानी में ना
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पंकज तिवारी
नई दिल्ली
9264903459 















मैना: वर्ष - 7 अंक - 118-119 (अप्रैल - सितम्बर 2020)

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