दुर्गेन्द्र अकारी के तीन गो कविता

आगे डेट बढ़वले बा ना

हितवा दाल रोटी प हमनी के भरमवले बा
आगे डेट बढ़वले बा ना।

जाने कब तक ले बिलमायी, हितवा देवे ना बिदाई
बिदा रोक रोक के नाहक में बुढ़ववले बा। आगे डेट...

बीते चाहता जवानी, हितवा एको बात ना मानी
बहुते कहे सुने से गेट प भेट करवले बा। आगे डेट...

बात करहु ना पाई देता तुरूते हटाई
माया मोह देखा के डहकवले बा। आगे डेट...

देवे नास्ता में गुड़ चना, जरल कच्चा रोटी खाना
बोरा टाट बिछाके धरती प सुतवले बा। आगे डेट...

गिनती बार बार मिलवावे, ओसहीं मच्छड़ से कटवावे
भोरे भरल बंद पैखाना प बैठवले बा। आगे डेट...

एको वस्त्रा ना देवे साबुन, कउनो बात के बा ना लागुन
नाई धोबी के बिना भूत के रूप बनवले बा। आगे डेट...

कवि दुर्गेंद्र अकारी, गइलें हितवा के दुआरी
हितवा बहुत दिन प महल माठा खिअइले बा। आगे डेट....
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जेहल में बंद बा

जेकरा कम्मर ना, चट्ट, बरतन बा,
रे लोगवा, जेहल में बंद बा ना!

केहू-केहू से बरतन ले के, कसहूं करत भोजन बा
जेल जीवन प ध्यान ना देता, केहिविधि नर तन बा।

साग मूली लउका के भाजी, ओहि में देले बैंगन बा
भात कांच अधकच्चू रोटी, गुड़ चना मूल धन बा।

तेरह रोग के एके दवाई, उहो ना मिलत खतम बा
एक रही इमली के पाता, एकरे प जीवन-मरन बा।

जाड़ ठाढ़ गिरे ना सहाता, पछेया बहत कनकन बा
सुते-बइठे के जगहा ना, विपत में परल बदन बा।

गन्दा बन्दी के संग शासक, रखले नित रसम बा
बात भइल दरखास दिआइल, तबो ना परिवर्तन बा।

एक बात - एकता के बले, पूरा होई जो मन बा
कहे कवि दुर्गेन्द्र 'अकारी, टूटिहें गेट परन बा।
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लड़ल बाघ से बकरिया

बाघवा गरजे जइसे गरजेला दरिया
बकरी के अंखिया से चले पवनरिया
बाघ कभी बच्चा प नजरिया
लड़ल बाघ से बकरिया........

गरजि के बाघवा बकरिया प छरके
पेट में घुसली बकरी एक डेग बढिके
पँहथि के कइली पटरिया
लड़ल बाघ से बकरिया.........

बाघवा के पेटवा में घुसली बकरिया
ढोंढ़ी में लगा के सींग देली झकझोरिया
फाटि गइल बाघ के धोकरिया
लड़ल बाघ से बकरिया..........

एहि विधि दुखवा गरीबवन के जाई
दूसर कही का, केतना ले समझाई
अकिलनगर (एरौड़ा) के अकरिया
लड़ल बाघ से बकरिया................
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