जिनिगी के बाती - विद्या शंकर विद्यार्थी

गाँवे में रावन गाँवे में राम बाटे 

गाँवे में रावन त गाँवे में राम बाटे 
दूनों में जुद्ध सुबह आ शाम बाटे।

गाँवे में कैकयी माई बाड़ी अबो 
भरत बाड़े आ भरत के नाम बाटे।

भरत के कुटिया आ आस्था बा 
कुश के चटाई करेके आराम बाटे।

उर्मीला बाड़ी उनुकर त्याग बा
लछुमन के भावना निष्काम बाटे।

राम के संगे सीता बाड़ी, तिरिया 
नारी के उतम में उतम नाम बाटे।

शील से शीलता गुन से गुनता बा
अशिष्टता के हार काम तमाम बाटे। 
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कैकयी के मनसा 

बात से खाली पुआ पाके ना का बा राउर इच्छा 
दे दीं स्वामी भरत के गद्दी करब ना हम परतिछा।

इहो लइका ह हईं हम माई बड़के पर मत ढरीं
दिहले बानी पहिले वचन तवने तऽ पुराईं करीं।

बा ननिहाल त का भइल सुनी त धावल आ जाई
राउर फैसला सुनी त ऊ सुन के मन में अघा जाई।

काहे रउरा कठेया बा लागल पुराइब ना का अब 
राजा हईं त कुछ कहीं, वचन पुराइब ना का अब।

आगे पीछे करब रउरा जदि हम ओह दिन जनतीं
नारी के बस फुसुलावत बानीं इहे हम पक्का मनतीं।

हमरा रउरा बीच बात बा अबहीं केहू कुछ ना जानी
लिहीं फैसला लिहीं नाथ हमहूँ त हईं राउर राजरानी।

बा परन अब चाहे जइसे भरत के होई राजतिलक
राम के चाहे वनवास होई भरत के होई राजतिलक।

तपसी के ऊ भेष में रहिहें भरत के होई राजतिलक 
राजतिलक बस राजतिलक भरत के होई राजतिलक।
कैकयी माई के मनसा बा भरत के होई राजतिलक।
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दशरथ के संवेदना 

कइसे दियनवा के महिमवा घटाईं
सगरी अन्हरिया नगरिया में छाई।

दियवा के जोतिया नयनवा के हवन 
धन किसमतिया जीवनवा के हवन 
उन्हुका निकालीं कि अपना के सतायीं। 

अपना जमलका के बन कइसे भेजीं
अगिया अंगोरवा दिहलका के अंगेजी 
तुहूँ सोचऽ अइसन कबो होली ना माई। 

अन्हको जमलका के दरस ना माई
सोचऽ तूँ कैकयी मत होखऽ कसाई 
हमरो के बाप ना तोहरो के कही माई।

अपना जमलका के चिन्हल ना जाला 
दोसरो के बेटा के बिन्हल ना जाला 
जस आज अपजस के हाथे गोताई। 
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लछुमन के सवाल

घर में सभे निमन बा त भइया के काहे वन बा 
सबके दिल दर्पन बा त भइया के काहे वन बा।

माई तहरा के लोभ ग्रास देलस सब नाश देलस 
छाती में गड़ल काँट ना अइसन हुलास देलस।

भाई में भाई के ना तिकलु तूँ के हीरा रतन बा
सबके दिल दर्पन बा त भइया के काहे वन बा।

बड़ के रहते छोटके सिंहासन कुल के रीत ना ह
चान में दाग बतावल सुखद आ सुशोभित ना ह।

जेभी ई घर उजारल बस दुइए गो मन मगन बा 
सबके दिल दर्पन बा त भइया के काहे वन बा।

कोंख सराप के कबो कोंख लौटावल जाला का 
दूध के छाती अरे अर फार के सटावल जाला का।

केहू के लोर गिरता सकदम में केहू धन लगन बा। 
सबके दिल दर्पन बा त भइया के काहे वन बा।
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शिला पर हठ के अतहत रेख 

माई एतना बड़ तूँ ले लिहलु बददुआ 
माई के छाती सेत ना फूट गइल भुआ।

माई, हमरा आ भइया में का भेद पइलु
शिला पर हठ के अतहत तूँ रेख उगइलु
नागिन डँसे से कम नइखे साँपिन भइलु
कहइलु माई ना बलुक तूँ परमिन भइलु
परमिन भी अइसन ना करे जे तूँ कइलु।

