सेवान ला मार - दिलीप कुमार पाण्डेय

अदरा का चढ़ला पांच दिन भइलो का बाद आकाश में बादल के कवनो नामो निशान ना रहे। खेतिहर लोग आसमान का ओरी टकटकी लगा देखत रहे। "लागऽता इनर भगवान एहू साल बरखा रूपी किरपा से हमनी के बंचित रखिहें कहत आ घटा का ओरी निरेखत चुन्नीलाल गाय के हाँकत चंवर का ओरी चल देलें।

पाँच बरिस से बरखा ना भइला का कारण चेंवर छोड़ आउर कहीं चरी बांचल ना रहे। एह से तीन गांव के लोग ओही चेंवर में बेरा गिरते आपन आपन माल-जाल ले चरावे चल देवे। कुछ नवछेटिया भईंस का पीठ पर बइठ गरदन में लटकत झोरी के चबेना चबावत गीत गावत चरवाही करस त कुछ लोग रामसकल के कउंचा-कंउचा सांझ क देवे में लाग जाव।

अउसे सिसिरो पांरे पिनिके में रामसकल से कम ना रहस। ओह दिन गुमशुम रहेवाला चुन्नीलाल का मन में नाजाने का भाव आइल जे उ सिसिर पांरे के अर-छोहो, अर-छोहो कह देलें। हरदम खरहा जस कान कइके रहेवाला सिसिर पांरे ई सुनते मरखाह भईंसा जस चुन्नी के चहेटे लगलें। चारो ओर लेलकारी पडे लागल। केहू कहे धरऽ-धरऽ केहू त केहू कहे भाग चुन्निया भाग। मिसिर पांरे के भईं आ चुन्नी के गाय चेंवरे में रह गइल ।एक जाना भागे में दूसर जाना खेदे में बाझ गइलें।

खेदा खेदी करत अपना गांव के सेवान टप सहवाँ में पहुँच गइल लो। राड़ी के जड़ गोर में गड़ला का बावजूदो खेदनीहार आ भगनीहार का गति में कवनो कमी ना आवत रहे। चेंवर टप खाड़ी पकवला का कारण बनल डीह पर जामल खजुरबानी का लगे पहुँच चुन्नी एगो झुरमुट का अलोता बइठ गइलें।"केने गइले रे निकल जंहरल के नाती" चिल्लात सिसिर खोजे लगलें। चुन्नी उनके लगलें छकावे। ताले आकाश के नजऽरो बदल गइल करिया करिया बादल छूटी भइला का बाद कक्षा से जइसे लइका निकलेलेंसऽ ठीक अउसहीं चारो ओर दउरे लागल।चुन्नी के गाय भुअर त सिसिर पांरे के फुलेर पहुंचा दीहल लो।

देखते देखते बुंदा बुंदी सुरू हो गइल। चुन्नी कगरियात अपना घरे पहुंच गइलें। अन्हार हो चलल रहे। उ बाबू से लूकाके खाना खइलें आ घरहीं सुत गइलें। माई से कहलें जे अगर बाबू पूछिहें त कह दीहे हमार मिजाज ठीक नइखे। ओने सिसिर पांरे बुनी बरखा के परवाह कइले बिना चुन्नी का दुआर पर पहुँच गइलें।

"काहो बिसेसर अपना लइका के ईहे सीखइले बारऽ", सिसिर पांरे कहले?

"का भइल काका के का कह दीहल"?

"पूछ अपना बेटा से हमरा के छोहो छोहो काहे कहलसऽ"?

आरे काका तूहुं गजब बारऽ, लइका ह कह देले होई, आ तूं कवनो भईंसा त हवऽ ना।

"माने तूं लइका के डंटबऽ ना, ठीक बा तब हमहीं कुछ करेम" कह अपना घरे चल देलें।

बरखा जोर से बरसे लागल रहे। रह रह के बिजुरी चमकत रहे। ओकरा अंजोर में खेतन में भरल पानी देख खेतिहर लोगन के मन हरषित होखे लागल। ओह लोग का भरोसा हो गइल रहे जे ढ़ेर दिन से खाली परल कोठी डेहरी अब जरूर भरी। रात भर छप्पर आ ओरियानी चुअला का संगीतमय आवाज में चुन्नी चैन से सुतलें।अगिला दिन तनी संकेराहे उठलें।उनका मन में एह बात के डर रहे जे अगर सिसिर पांरे बाबू से ओरहन दीहें त कुहाई निश्चित बा। ईहे सोचत जब उ बथानी पहुँचलें त चारो ओर के दृश्य देख अचरज में पड़ गइलें।

