कुंवार बिधवा - दिलीप कुमार पाण्डेय

जीवन के बडकी भउजाइ जवन बिआह का दूसरके साल मुसमात हो गइल रही बहुत दिन से उनका के बोलावत रही। जीवनो बहुत दिन से सोचत रहस भउजाइ से भेंट करेला। लेकिन संजोग ना बनत रहे। बिधवा बिआह के तमाम बिरोधो का बादो जीवन के बाबू सावित्री के बिआह दूर का रिश्तेदार जलेसर से कऽ देले रहस। जलेसर अपना पुरनका गांव से कोसहन दूर पहाड़ का किनारे बसल एगो गांव में आपन घर बना लेले रहस। 

जीवन का दूइए बरिस में अपना भउजी से बहुत लगाव हो गइल रहे। एह से उनका भउजी के देखे के मन करत रहे। आठ साल पहिले के सब बात इयाद करत जीवन टमटम से शांतिपुर ला चललें। गांव से दौलतपुर बस अड्डा अइलें। दौलतपुर से सकलडीहा खातिर बस मिलल। सकलडीहा से शांतिपुर जाए के रहे। सकलडीहा ले बस से गइला का बाद उनका शांतिपुर खातिर कवनो सवारी ना मिलल। 

बेरा डुबे में एक घंटा ले बाकी रहे। कवनो सवारी ना मिलला कारण उ पैदले चल देलें। अनजान रास्ता में जाए के रहे एह से झटकल जात रहस। कुछ दूर गइला का बाद जंगल मिलल। जंगल का किनारे एक आदमी खेत अगोरत रहे। 

उ अगोरनिहार से पूछलें "हइ रास्ता शांतिपुर चल जाइ भाई"? 

उ कहलें "हं हं बस जंगलवा पार करते बुझीं जे शांतिएपुर हऽ"। 

"किरिण लूक-झूक करऽता जंगलवा में कवनो जनावर ना नू निकसे "?जीवन पूछलें 

"कबो काल बाघ आ हाथी निकले लें सऽ,लेकिन कवनो नोकसान ना करऽ सऽ" रखवार कहलें।

जीवन मने-मने सोंचे लगलें "बाघवा हथिया एह लोग के चिन्हित होइंहें सऽ एह कुछ ना करत होइंहें सऽ बाकिर हम तऽ नाया बानी पता ना का होइ? 

चिडई चांव-भांव लगइले रहली सऽ। बेरा डुब चलल रहे। अतने में हाथी का चिकरला के आवाज जीवन का कान में परल। उ लगलें दउरे दउरत-दउरत जंगल के पार कऽ गइलें। सामने गांव का घरन के दीया लउके लागल। उ दूनु हांथ जोड के भगवान के गोर लगलें। जान बचला खातिर भगवान के धन्यवादो देलें। गांव का एगो लइका से पूछ उ अपना भउजी का घरे पहुँचले।

दुआर पर भउजी के देख उ तऽ चिन्ह गइलें। लेकिन भउजी ना चिन्हली। जब आपन नाव बतवलें तब उ चिन्हली।देवर के देख उनका खुशी के ठेकाना न। जीवन के घर में बइठा समाचार पूछली।

"पढाई-लिख होता नू?" सावित्री पूछली।

"हं भउजी एम बी बी एस के फाइनल परीक्षा देले बानी एक महिना बाद रीजल्ट निकली"-जीवन कहलें।

बहुत नीक अब तऽ डागडर ला डागडरे कनिया खोजे के पडी बुझाता। तनी देर हंसी मजाक कइला का बाद उ पुआ-पकवान बनावे में लाग गइली। सभ लोग एके साथे खाना खइल। एकरा बाद बर-बिछवना भइल आ सभ लऽ सुत गइल। 

"ए माई हउ असोला में के थुतल बा ले?", गुड्डू पूछलें। 

"आरे इ तहार जीवन चाचा हवें", बसांव के सावित्री कहली। 

एह लोग के बात सुन जीवनो जाग गइलें। भउजी इ लडिका?"

ए बबुआ इहे नू एक जाना बारें, राउर भतीजा।"

"अच्छा, ए बाबू आव हेने संगे खेलल जावऽ घुघुआ माना उपजे धाना। बबुआ खाए दूध भातवा बिलइया चाटे पतवा। पतवा उधियाइल जाय बिलइया लाजाइल जाय। बबुआ हाडी पतुकी फोडलस सम्हरिए बुढिया रे. हें हें आउल एक बेल।"

"ए बबुआ खेलावल छोड़ नेहा-धोआ लीं जलपान तइयार बा" सावित्री कहली।

ठीक बा भउजी कह उ बथानी कावर नहाए ला चल देलें। नहा-धोआ के सब लोग एके संगे जलपान कइल। जलेसर जीवन के संगे ले गांव घूमे चललें। जेने जाए लो ओनहीं सब लोग पूछे इ के हऽ हो? जलेसर कहस "भाई हऽ डागडरी पढेला।"