क्रोध से जन तिकऽ विरोध के स्वर जान 
मांगल गद्दी राज दूनों बाटे बिख समान।

कुश के चटाई भुआँ बिछा के रह लेब 
भइया सहिहें तकलीफ त हमूँ सह लेब 
माई एतना बड़ तूँ ले लिहलु बददुआ 
माई के छाती सेत ना फूट गइल भुआ। 
(ननिहाल से लौटते भरत के सवाल)
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कैकयी के सफाई 

अपने घर में अपने पुत से भइल बा आज डेराये के 
लइकइयें के थेथरिआह गइल ना ऐब थेथरिआये के।

ना मंगतीं गद्दी तऽ बाद में खूब कोर पकड़ के रोइत 
सुतल राति में सपनाइत आ खार आगि के ई बोइत।

सुन रे माई हईं आ अपना जमला के तिकलीं रे हम 
ढेरे माई होइहें बाकिर हमरा अइसन करिहन रे कम।

छोटो रहस त रे बबुआ तोरा मलपुआ अंटकत रहे 
ना नहइलस ना खइलस अबहीं चिंता रे लटकत रहे।

अस्थिर चीत कर आपन आ आगे के बात तें सोच 
भाई के परेम में बउराह होके माइए के तें मत नोच।

राजा बेटा कहलीं सब दिन हम राज दिअवले बानी 
नेकी धोअबे त धोव माई के दुनिया त झूठ ना मानी।
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गाँव के मेहरारू के खुलासा आ मंथरा देने संकेत

जौन बिलाय तिअन चिखलस दूध जुठरलस अलग 
तौने बिख बोअले बिया आ भाइन के कइलस अलग। 

परथन लागल ना आटा ओकर आटा कइलस गील 
जे ना खाइल अध पाकल रोटी सेहू गइल ऊ लील।

सब दिन रहल टाटी के आड़ अबो लुकाइल टाटी 
सह मिलल दूजा के ना ओकरा माई के बस खाटी। 

आन के दरद से का वास्ता जहाँ दाल गलत बाटे 
घर फोरनी के घर फोरे से सुधरल कबो लत बाटे। 

जेकर बिलाई ओकर बिलाई ओकर बनल चानी बा 
घर फोरलस घर फोरनी ढुक घर घर के कहानी बा। 

ना मिलल जहिया खाए के तहिया ना चैन आवेला 
कंठ में गड़े आखर रोटी मिसिरी आ लैन सतावेला। 
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मंथरा के प्रेरना (राजा के घर फूटे के एहसास)

बिना आग के डाढ़ा फेरलस लगाई देलस अगिया 
बिना आग के अगिया जराई देलस अगिया... ।

मंथरा के बुधिया लहकाई घर दिहलस 
मतिया कुमतिया उपजाई जर दिहलस 
राजा के जिनिगिया ना रानी के जिनिगिया। 

कहलो ना जाला चुप रहलो ना जाला 
अँखिया भइल बउए लोर के पियाला 
कुलवा में दगिया आ जिनिगिया में दगिया। 

परी कपारे जब जेकरा नू इहो जाला 
मति मराला अउरी नू बुधि सब हेराला 
दोसे के रही जाला बस अदिमी भगिया। 

गाँवो जानी गइल त जवारो जानी गइल 
कैकयी के कारन राम जी के वन भइल 
भइल बउए ढोवे के अब भारी ई दरदिया। 
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कैकयी (कौशल्या के कुछ कहला पर) 

दाव दाव के बात ह घात एकरा के मानेलु
सता छिनाइल जनलु त हमरा के पहचानेलु

हमरा बेटा के राज मिलल तिकताड़ु तिकऽ
समय समय के बात हउए हिकताड़ु हिकऽ 

अरवा चाउर सब दिना अब उसिना ना ढुकी
तोहरा कहे से पुत हमार गद्दी ना लिही रूकी

भोर के प्रथम बेर में चिरईं काल्ह बोलिहनसँ
ढेर दिनके जबदल कंठ डाले डाले खोलिहनसँ 

कहीं हिरना कुलांच मारी भरत के सोझा देख 
जौन ना विधि लिख सकले माई लिखली रेख 
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कौशल्या के संवेदना 

