घर -घर नाली, घर-घर गएस
जेकर लाठी, ओकर भएस।
बनी पकऊरा, बनी चाय
इसकुल कउलेज, भाड मे जाए।
छोट आमदी मे , मन के बात
उधोग पति मे, धन के बात।
घर -घर सेपटीक ,बोतल जाए
भरपेट खाना ,केहू ना खाए।
आपन वेतन , खुब बढाई
कर्मचारी मांगे तबआख दिखाईं।
जारी रख, आपन तु पेन्सन
दोसरे के दअ , तु खुबे टेन्सन।
बाह रे शासन , तहार गजबे खेल।
न्याय मंगनी त, कईलख जेल।
होत गलती मे, "साधु जी"बोलले।
कुदी के इ , परदा खोलले।
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शैलेन्द्र कुमार साधु
पं० महेन्द्र मिश्र के मिश्रवलिया
जलालपुर, सारण, बिहार
संपर्क- ९५०४९७१५२४
मैना: वर्ष - 7 अंक - 118-119 (अप्रैल - सितम्बर 2020)
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