धीरे-धीरे संउसे गा जीवन के जान गइल। गांवे के लोचन काका ओह लो के चाह पिआवेला अपना दुअरा बइठलें ताले हल्ला पडल "जा सुनीतवा के कुकुर हबक लेहलस"। सब लोग दउरल ललन का घरे पहुंचल, जीवनो गइलें।कुकुर बडी हबकाह रहे उ सुनीता का दहिना गोर का एडी से एक बीता उपर के गंभीराहे मांस नोच लेल रहे। खून तरा-तर बहत रहे। 

जीवन आपन बैैग मंगवा के मरहमपट्टी करे लगलें। उ सुनिता के रंग रूप देख मने मने मोहित हो गइल। मन में उनका बतासा फुटे लागल। जीवन का सुनीता के घाव ठीक करे के जिम्मा मिल गइल। रोगी आ रोग के देखल उनकर रोज के काम हो गइल।

सुनीता का चउदे गो सुई लेवे के रहे। सरकारी अस्पताल उनका गांव से पांच कोस दूर रहे। उनका जाए खातिर बैलगाड़ी के बंदोबस्त भइल। एक दिन जंगल पार करत समय जीवन सुनीता से कहलन "तहार घाव तऽ अब दू-चार दिन में ठीक हो जाइ लेकिन हमार घाव त बुझाता जनम भर रह जाइ।"

"इ कइसन घाव तोहरा हो गइल बा ए डाक्टर बाबू बतइब कुछ?" सुनीता कहली। 

जीवन कहलें, "आज रहे द दोसरा दिन बताएम"

"ना तोहे हमार कसम आजे बतावे के पडी "

"कहीं तूं खिसिया जइबू तऽ"

"ना खिसीआएम बोलऽ ना पहिले"

"हमरा तोहरा से प्यार हो गइल बा"

"हमरो डाक्टर बाबू ,हमरा तऽ रात खां निने नइखे आवत, करवट बदलत बिहान हो जाता, दिल बेचैन हो जाता, पानीयो के स्वाद फीका लागऽता, एकर दवाइ कवनो होखे तऽ दऽ" कह सुनीता जीवन के भर अकवाडी धऽ लेहली। 

गडीवान बैलन का ओर इशारा करत लागल कहे "अइ हट-हट सीधा चलऽ सऽ इ का ! इ सुन सुनीता से जीवन अलग भइलें। 

सुनीता के घाव ठीक हो चलल रहे। एह लो के प्रेम-कहानी सब लोग का पता चल गइल रहे। एक दिन सुनीता के बाबू जलेसर से कहलें "हो जलेसर जीवन आ सुनीता के अगर बिआह कऽ दिआव त कइसन रही ?"

"बहुत नीमन होइत बडा सुनर जोडी बइठित, लेकिन एकरा खातिर जीवन का गांवे जाए के पडी" जलेसर कहलें

दूनु जाना पनरे दिन बाद जीवन का बाबू से भेंट करे जाए ला राय कइल। इ सब बात जीवन ढुका लाग के सुनत रहस। सांझ खां मइया का देवल का पिछुती जीवन आ सुनीता मिलल लो। अइसे तऽ मिले के तऽ कहीं ना कहीं रोजे मिले लो। ओह दिन तनी बेसी उत्साह से मिलल लो। जीवन सब बात बतइलें। आ कहलें 

"अब हमनी के मिलन होइबे करी, आवऽ कसम खाइल जाव जे हमनी के गार्जियन अगर बिआह नाहियों करी तबो हमनी बिआह करबे करेम, सांथे जिएम साथे मरेम। आ सुनऽ सुनीता काल्ह हम सबेरहीं चल जाएम लेकिन वादा करऽतानी जे जल्दीए तोहरा के दुल्हनिया बना के ले जाएम"एतना कह जीवन सुनीता के हाथ धऽ लेलें आ सुनीता आपन माथा उनका छाती से सटा सुसके लगली। 

दूनु आदमी कवनो दोसरे दुनिया मे खो गइल। बिहान भइला जीवन भारी मन से अपना गांव का ओर डेग बढवलें। सुनीता दूरे से आपन हांथ हिलवली, जीवनो कनखी से देख मुस्कुरात, चिन्हासी में मिलल रूमाल हाथ में लेले चल देलें। सुनीता के बाबू ललन आ जलेसर जीवन का दुआर पर पहुँचल लोग, दुआ सलाम भइला का बाद जलेसर बात आगा बढवले "धरमू काका इ हवें ललन आ अपना लइकी के बिआह जीवन से कइल चाहऽतारें ,का कहऽतानी रउआ ?"

"अच्छा पहिले जर-जलपान होखे, रह गइल बात लडिका सेयान हो गइल बा तऽ बिआह कइले जाइ, लोग के तऽ तांता लागल बा हमरा किंहा करीं तऽ हमरा किंहा करीं, देंखी कहां होता", जीवन के बाबू कहलें।

"उ तऽ ठीक बा काका लेकिन जीवन का इनकर लडकी पसन्द बा"जलेसर कहलें।

"देखऽ जीवन त अबहीं बारें ना! उ आगा का पढाई ला चंडीगढ़ गइलें, दू बरिस के आउर पढ़ाई बा। हमहू चाहऽतानी जे उनकर बिआह जल्दीए क दीहीं।"

"इंहा के लइकी कहां ले पढल बिया?" जीवन के बाबू पूछलें? 