का कइलु ए बहिन तूँ का कइलु
कवन आग घर में तूँ लगा गइलु

मांगे के रहे राज बेटाके मांग लेतू 
दूगो रोटी ना दिहतू पेट दाग देतू

हमरा बेटा के भेजत बाड़ू वन में 
कवन भावना रहे ई तोहरा मन में 

लइका जात मिलजुल ऊ रहलनसँ
रोटी घटल इहो ना कबो कहलनसँ

राम के मन में खोंट कबो त रहे ना 
भाई - भाई में मोट कबो त रहे ना 

भरत के सुभाव निमन ह चिन्हींला 
तूँ बिन्हेलु घर आ हम ना बिन्हींला 

माई हईं पीर ई देल ओरात नइखे 
भोर करत हईं बात भोरात नइखे 

रहऽ सुख से रहऽ अब बिहँसऽ तूँ
हम सुखाईं भले बाकि लहसऽ तूँ
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परजा के निहोरा 

चलऽ ए बबुआ चलऽ भरत चलऽ आ राम से बोलऽ
मनी बिन फनी जिही कइसे हमनी के काम से बोलऽ

पिता के पुत मनी होलन आ होलन गरब के सपूत 
तुहीं सोचऽ तुहीं कहऽ कइसे अइसे जिही अवधूत 

चल गइलन तऽ चल गइलन मन से नइखन गइल 
ना मनिहें आ ना अइहन ऊ शक बेकार बा कइल 

तोहरा संगे हमनियो के कइल जाई अनुनय बिनय 
कहल जाई लौटऽ ए बबुआ हमनीके तिकऽ समय

समय के साथे शिवके माथे चढ़ जाला गोबरउरा
धो पोछ के साफ कइली आ ना अनसइली गउरा

ए बबुआ बात मानऽ हमनी के घेरले बा बिबशता 
चलबऽ तबे बात बनी आ कुछउ निकली रास्ता 

लकड़ी के दिंअका खाके कब तक हुदहुदवा जिही 
हमनी के हुदहुदवे बानी सँ आखिर के सुधि लिही 

तोहरे पर आसरा बा बबुआ चहबऽ तऽ राम अइहें
भाई से भाई मान जइहें ना कवनो अंजाम लगइहें।
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उर्मिला 

तप कहल जाई तोहार कि आत्मा के आत्मग्लानि 
कहऽ उर्मिला अपने सबद में आपन कुछ कहानी 

राम के साथ लखन वन गइले हित तिकले भाई के 
ना अइसन चाहत रहे आ गलती ठहरइलन माई के 

माईके हठ बस हठ रहल आ भरत के भला तिकली
दसो बार समुझावल गइल आ दसो बार झिझकली

कैकयी के अपत तिक के भाई के साथ हो गइलन
बोलऽ उर्मीला बोलऽ आन प तोहरा के न छो गइलन

आन! कइसन आन कवि, मरद के मरदांव ह छवि
नारी बस नारी हई, नारी के ह बस वियोग के छवि? 
ठाढ़ रह गइल परतिछा में चउदह बरिस निमन ह
कवि, कनखियो से ना कुछ कहलन, भला निमन ह। 
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तपसी के जीवन तप के ह 

जात बाड़े सिरी रघुनंदन गाँव त्याग के जात बाड़े 
हृदय हृदय ना दरकल हृदय से लाग के जात बाड़े 

बीच में सीता बाड़ी सुनैनी सह ना घाम पावत बाड़ी 
राहके कांट से पाँव बचावत पीछा पीछा आवत बाड़ी

उनुका पीछे लछुमन बाड़े सजग सजग चलत चाल 
पेरे के तऽ माई ई पेरली संगे संगे पेरले बा ई काल

राम के ई इयाद आवता भरत अबहीं होइहें ननिहाल 
अइहें त बात समझिहें ना करत जइहें सवाल सवाल 

जात बाड़े सिरी रघुनंदन गाँव बिसार के जात बाड़े 
माटी बियोग सतावता माटी के निहार के जात बाड़े 

