फैशन क गाड़ी अइसन दौरल
जइसे महुवा प आम बा मौरल।
फैसन के बेमारी भईल महामारी
ई त संस्कृति के कूची, सभ्यता के मारी।
माई क आँचर अब गईल भुलाई
बहिन के सलवार अब पहिरे भाई।
भाई के जींस अब बहिन के भावे
बड़ भाई,बहिन बोलावे सब नावे नावे।
केश त मातृशक्ति के शान रहे
माई क अरमान आ बेटी के जान रहे।
केश त नारी के पहचान रहे
इहे सोच रहे राम के, इहे रहीम कहे।
बढ़ल बार आ बान्हल केश
इहे लउकता लइकन क वेश।
छोटका कुरता सरकत पैन्ट
टेटू गोदा के सोचता रही परमानेंट।
आदर, मान, सम्मान सब बिलाइल
अपनापन, भाईचारा कुल ढिमलाईल।
माई, बाप के समझावल लागता बाउर
पिज्जा, वर्गर के आगे के के भावत जाउर।
पहिर उहे जवन तोहके मन भावे
पहिनावा उ जे तन ढाके आ लाज ढकावे।
खूब पढ़ाई लिखाई ई त राउर धरम ह
इंसान बनावल इहो त राउरे कर्म ह।
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नाम: तारकेश्वर राय 'तारक'
सम्प्रति: उप सम्पादक - सिरिजन (भोजपुरी) तिमाही ई-पत्रिका
गुरुग्राम: हरियाणा
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