हाइकु - कनक किशोर

बाबू बिमार
दवाई आइल ना 
कबले जीहें।1।
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घर जमाई 
ससुरारे बसले 
माथा प घूर।2।
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सावन भादो 
दिन बरसात के 
धान रोपाई।3। 
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झुला कजरी 
हरि जी के झुमर 
रोज गवाई।4। 
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खेत बधार 
चूहू चूहू हरियर 
खुश किसान।5। 
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भादो के रात 
कुचू कुचू करिया 
सुझे ना राह।6। 
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बाजन बाजे 
दुअरा पर आज 
काली पूजाई।7। 
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बाते पे बात 
बतंगड़ भइल 
बिना बात के।8। 
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गाय बेचके 
कुत्ता किनाईल बा 
नया रिवाज।9। 
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राम मंदिर 
वोट के राजनीति 
कबले चली।10। 
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धोती गमछा 
भोजपुर के शान 
खुब फबेला।11। 
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पारंपरिक 
सब रीत रिवाज 
साँची से बाची।12। 
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मुफ्त के माल 
झुठा शान बखान 
कबले चली।13। 
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हम किसान 
अन्न के दाम बिन 
भूखे मुअब।14। 
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हम किसान 
मौसम प्रतिकुल 
सुझे ना कुछ।15। 
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कनक किशोर








मैना: वर्ष - 7 अंक - 118-119 (अप्रैल - सितम्बर 2020)

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