चेंवरा चउरी गोंयरा जेने देखीं ओनहीं पानी। दिशा मैदान जाएला कहीं कवनो जगह ना बांच गइल रहे। सुखल जमीन अगर कहीं रहे त उ बस उ घरारिए रहे। कुछ लोग के बथानो डुबे डुबे हो गइल रहे। तनिका देर बाद जब सब लोग जागल त एके बात कहे चलऽ लोगिन सेवान काटल जाव ना त हमनी के खेत पधार त डुबबे कइल घरो डुबी। ईहे हाल बहेरा गांवों के रहे ओह लोग का रेलवे लाईन का अलावे दोसर दवरो ना रहे। लेकिन चुन्नी का सेवान पर जमा पानी से बगल का गांव में पानी तीन चार फूट नीचा रहे। लेकिन बहेरा गांवों के लोग मुश्तैद रहे सेवान पर पहरा देवे लागल लो। चुन्नी का गांव के लोग सेवान काटे के जोजना बनावे में व्यस्त रहे त बहेरा गांव के लोग बचावे के जोजना बनावे में व्यस्त। दूनो ओरी लोग मुश्तैद कब का हो जाई कवनो भरोसा ना।


बरखा रहे कि रोके के नावे ना लेत रहे। दुपहरिया का बेरा में बुनी छेवक होखते चुन्नी का गांव के लोग अग्या पांरे का अगुआई में सैकड़ो आदमी लाठी भाला फेरसा कुदारी ले बजरंग बली की जय सुखारी ब्रह्म की जय नारा लगावत चलल सेवान काटे। आ ओनहु के लोग तइयारिए में रहे। ओही सेवान पर हो गइल जोर अजमाइस। बान्ह का दूनु अलंग पानी भरल रहे ओजवे मार शुरू हो गइल। बहेरा का जमदार पहलवान के लाठी जब खेंखर पहलवान का मुरी पर लागल त रकत के धार बह चलल। उ नाचके गिर गइलें। अतने में दाहारू पहलवान जमदार पहलवान के मुरी फोड़ दीहलें। खुन के नदी बह चलल। एने का दसन लोग के मुरी फूटल त ओने का दर्जनो लोगन के। पानीपत का जुद्धो से भयंकर जुद्ध होखे लागल। लठीधर लोग अपना कला का बले दुश्मन के चित करे लागल। बहेरा गांव कमजोर पड़े लागल। अतने में बहेरा के दुलार मनोहर पांरे का छाती में बर्छी घोंप दीहलें। बर्छी उनका छाती में फंस गइल आ गिर पड़ले दरद से चिल्लाए लगलें। पानी का निकासी ला भइल मार में रकत के निकसत देख बहुत लोग पछतावा भइल। तबले देर हो चुकल रहे। मनोहर पांरे का छाती से बर्छी निकाले में बहुत लोग करेजा काँप गइल। जब उ निकलाइल त उनका मुंह से अरे बाप के जवन शब्द निकलल बहेरा का लोगो के करेजा छेद गइल। सेवान काटे आ रोके में दूनु गांव से चार गो रंथी निकलल। एह घटना मर्माहत हो बहेरा के बिनेसर आंख से लोर चुआवत सेवान काट देलें।

चुन्नी जब ओने जालें त उनका उ घटना मन पड़ जाला आ आंख से चुअत लोर चेहरा पर पड़ल झुरियन का बीच अझुरा के कहेला "हई सेवनवा आज जेगं खुलल बा अउसहीं ओहू दिन खुलल रहित त चार गो प्राण अखड़ेड़े ना गइल रहित। 
------------------------
लेखक परिचय:-
बेवसाय: विज्ञान शिक्षक
पता: सैखोवाघाट, तिनसुकिया, असम
मूल निवासी -अगौथर, मढौडा ,सारण।
मो नं: 9707096238

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.