शिवपूजन लाल विद्यार्थी के तीन गो कविता

टूटलऽ पलानी बा

गली कूंची, घर आंगन, भइल पानी पानी बा,
आइल बरसात पिया, टूटलऽ पलानी बा।

गरजेला मेघा अरु कड़के बिजुरिया,
बड़ा भकसावन लागे रतिया अन्हरिया।
अॅंखियाअस टप टपचुअत ओरियानी बा,
आइल बरसात पिया, टूटलऽ पलानी बा।

बरऽखता पानी जब मिलेना सरनवॉं,
रेंगऽताटे सॉंप गोजर घरवा अॅंगनवा।
दूर बाड़ऽतू का जानऽ, कवन परेसानी बा?
आइल बरसात पिया, टूटलऽ पलानी बा।

कइसे छवॉंई घर, पईसा ना कउरी?
कवन अधामत करीं, कहां कहां दउरीं?
दुखवाअभाव बनल जिनिगी कहानी बा,
आइल बरसात पिया, टूटलऽ पलानी बा।

सखिया सहेली सब गावेली कजरिया,
झुलुवा लागलऽ बाटे, अमवाके डरिया,
जेकर पिया साथे ओकर चानी बस चानी बा,
आइल बरसात पिया, टूटलऽ पलानी बा।

बेंगवा के टरऽ टरऽ जियरा डेरावेला,
पपीहा के पीहू पीहू निंदिया उड़ावेला,
बरऽसता सावन, हम्मर तरसत जवानी बा,
आइल बरसात पिया, टूटलऽ पलानी बा।

लहऽलहऽ चहऽचहऽ लागे फूल बगिया,
गछवा बिरिछिया के सॅंवरल जिनिगिया,
हमरा जिनिगिया में पसरल बीरानी बा,
आइल बरसात पिया, टूटलऽ पलानी बा।
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धरती के हँसत सिंगार

रोपनी लागल धुआँधार हो, जिया हुलसे हमार।
धरती के हँसत सिंगार हो, जिया हुलसे हमार।।

रिमझिम-रिमझिम बरसे बदरिया
मेघा मारे रंग-पिचकरिया,
रसवा में भींजे साँवर बधरिया
खेतवा में लोटे बहार हो.... जिया हुलसे हमार।

मौसम ई कतना पियारा सुहावन,
अमरित लुटावत बा धरती पर सावन
रोपनिन के गीतन पर नाचेला तन-मन
चहकत बा सँउसे बधार हो..... जिया हुलसे हमार।

बन्हले कमरिया से कोस के अँचरिया
खोंटले ठेहुनवाँ तक लसरल चुनरिया
निहुरि-निहुरि धान रोपे गुजरिया
चुड़िया के बाजे सितार हो.... जिया हुलसे हमार।

छपर-छपर पनियाँ में भीजल सजनवाँ
गमछा पहिरले कबारत बीहनवाँ
मनवाँ में तयरेला लह-लह सपनवाँ
कब होई जाने सकार हो.... जिया हुसले हमार।

होत भिनसहरा ही जागेली गोरिया
सखियन के संग जाली खेतवा का ओरिया
आपुस में होला चुहलेवा-ठिठोरिया
खेतवा में कदई से प्यार हो.... जिया हुलसे हमार।
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झूमत-गावत सावन आइल

मेघन के मिरदंग बजावत झूमत-गावत सावन आइल।
मौसम सरस सुहावन आइल।।

सोभत बा धरती के तन पर
धानी चुनरी कतना सुन्दर
दूर-दूर ले हरियाली के उड़त
अँचरवा लहरे फर-फर
सावन के रिमझिम फुहार में बाग कल्पना के हरियाइल।
मौसम सरस सुहावन आइल।।

धरा फाड़ि के दादुर चंचल
कुंभकरन से नींद से जागल
टर-टर-टर के गीत
राति के सन्नाटा के भेदे लागल
चातक के पी-पीं के रट से विरहिन के जियरा अकुलाइल।
मौसम तरल सुहावन आइल।।

सूखल आहर-पोखर उमड़ल,
दुखिया नदियन के दिल बहुरल
खेतन में रोपन के, घर में
कजरी के रसगर सुर गूँजल
लह-लह, चह-चह देखि बधरवा ‘होरी’ के मनवां हुलसाइल।
मौसम सजल सुहावन आइल।।

पात-पात के प्यास बुझावत,
कलियन-फूलन के नहवावत
तन के मन के तपन मिटावत,
धरती पर मोती बरसावत
सतरंगी परचम लहरावत फिर सावन मनभावन आइल।
मौसम विमल सुहावन आइल।।
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