अचरज बा कि तहिए मनई चार गोड़ के हो जाला
शादी क के जहिए से घर के झंझट मेँ खो जाला।
दू गो लइका हो जेकरा उ आठ गोड़ से चलेला
जाल बढ़े मकरा जइसन त शादी कइल खलेला।
बड़ा काम कइसे होई जब छोटी छोटी मुश्किल बा
समय चलत महँगाई के अब रोजी-रोटी मुश्किल बा।
अइसे मेँ जब लइका सुन लीँ पाँच-पाँच गो होले सन
पेट भरे ना भाई हो तब कच कच कच कच बोले सन।
जहिया कवनो कारन से ना तेल परे तरकारी में
राज गरीबी के सगरी उ खोले सन पटिदारी में।
सगरी जिनिगी बितेला तब भाई मारा-मारी में
जगहि मिले ना घरवा मेँ त सूतेक परे घारी में।
देखते बानी रोग बहुत बा पइसा लगी बीमारी में
मान्टेशरी में पढ़िहे सन ना पढ़िहे सन सरकारी में।
अनपढ़ रहिहें सन लइका फसिहें सन दुनियादारी में
खोजला में बस जिनिगी कटी दाल-भात-तरकारी में।
जाके कवनों करी मजूरी भाई हाट-बजारी में
कवनो कही हम त बानी बाहर के तइयारी में।
शादी सगरिन के होई त घर रही ना रहे के
बटवारा होई त सुन लऽ खेत बची बस कहे के।
बड़ा अगर परिवार रही त सबकुछ परी सहे के।
लाठी ले के बुढ़ौती मेँ येने ओने ढहे के।
छोटा बा परिवार अगर त चिन्ता चढ़े कपारे ना
शान रहे मनई के कहियो ये दुनिया से हारे ना।
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नाम: वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी'
जन्म तिथि: २०-०४-१९८०
पुस्तक 'सब रोटी का खेल' प्रकाशित
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
कवि सम्मेलन व विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मान पत्र
आकाशवाणी से कविता पाठ
बेवसाय: शिक्षक
पता: ग्राम- महेशपुर,
पोस्ट- कुबेरस्थान
जनपद- कुशीनगर,
उत्तर प्रदेश
मो नं: 9919080399
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