जे जनमल बा उ मुइबे करी - तारकेश्वर राय 'तारक'

आदमी के का औकात बा
होईल बा पैदा उ मुइबे करी।

हँसके बा रोके, ई त जिनगी ह इ चलबे करी
उमिरिया कवनो करम से, रोकले ना रोकाई।

ई त समइया के ठेला से, बढ़बे करी
सयान होत ललनवा, बात त गढ़वे करी।

अब चाहे त, ओकर भरम मार दे
ना त ओकर, कइल करम मार दे।

इंसानियत बा बाँचल, त शरम मार दे
बदनीयत, कवनो बेशरम मार दे।

अब चाहे त, ओकर धरम मार दे
भा ओके मार देव, पेट क भूख।

चाहे त मार देव, कवनो बेमारी
भा ओके मारे, अपनन क दुख।

अदमी के मार देइ, सुखल खेती
भा ओके मार देव, बाढ़ के पानी।

चाहे त मार देव, ओके भरैती
भा ओके मार देव, अस्पताल खरैती।

अदमी के मार देइ, साहूकार क डंडा
चाहे त मार देइ, ओके तिखर घाम।

भा ओके मार देव, मौषम ठंढा
रुकी न मौत, चाहे पहिनी ताबीज गंडा।

कभी मराता, इंसान ईमान खातिर
जाता जान केहू क, इनाम खातिर।

आशिक जान देता, सनम खातिर
कबो जान देता, पीर बरम खातिर।

आदमी के का औकात बा
जे होईल बा पैदा उ मुइबे करी।
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लेखक परिचय:-
सम्प्रति: उप सम्पादक - सिरिजन (भोजपुरी) तिमाही ई-पत्रिका
गुरुग्राम: हरियाणा

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