प्रकाश उदय के चार गो कविता

धरहरिया

हउ देखऽ, धइलसआ माचिस में कइ देलस बंद अगिनदेव के।।
देखऽ कि छँउकल आ धइ लेलस चान।।
धइले बा अँगुरी के टिपला में बिजुरी के सब-सब टिपवान।।
कि जवना के धुन धइलस, धइ लेलस धउरा के।।
जूता धरवा लेलस चउकठ के बहरा आ मंदिर में धइलस भगवान।।

आ हइ देखऽ, धइ लेले 'धवकल', नापत में आपन जब टोपरा बिगहिया,
'धरिछना' के तीन धूर धरती, धइलस धरिछना जरीब।।
हूरा के पँजरी में, पटकन के पीठ प,
मुकवसला-लतवसला के जहाँ तहाँ धइलस गरीब..।।
आ देखऽ कि केहू ना धइल धवकल के बाँह, केहू ना कइल धरहरिया।।

केहू ना धइल धवकल के बाँह, त दाँते से धइलस धरिछना।।
त पाछे से धइलस 'फरिछना'।।
त आगे से से धइलस धवकल के लटकन,
धरिछना के भउजी, लटक गइलस बिहुनी।।

हइ देखऽ ...हइ देखऽ ...दाँते धराइल बा तीन धूर धरती।।
तीन धूर धरती पछवड़िए धराइल बा।।
तीन धूर धरती धइ लटकल बिया हइ धरिछना के भउजी।।
का चाहीं अउरी।।

अब सब धरहरिया में धउरी।।
धउरी त धउरी, ना धउरी नउजी।।
धउरो, धरो जाके चान।।
तीन धूर धरती हमार।।
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देखते मनवा लोभी

हती-हती फुलवा हतना सोभे
बड़का कतना सोभी, फुलगोभी
देखते मनवा लोभी, फुलगोभी

उजर-उजर फर भर-भर झाबा
जइसे हो नेतवन के साभा
जिन्‍हनी के कुरुता पैजामा
धँगचि के धोअलस धोबी, फुलगोभी

भुँजले अहा, छेंवकले आहा
छनला पर त आहा-आहा
बाकिर तनी सम्‍हर के भाया
पिलुओ कतहूँ होखी, फुलगोभी

जे तीयन आलू के मेंजन
परवर- गोभी- बैगन- वैगन
प्रभु कभु कम करबऽ जो भेजन
तहरो जिभिया टोकी, फूलगोभी
देखते मनवा लोभी, फुलगोभी
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रंग ए बनारस

आवत आटे सावन शुरू होई नहवावन
भोला जाड़े में असाढ़े से परल बाड़ें

एगो लांगा लेखा देह, रखें राखी में लपेट
लोग धो-धा के उघारे पे परल बाड़ें
भोला जाड़े में...

ओने बरखा के मारे, गंगा मारे धारे-धारे
जटा पावें ना सँभारे, होत जले जा किनारे
शिव शिव हो दोहाई, मुँह मारी सेवकाई
उहो देवे पे रिजाइने अड़ल बाड़ें
भोला जाड़े में...

बाते बड़ी बड़ी फेर, बाकी सबका ले ढेर
हाई कलसा के छेद, देखा टपकल फेर
गौरा धउरा हो दोहाई, अ त ढेर ना चोन्हाईं
अभी छोटका के धोवे के हगल बाटे
भोला जाड़े में...

बाड़ू बड़ी गिरिहिथीन, खाली लईके के जिकिर
बाड़ा बापे बड़ा नीक, खाली अपने फिकिर
बाड़ू पथरे के बेटी, बाटे जहरे नरेटी
बात बाटे-घाटे बढ़ल, बढ़ल बाटे
भोला जाड़े में...

सुनी बगल के हल्ला, ज्ञानवापी में से अल्ला
पूछें भईल का ए भोला, महकउला जा मोहल्ला
एगो माइक बाटे माथे, एगो तोहनी के साथे
भाँग दारू गाँजा फेरू का घटल बाटे
भोला जाड़े में...

दुनू जना के भेंटाइल, माने दुख दोहराइल
इ नहाने अँकुआइल, उ अजाने अँउजाइल
इ सोमारे हलकान, उनके जुम्मा लेवे जान
दुख कहले सुनल से घटल बाटे
भोला जाड़े में...
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चुप्पे चोरी बदरा के पार से

उड़े खाती चिरईं के पाँख
बुड़े खाती मछरी के नाक लेब
उड़े-बुड़े कुछुओ के पहिले।

चुप्‍पे-चोरी चारो ओरी ताक लेब
चुप्‍पे चोरी बदरा के पार से
सँउसे चनरमा उतार के
माई तोर लट सझुराइब
चुप्‍पे चोरी लिलरा में साट देब।

भरी दुपहरी में छपाक से
पोखरा में सुतब सुतार से
माई जोही, जब ना भेंटाइब
रोई, ना सहाई जो त खाँस देब।

आजी बाती सुरुज के जोती
सखी बाती पाकल पाकल जोन्‍ही
भइया खाती रामजी के बकरी -
चराइब, दू गो चुप्‍पे चोरी हाँक लेब।

बाबू चाचा मारे जइहें मछरी
हमरा के छोड़िहें जो घरहीं
जले-जले जाल में समाइब
मछरी भगाइब, खेल नास देब।

दीदी के देवरवा ह बहसी
कहला प मानी नाहीं बिहँसी
भउजी के भाई हवे सिधवा
बताइब, जो चिहाई त चिहाय देब।
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लेखक परिचय:-
नाम: प्रकाश उदय
जन्म : 20 अगस्त 1964, बनारस (उत्तर प्रदेश)
भाषा : हिंदी, भोजपुरीविधाएँ : कविता, आलोचना
संपर्क:- श्री बलदेव पी.जी. कॉलेज, बड़ागाँव,
वाराणसी-221204 (उत्तर प्रदेश)
फोन: 094152 90286
ई-मेल udayprakash1964@gmail.com

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