"काका उ मैट्रिक पास हिय" जलेसर कहलें।

"ठीक बा हम एह पर सोचेम" जीवन के बाबू कहलें। 

जलेसर आ ललन अपना गांवे आ गइल लो। एने सुनीता का शरीर में बदलाव हेखे लागल, एक दिन कय गो ले उल्टी भइल। सुनीता के हालत देख परेमा काकी सुनीता का माई से कहली ए बछिया तहार बेटी त पेट से बिया। इ सुन उनकर हालत खराब,आंख का आगा अन्हरिया छा गइल। ललनो का जब इ बात पता चलल त उ ठाढ़े गिर गइलें। धीरे-धीरे सारा गांव इ बात जान गइल। 

जलेसर ललन के बहुत समझइलें, हम बानी तहरा बेटी का संगे अन्याय ना होखे देम। एक दिन जलेसर जीवन का बाबू से सारा बात बतइलें। जीवन के बाबू कहलें "उ हमार पतोह हो चुकल बिया, अब उ हमरा घर के इज्जत बिया। चल हम ओहके हम अपना घरे लेआवतानी।"

सुनिता जीवन का घरे आ गइली। जीवन का लगे चिट्ठी गइल लेकिन उ कवनो जबाब ना देलें। हार पाछ के जीवन का लगे उनकर बाबू गइलें। जीवन के बहुत समझइले "बबुआ कवनो बात ना खाता-नागा हो गइल तऽ चलऽ समाजिक रीति-रिवाज का अनुसार बिआह कर दिआव।"

जीवन सुनीता से संबंध के नकारते रह गइलें। आ अंत में कह देलें "बेसी दबाव देहेम तऽ गांव आ रउआ के छोड़ देवे पर मजबूर हो जाएम।"
"तऽ ठीक बा आज से तूं हमरा खातिर मर गइला समान बारऽ! ओह लइकि के परवस्ती हम करेम", अतना कह जीवन के बाबू चल देहलें। 

कुछ दिन बाद सुनीता एगो लडिका के जनम देहली। ओह लडिका के नाम रखाइल संघर्ष। उ लडिको रहे एकदम चंपियन। 

देखते-देखते डाक्टरी के पढाई पुरा कइके संघर्ष दौलतपुर सरकारी अस्पताल में नौकरी करें लगलें। एकदिन संघर्ष अपना गांवे करहीं जात रहस। एक जगे आदमी के भिड देख गाडी रोक पूछलें "का भइल बा जी, काहेला अतना भिड लगइले बानी लोगन?" 

"ए डाक साहेब! हइ एक जाना बूढ़ पैदले रउआ गांवे चलल जात रहलें हं गरमी का मारे बेहोश हो के गिर गइलें हं, तनी लिअवले जाईं, कवनो दवाई होखे तऽ दे दीं, बहुत मजबूर बुझातारें।" भिड में से एक आदमी कहलस।

संघर्ष उनका के गाडी में बइठा ग्लुकोज घोर के पिअइलें आ पूछलें "करहीं केकरा लगे जाए के बा ?" 

उ बोले के चहलें ताले खोंखी उठलआ कुछ ना बोल सकलें। खोंखत लह तांगर हो गइलें। संघर्ष अपना दुआर पर पहुंच गइल रहस। जीवन के हालत बिगड़े लागल रहे, उनका के उतार कुर्सी पर बइठा प्रेसर देखे लगलें। आ माई के गद्दे कइ चाह बनावे ला कहलें। जीवन आंख मुलकावे लागल रहस।

सुनीता चाह के ट्रे हाथ में लेले कुरसी पर बइठल जीवन के एके-टके निहारते रह गइली। 
"माई ए माई का भईल" संघर्ष कहलें
"इ बयमान तहरा कहां मिलल हऽ" सुनीता कहली? 

अतने में सुनीता का ओर देख जीवन कर जोडले आ उनकर गरदन एक ओर झुक गइल। ई देख सुनीता का हाथ से ट्रे गिर गइल आ फफक-फफक के रोए लगली। "जा बयमान सब करम के पहुँचा मिलबो कइलऽ त एको टुम बातो ना कइलऽ" कह आंख से लोर के धार बहे लागल। बाद में संघर्ष के सब बात बतवली। जीवन के अंतिम संस्कार संघर्ष का हाथे भइल। सुनीता बीन बिआहल बिधवा हो गइली।
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लेखक परिचय:-
बेवसाय: विज्ञान शिक्षक
पता: सैखोवाघाट, तिनसुकिया, असम
मूल निवासी -अगौथर, मढौडा ,सारण।
मो नं: 9707096238

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