तारकेश्वर राय 'तारक' के सात गो कविता

दूल्हा ना किनाई

एके तरह पलल बाबू, पढ़वल एके पढाई
भेद भाव नाइ कइल, दिदिया सबके समझाई।

अपने त पढलस दिदिया, दुसरो के पढ़ाई
दिदिया के दूल्हा, अब ना किनाई

दिदिया के कहना बा, सुनले ए माई
रहब कुँवार भले ही, दहेज ना दिआई

ना बेचाइ खेत बारी, न गहना किनाई
होइ बात ओकरे से, जे बात मान जाई

समाज में नर बाने ढेर, आ मादा बाली कम
तब काहे चाहता, दहेज भारी भरकम

समाज के बीमारी ह, समाजे मेटाई
मँगब दहेज त, पतोह ना भेटाई

पढ़, लिख तू , बनल समझदार
असरा बा तोहसे, उठाव कदम असरदार

ठान ले ब मन में, त तोहके केहू न डिगाई
बियाह में हमरा, दहेज लिआइ न दिआई

पढ़ल लिखल क, बानगी देखाव
ना चाही भीख, इ सबके बताव

भार्या त मिलबे करी, आसीस मिली सास से
तोहरा ओर देखता, समाज बड़ा आस से
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अनाज आ बिया

बर्तमान के सींचेला, आदमी सामान्य
भबिस्य के बोवेला आदमी गणमान्य

पाकल बाल जइसे फसलिया से कहे
कब आई खेतिहर, ओकर रहिया जोहे

पाकल फसल देख खेतिहर हरषे
महीनो इंतजार बाद ई नेह बरिसे

अनाज त खुश बा उ भूख मिटाई
हर अनाज के का इ सुख भेटाई?

नया फसल से ख़ुशी क दियना जरी
माई के चश्मा लागी, साफ लउकी हरो घरी

सब केहू मिल के करी अनाज के छटाई
खाये के कुछ,बेचे के कुछ, कुछ बिया धराई

बिया त खुश बा, उ नया फसल उगाई
उगी फसल त अनाज आई भूख मेटाई

बिया उतान बा, खाये वाला अनाज से बानी महान
बोवे वाला तोहके, बाँचल खाके जाने जहान

बर्तमान बाँची अनाज के खा के
भबिस्य बाँची बिया खेत जा के

अईसही जिनगी क फलसफा ये भाई
के बनी अनाज आ के बियावाला रोल निभाई

शुद्ध, स्वस्थ, बिया ही अंकुर गहि
उचित भण्डारण ही राखी बिया सही

सब बन जाई बिया, त बर्तमान ओराई
सब बन जाई अनाज त भबिस्य जराई

अनाज वाला पात्र गृहस्त निभावे
बिया क रोल, साधू संत के भावे

अनाज बिया छांटे वाला हुनर चाही
कहे ले "तारक" तबे निक जिनगी भेटाई
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गउवाँ अब, गांव कहाँ रहल

गउवाँ अब, गांव कहाँ रहल
बिकाश ना भेटाई एहिजा, सब केहू इहे कहल

बीरान आ सुन बिया पुरनकी बखरिया
ढहत डगरात देखत बीतता उमरिया

कटा गईल कुल बाग़ आ बगइचा
कहाँ बइठेके बिछावल जाता दरी गलईचा

कहाँ अब सुने के मिली पपीहा क पिहकारी
कनवा तरश्ता सुने के चरवहान के टिटकारी

पहिले उच्छिट गईल चरनिया से बैला
संस्कार बिछला गईल, लउकेला खाली छैला

ताल, तलैया, चवरां, गड़ही, पोखरा कूल्हे हेराइल
कहाँ भेटाई बिहशत मनई, लउकता मुँह मेहराइल

पछुवा के चलते फ़ेडन क पात पियराइल
माटी क घर फुटल, छान्हि-छप्पर कुल उधिआइल

चढ़े के जहाज प तबो रहे सपना
गोड़ रहे जमीन पर, मुहं प ढ़पना

बोलात रहे माईभाषा, लिखात न लउके
आज ज्ञानी बा उहे जे अंग्रेजी में फवुके

रहे दुवार खुला, लेकिन रहे मनसाइन
परिवार रहे एके संग, ना होखे किचाइन

देखि पंचे राजनीत क बिषधर गरेसला बा गावं के
कीच कीच काँव काँव में अझुराइल, तरश्ता छावं के

गड़हा भर के कच्ची डगरिया त पक्की भईल
टूटत, छुटत, परिवार देख, "तारक" सोंचेले ई का भईल

लउकत ख़ाली खेते बिल्डर, सड़के किसान, गाड़ी खाँचल
उधिया गइल सबकुछ, खाली पुरखा पुरनियन के नावे बाँचल

बाट जोहता, गावँ देखता पंचे बड़ा आस बिश्वाश से
औंधिआइल भाग पलटी, ख़ाली रउवा एहसास से
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जे जनमल बा उ मुइबे करी

