जगन्नाथ के तीन गो कविता

हवा में गजब के सरूर बाटे

हवा में गजब के सरूर बाटे,
बात कुछ खास त जरूर बाटे।

लोर सब गिर रहल बाटे भुँइयाँ,
उनका रोवे के ना सहूर बाटे।

हमरा पासे दरद के थाती बा,
रउवा का बात के गरूर बाटे।

दुलार देके दुरदुरा दीला,
नीक अपने के ई दस्तूर बाटे।

बात इन्सानियत के कइलीं ह,
हुजूर बस इहे कसूर बाटे।
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रउरा आँखिन से झर गइल पानी

रउरा आँखिन से झर गइल पानी
हमरा आँखिन में भर गइल पानी

हमरा रोवला के अर्थ लागल हऽ
हमरा आँखिन के गिर गइल पानी

खुद के ऐनक में देख के लागल
जइसे घइलन बा पर गइल पानी

जिन्दगी का निसा चढ़ल बाटे
उम्र के बा उतर गइल पानी

अपना पानी प ऊ रही कइसे
जेकरा आँखिन के मर गइल पानी
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सांस खातिर सरगम बेगाना भइल

सांस खातिर सरगम बेगाना भइल
जिंदगी बस जिये के बहाना भइल।

गिर के उनका नज़र से उठल बानी हम
बानी सबका नज़र के निसाना भइल।

लोर पिए के जनमे से लागल लकम
अब ना छुटी निसा ई पुराना भइल।

उनका रोवला बुला एगो मुद्दत भइल
हमरा हँसला, ए यारे, ज़माना भइल।

रउवा दिहीं दरद ना, गज़ल देब हम
इ गज़ल रउवा नाँवे बयाना भइल।
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लेखक परिचय:-
नाम: जगन्नाथ
जनम: 15 जनवरी 1934
जनम अस्थान: कुकड़ा, बक्सर, बिहार
परमुख रचना: पाँख सतरंगी, लर मोतिन के

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