परजा के निहोरा - विद्या शंकर विद्यार्थी

चलऽ ए बबुआ चलऽ भरत चलऽ आ राम से बोलऽ
मनी बिन फनी जिही कइसे हमनी के काम से बोलऽ

पिता के पुत मनी होलन आ होलन गरब के सपूत 
तुहीं सोचऽ तुहीं कहऽ कइसे अइसे जिही अवधूत 

चल गइलन तऽ चल गइलन मन से नइखन गइल 
ना मनिहें आ ना अइहन ऊ शक बेकार बा कइल 

तोहरा संगे हमनियो के कइल जाई अनुनय बिनय 
कहल जाई लौटऽ ए बबुआ हमनीके तिकऽ समय

समय के साथे शिवके माथे चढ़ जाला गोबरउरा
धो पोछ के साफ कइली आ ना अनसइली गउरा

ए बबुआ बात मानऽ हमनी के घेरले बा बिबशता 
चलबऽ तबे बात बनी आ कुछउ निकली रास्ता 

लकड़ी के दिंअका खाके कब तक हुदहुदवा जिही 
हमनी के हुदहुदवे बानी सँ आखिर के सुधि लिही 

तोहरे पर आसरा बा बबुआ चहबऽ तऽ राम अइहें
भाई से भाई मान जइहें ना कवनो अंजाम लगइहें।
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लेखक परिचयः
C/o डॉ नंद किशोर तिवारी
निराला साहित्य मंदिर बिजली शहीद
सासाराम जिला रोहतास ( सासाराम )
बिहार - 221115
मो 0 न 0 7488674912

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