मन कबो दाबवता आ मन के दबावत के जात बाड़े
अकबकवता के दबावत आ दबावत के जात बाड़े

का दबाई संकल्प के ऊ ना विकल्प आउर जहँवा 
तपसी के जीव तप के ह ना विकल्प आउर जहँवा 

सांझ के झोली परते परते मन ठहरे के बन गइल 
गाँव के कुल्ही इयाद त्याग मन ठहरे के बन गइल।
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शंका

भोर होते लाली लउकल आउर जनाइल आवत लोग 
मन शंका होखे लागल कहँवा हफनाइल आवत लोग 

माथे पगरी कान्हे गमछी बा केहू के हाथे लाठी बा
बड़ बा छोट बा छोट बा बड़ बा केहू एके काठी बा

धूरी माटी में भोरे से चलल गोड़ के हाल बता देलस 
जानल लोग सभे रहे ना, रहे से आपन पता देलस ।
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परजा के निहोरा 

राजके बात राजे रहे दिहीं राजके बात दयानिधि मानीं 
माईके केहू कठोर कही त माईके रही ना पानी ई मानीं 

खाये के कहाँ अघाये के रहल पूरे भइल नूने नून मानीं 
रहे लिखल एतना होखे के एकरा के हरानी बस मानीं

भाई खाति भाई हहरऽता भाई के जात ग्लानि ना बाटे
माई के बात भुलाई कुल्ही वजह का कि भाई ना साटे

बात प तनी बिचारीं दयानिधि पाटीं खाई खाई के पाटीं 
माई के इज्जत माई के करीं हहरता भाई भाई के साटीं

बात के तीर लागल सभका बा आहत भइल सभे मानीं 
बोलऽत ना लिखत ना बाटे सोच में परल बाटे गेयानी 

कुसंग में जब केहू परेला त बुद्धि कुल्ही हेरा जाला 
आन के हाथ नाहीं आदमी अपनो के हाथे पेरा जाला 

एह फेरा के दूर कइल दयानिधि दूरदर्शिता बा राउर 
हमनी के परजा बानीं जा का कहब जा एह से आउर
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भरत के निहोरा 

भइया लवट चलऽ लोग हमरा के दोषी 
मानऽ भइया माई के हठ ना अफसोसी 

मंथरा के बात लेके उठेके उठ गइल माई 
ओकर बात हटावऽ हम त हईं छोट भाई 

हमरा से एतहत जिम्मेवारी ना निबही 
प्रजा दुखी होई कष्ट ऊ अनेरे काहे सही 

एह खराऊँ के भार भार अइसन नइखे 
जरूरत बा तोहार तोहार जइसन नइखे 

झिंटिका लड़ावे ओला गाँव में ढेर होले 
कतना घर डाढ़ देलन मने मने बिन बोले 

चलऽ भइया चलऽ सिंहासन खाली बा 
आइल लिआवे संग में हमरा माली बा 

बहुत हृदयी बाड़न सोच में खइलन ना 
कतना बाड़न कि चिंता में नेहइलन ना 

भरत से भूल सपनो में त भइल नइखे 
नीयतो कतहीं से देखे में मइल नइखे 

अँगुरी केहूके उठे मत भइया ई सोचऽ
हईं हृदय के साफ हो भइया ई सोचऽ

घाव के दर्द का होला मालुम बा तोहरा 
कौन बात के बा अभाव मालुम बा तोहरा 

चलऽ भइया छोट हईं हम छोटे रहब 
अलग ना सपनो में हम एक गोटे रहब। 
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राम के आश्वासन 

भरत भाई हवऽ माई के लपेटऽ मत
सुनऽ संग में मंथरो के समेटऽ मत

देबी सुरसति के चाह कुछ आउर बा
ना केहू दोषी बा ना केहू हो बाऊर बा

माई में माई के बस धन भावना बाटे
माई कहस ना करेजा तरे तर फाटे 

समय लकीर दे देला जब जीवन में 
दिवस काटेके परेला अदमी के वन में 

बा भाग बरियार कमजोर करऽ मत
धरऽ धीरज भाई हमार हो हहरऽ मत

कहे ओला सब समय में रहल बाटे 
ओह चिंता में भाई से ना भाई फाटे 

सूई के नोक भर मत तूँ संशय करऽ
अंकवारी में लाग के अंकवारी भरऽ

तापस वेश देख के मोर उदसऽ मत 
चिंता के पांकी में गोड़ दे धसऽ मत

सुजस कीर्ति करे के बाटे ठान ल
राम के भरत भरत के राम आन ल। 
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केवट के बेजार 

