गंगा जवन देवलोक के नदी रहली उनके एह धरती पर आपन पुरखन के तारे खातिर आपन अथक प्रयास से ले आवे आला भागीरथ के नांव के नइखे जानत? लइकाई आ होशगर भइला के बाद आपन पुरनिया आ शास्त्र में हमनीके इहे पढ़ले सुनले बानीजा। भले बिज्ञान एहसे सहमत ना लउके। आस्था आ बिस्वाश अपना जगह पर बा बिज्ञान अपना जगह प। सचाई इ बा की गंगा हमनीके देश के मुख्य नदी के रूप में बहत आजो आँखि के सोझा साफ लउकत बाली। गंगा नदी हिमालय पर्वत के गंगोत्री ग्लेशियर के गोमुख से निकलेली आ गिरिराज हिमालय के बरफ टेघर टेघर के एह नदी में पानी के परवाह के टूटे ना देला सदा प्रवाह बनल रहेला,नदी में पूरा साल जल रहला के कारण ही एकरा के सदानीरा नदी के नांव से जाने ला दुनिया। हजारो कोश के दुरी के तय क के गंगा समुन्दर में समा जाली ओह मिलान के जगहा के गंगा सागर के नाँव से जानल जाला । इ हिन्दू धर्म के माने वाला लोगन खातिर एगो प्रमुख तीर्थ ह लोक कहावत के अनुसार "सगरो तीरथ बारम्बार बाकी गंगासागर एक बार"। गंगा खाली एगो नदी ना बलुक एगो सोगहग संस्कृति हइ। गंगा किनारे ही संस्कृति के पूरहर बिकाश भइल आ तीर्थ स्थल के निर्माण भइल। गंगा अपना यात्रा के दौरान कई प्रमुख तीरथ स्थल जइसे हरिद्वार, प्रयाग, काशी आदि जगहा से से गुजरेली रउवा कह सकतानी की एह जगहन के प्रसिद्धि में गंगा के पुरहर सहयोग बा। गंगा के उपयोगिता के, के नकारी? इहे उपयोगिता आ सुचिता के चलते गंगा के माई के संज्ञा देहल गइल बा। गंगा के पानी मे कबो कीड़ा ना परे सालों साल बोतल में रखला के बादो।
"गंगा तेरा पानी अमृत छल छल बहता जाय" इ गीत सुन के हमनीके बड़ होइनी जा लेकिन गंगा के इ रूप बर्तमान में बा का? दिल पर हाँथ रख के सोचला के जरूरत बा। अब त बैज्ञानिक परीक्षण से भी इ साबित हो चुकल बा सदानीरा गंगा मइया का लाखन साल क पुरान अस्तित्व एगो बड़ियार खतरा क सामना कर रहल बा बर्तमान में। जनमानस के आस्था आ मानस में मौजूद गंगा आजो पवितर बाली निर्मल बाली। आजो जनमानस के पूरहर विश्वास बा कि गंगा के पानी अमृत के समान बा जीवन के अंतिम समय में तुलसी के साथ गंगा जल मुहें में पड़ जाव त कुल्हिये पाप धोवा जाइ लेकिन कड़वी सच्चाई इ बा की गंगा जल आचमन के त छोड़ दिहिं नहाए लायक भी नइखे बाँचल। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के कहे के परल की सिगरेट से होखेवाला नुकसान क चेतावनी ख़ातिर जइसे ओकरा पाकिट पर सूचना छापल जरूरी बा ओइसने कुछ गंगा जी के पानी ख़ातिर सूचित कइल जाव। कबो जेकरा में नहइला मात्र से ही कुल्हिये पाप धोवा जात रहे उहे गंगा जनमानस के करनी के चलते खुदे दुषित के जहर पिये के मजबूर बाली । आज बिकाश के डेग के आगे बढ़ावे ख़ातिर बनल कल कारखाना आपन गन्दगी, आ शहर गांव के सीवर नाली के पानी सीधे गंगा में डाल दियाता । जगह जगह बाँध बनाके पानी के रोकल जाता कुछ जनसेवा के कार्यक्रम के गति देवे ख़ातिर ।
'अविरल गंगा', 'निर्मल गंगा', 'नमामि गंगे' जइसन कई कार्यक्रम पर अबतक 50 हजार करोड़ रुपया से बेसी के आहुति दिया गईल बा सरकार प्रशासन द्वारा लेकिन नतीजा उहे ढाक के तीन पात । गंगा मइया क हालत पइसा बहववला से सुधरे वाला रहित त कबे सुधर गइल रहित लेकिन एके सुधारे ख़ातिर चाही निर्विवाद रूप से बहत साफ सुथरा पानी। कुल सरकारी योजना नियर इहो कुल योजना भरस्टाचार के आँधी में उधिया गइली स। आजकाल कुल्हिये राजनीतिक पार्टी अपना घोषणा पत्र में एके प्रमुख रूप से सामिल करताली स आ एकरा ख़ातिर भरपूर धन के बेवस्था के भी वादा बा। लेक़िन सभे जानता ई जनता के गाढ़ कमाई के पइसा कुल बंदरबांट हो जाइ। खाये कमाए के साधन अख्तियार क लेले बा गंगा माई के निर्मल करे के योजना।
गंगा कवनो राजनीतिक पार्टी के ना हई की उनके रहमो करम पर बाली। गंगा के हालत के सुधारे ख़ातिर जरूरत बा दृढ़ इच्छाशक्ति आ सांच मन आ लगन के। गंगा के साथ खिलवाड़ एहि ख़ातिर होखता की जनता एकरा परती संजीदा नइखे ना ओकर मन एकरा ख़ातिर आंदोलित होखता। ई मुद्दा तबे परवान चढ़ी जब येह देश के युवा शक्ति के भागीदारी वाला जन आंदोलन के रूप लिहि। कुल्हिये काम सरकारे ना करी कुछ सुधार हमनियो के अपना आदत में करे के परी। आस्था पूजा त ठीक बा लेकिन उनकरा के निरमल करे के जिम्मेवारी हम आप सभकरा पर बा। आसा बा हमनियो के अपना कर्तब्य जवन गंगा के परती बा ओकरा के निभावे में पाछे ना रहल जाई।
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लेखक परिचय:-
नाम: तारकेश्वर राय 'तारक'
सम्प्रति: उप सम्पादक - सिरिजन (भोजपुरी) तिमाही ई-पत्रिका
गुरुग्राम: हरियाणा
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