आदमी के का औकात बा
होईल बा पैदा उ मुइबे करी

हँसके बा रोके, ई त जिनगी ह इ चलबे करी
उमिरिया कवनो करम से, रोकले ना रोकाई

ई त समइया के ठेला से, बढ़बे करी
सयान होत ललनवा, बात त गढ़वे करी

अब चाहे त, ओकर भरम मार दे
ना त ओकर, कइल करम मार दे

इंसानियत बा बाँचल, त शरम मार दे
बदनीयत, कवनो बेशरम मार दे

अब चाहे त, ओकर धरम मार दे
भा ओके मार देव, पेट क भूख

चाहे त मार देव, कवनो बेमारी
भा ओके मारे, अपनन क दुख

अदमी के मार देइ, सुखल खेती
भा ओके मार देव, बाढ़ के पानी

चाहे त मार देव, ओके भरैती
भा ओके मार देव, अस्पताल खरैती

अदमी के मार देइ, साहूकार क डंडा
चाहे त मार देइ, ओके तिखर घाम

भा ओके मार देव, मौषम ठंढा
रुकी न मौत, चाहे पहिनी ताबीज गंडा

कभी मराता, इंसान ईमान खातिर
जाता जान केहू क, इनाम खातिर

आशिक जान देता, सनम खातिर
कबो जान देता, पीर बरम खातिर

आदमी के का औकात बा
जे होईल बा पैदा उ मुइबे करी
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अंग्रेजी क बोखार

काहें भुलाता लोग माईवाला बोली
जइसे इ बोलला से लागी गोली

डर बा, माईवाला बोली से कहहिंये गंवार
छोड़, फेक, आ अब त छूठ गईल गावों जवार

गांव जवार छुटला से बोली भुलाई?
ई त बा खून में कइसे बहरीयाई?

मानस में जियतिया दबवले ना दबाई
पड़ले दुःख के पहिले इहे बहरीयाई

ना चहलो पा निकली मुहं से
समय इ खोजतिया जरी धुह से

सबकरा प चढ़ल बा अंग्रेजी के बोखार
सिखब जरूर चाहे महला होखी खोभार

अँगरेजी सिखल त नइखे बाउर
खूब सीखी, लिखी, पढ़ी, इच्छा राउर

राखी दिमाग में, मत एके दिल में बसाई
उ त माईभाखा के ठीहा ह, ओके बैठाई

अंग्रेजी के सहारे दुनिया के जानी
देखि कूल्हे लेकिन रीत आपन मानी

जेहर देखि ओहर अंग्रेजीये के चर्चा
जइसे माईभाखा बोलला से लागि खर्चा

देखि, गुनी, कुल दुनियाँ जहान
लेकिन आपन भाषा के मानी महान

राउर नेह क्षोह से माई जुड़ाई
जेहन में राख "तारक" त केहू ना मुड़ाइ
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ब्याकरण परिवार

वर्णमाला, वर्तनी, अलंकार, छन्द, कारक
स्त्रीलिंग, पुलिंग, समास, आ बिंदी धारक

ब्याकरण के इ त बड़हन परिवार बा
सजग रह पंचे ना त इ वार प वार बा

"संज्ञा" बेटी हई परिवार में सबसे छोटकी
समझ ल ठीक से ना त होइ गलती मोटकी

"भाववाचक" "जातिवाचक" कुल बान ढेर
माट्साब कूल्हे बुझवलन,ना बुझाइल एको बेर

बेटा "बिशेषण" बतावेलन बिशेषता बहिन के
एके समझी जे मालिक बा निक जहीन के

माई "क्रिया" के त कूल्हे इ काम बा
एकरा कोरा में त जइसे चारो धाम बा

बाबू "सर्वनाम" क, ना कवनो माने होला
छव भाई इनकर सब इनकर जाने होला

"कारक" बाबा के समझे में माट्साहबो पिटईलन
इनकर छव रूप सीखे में त कको हुकईलन

चाचा "अब्यय" के बारे में गुरूजी खूब समझवलन
भाषा के समझे में होखी आसानी, इहे गुनवलन

ब्याकरण के समझी पंचे निमक नियर
एकर अनुचित मात्रा कर दिहि सबके लाल पियर

ब्याकरण परिवार से जे रह गईल अछूता
भाषा क उ रूप ना लउकी, चाहे लगा दी कवनो बूता
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फैशन क गाड़ी

फैशन क गाड़ी अइसन दौरल
जइसे महुवा प आम बा मौरल

फैसन के बेमारी भईल महामारी
ई त संस्कृति के कूची, सभ्यता के मारी

माई क आँचर अब गईल भुलाई
बहिन के सलवार अब पहिरे भाई

भाई के जींस अब बहिन के भावे
बड़ भाई,बहिन बोलावे सब नावे नावे

केश त मातृशक्ति के शान रहे
माई क अरमान आ बेटी के जान रहे

केश त नारी के पहचान रहे
इहे सोच रहे राम के, इहे रहीम कहे

बढ़ल बार आ बान्हल केश
इहे लउकता लइकन क वेश

छोटका कुरता सरकत पैन्ट
टेटू गोदा के सोचता रही परमानेंट

आदर, मान, सम्मान सब बिलाइल
अपनापन, भाईचारा कुल ढिमलाईल

माई, बाप के समझावल लागता बाउर
पिज्जा, वर्गर के आगे के के भावत जाउर

पहिर उहे जवन तोहके मन भावे
पहिनावा उ जे तन ढाके आ लाज ढकावे

खूब पढ़ाई लिखाई ई त राउर धरम ह
इंसान बनावल इहो त राउरे कर्म ह
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लेखक परिचय:-
सम्प्रति: उप सम्पादक - सिरिजन (भोजपुरी) तिमाही ई-पत्रिका
गुरुग्राम: हरियाणा








मैना: वर्ष - 7 अंक - 117 (जनवरी - मार्च 2020)

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