दीयट ना दीया बाटे, दीयट ना किया बाटे 
आहे आहे दीनानाथ, 
कवनी ना रजवा के सोहाइल ए राम...।

हीरा अइसन बेटा बाड़े, बेटा में बड़ बेटा बाड़े 
आहे आहे दीनानाथ, 
कवनी मतरिया के बुझाइल ए राम....। 

संगवा में नारी बाड़ी, नारी सदाचारी बाड़ी 
आहे आहे दीनानाथ,
कवनी ना नगरिया के रहाइल ए राम...। 

भाई खाति भाई बाड़े, भाई ना कसाई बाड़े 
आहे आहे दीनानाथ,
कवन घर उजरिया ना चिन्हाइल ए राम ....।
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वनवासी के आकुलता 

बैन आवे ना चैन आवे, 
मनवा जानी अकुताइल बा
कवन राजा के सोहाइल ना, 
बेशी ई हुक धराइल बा ...।

पत्थल के कइसन जीव माई के 
दम लिहली ऊ जंगल पेठाई के 
कइसे के केहू माई अब मानीं, 
करनी से लोग घिनाइल बा, बैन...। 

ठेसो बा लागल काँटो बा गड़ल 
भगिया कइसे ना केहू हो पढ़ल 
रहल पानी कि गइल पानी, 
फूल सुघर ई कुम्हिलाइल बा,... ।

ओठो चिहिकल हो घाम बाटे 
धरती धिकल हो बरेआम बाटे 
हलकानी ऊपर हलकानी बा, 
रघुबर के का भाग लिखाइल बा,...।

सोची मत नाथ अनाथ के नाथ 
हमनी बानीं सँ रउरा जी साथ 
दिल में जगहा बा इहे जानी, 
माटी के कोठिला पराइल बा,...। 
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केवट के आग्रह 

बाटे कठवतिया में पनिया जी, 
चरनिया ना काहे नाथ धोआईंला 
कहत नइखीं कुछउ बचनिया जी, 
बोलीं ना नाथ काहे मुसुकाईंला....। 

केहू गरियावल किया घरवा तेअगलीं 
किया कवनो बैरी से बले जी लगलीं
संगवा बाड़ी एक जननिया जी, बोलीं....।

राजा के लइकवा हईं लिलरा बतावता 
तपसी के भेषवा ना कइसे जी भावता 
तीन तीन बानी नू परनिया जी, बोलीं....।

बड़ी सनजोगवा से पँउआ जी धोआला 
हियवा हमार नाथ जानीं आज अगराला 
अब नइखे जइसे हलकनिया जी, बोलीं...। 

धीरे धीरे नदी तीरे नदी तीरे धीरे धीरे 
जलवा बा शांत नाथ केहू ना निरखी फिरे 
देरी जन लगायीं दी चरनिया जी, बोलीं...।
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केवट के अराधना

जीए के इहे आधार बाटे, रोजी इहे रोजगार बाटे 
हे दीनानाथ दया कर दीं, नइया आइल मझधार बाटे

रोजे देखलीं रोजे पानी, सोचे के भइल आज हैरानी 
लागता पार अब लागी ना, धार बाटे एतना जानी 
मोसकिल में जिया हमार बाटे, नइया ....।

पता ना का ई कहानी बा, नइया के बात पुरानी बा
भार के पार ना लागी का, भइल कवनो नादानी बा 
एतना जे आजू जुआर बाटे, नइया ....।

ना स्वाभिमानी हईं हमहूँ, ना अभिमानी हईं हमहूँ 
रउरे किरिपा से चलींला, ना कि गुमानी हईं हमहूँ 
रउरा हाथ में ना सनसार बाटे, नइया ...।

जगत के जे पार लगावेला, से काहे आज बिसरावेला 
विनती बानीं एतना करत, काहे ना साध पुरावेला
का होई ई परीछा हमार बाटे, नइया ...।
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लेखक परिचयः
C/o डॉ नंद किशोर तिवारी
निराला साहित्य मंदिर बिजली शहीद
सासाराम जिला रोहतास ( सासाराम )
बिहार - 221115
मो 0 न 0 7488674912




मैना: वर्ष - 7 अंक - 117 (जनवरी - मार्च 2020)

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