डॉ. हरेश्वर राय के छव गो कविता

कमाइ दिहलस पपुआ

पढ़ि लिखि के का कइल
भईया पढ़वईया,
कमाइ दिहलस पपुआ
खाँचा भर रुपईया।

मंत्री बिधायकजी के
खास भइल बड़ुए,
गऊआँ के लफुअन के
बॉस भइल बड़ुए,
आ मुखियाजी के काँख के
भइल बा अँठईया।

मुंशी पटवारीजी के
करेला दलाली,
मुँहवा में पान लेके
करेला जुगाली,
आ भोरहिं से लाग जाला
फाँसे में चिरईयाँ।

हिंदी-अंगरेजी
भोजपुरी बोलि लेला,
बनब त बन हरेसर
ओकर पकवा चेला,
पढ़ल लिखल छोड़छाड़ के
बन जा पप्पू भईया।
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आँख में रात बहुते सयान हो गइल

आँख में रात बहुते सयान हो गइल
हमार असरे में जिनिगी जिआन हो गइल।

दिल के दरिया में दर्दे के पानी रहल
देंह जइसे कि भुतहा मकान हो गइल।

आस के डोर टूटल कटल भाईजी
आइल सपनों त अचके बिहान हो गइल।

हमरा होंठ के बगानी में फूल ना खिलल
मन क चउरा क तुलसी झंवान हो गइल।

संउसे जिनिगी कटल उनकर रहिये तकत
मौत के राह बहुते आसान हो गइल।
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अब सहात नइखे

हमरा का हो गइल बा बुझात नइखे
हीत गीत मीत कुछुओ सोहात नइखे।

हम त दउरत रहिला फिफिहिया बनल
हमरा जतरा के रहिया ओरात नइखे।

हमके एक-एक मिनटवा पहाड़ लागेला
हाय! रात रछछिनिया कटात नइखे।

हमके बिस्तर प लागे कवाछ बिछल बा
हमसे करवट के बदलल रोकात नइखे।

दिल में अतना दरद बा कि का हम कहीं
कवनों बएदा बोला दीं इ सहात नइखे।
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अँजुरी में सुरुज

थीर पानी में ढेला उछाले चलीं
कोना-सानी से जाला निकाले चलीं।

लिके - लीक कबहूँ सपूत ना चलस
राह सुन्दर बनाईं ऊँचा ले चलीं।

जदी अंगुरी अंगार से बचावे के बा
हाथ में मोट सिउँठा उठा ले चलीं।

अगर फूलहिं से पहिले चपाती फटे
मोट आटा के चलनी से चाले चलीं।

रात के मात देवे के बड़ुए अगर
अपना अँजुरी में सुरुज उठा ले चलीं।
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ना एने के ना ओने के

अपने ही देशवा में भइनी बिदेशिया रे
जाके कहाँ जिनिगी बिताईं ए संघतिया।

खेत खरिहान छूटल, बाबा के दलान छूटल
दिल के दरद का बताईं ए संघतिया।

तीज तेवहार गइल, जियल मोहाल भइल
मनवाँ में घूलत बा खँटाई ए संघतिया।

दक्खिन में दूर दूर, उत्तर में मार मार
कहाँ जाके हाड़वा ठेठाईं ए संघतिया।

गाँव घर मुँह फेरल, नाहीं केहु परल हरल
रोकले रुकत ना रोवाई ए संघतिया।

एहिजे के भइनी ना ओहिजे के रहनी रे
मन करे फँसरी लगाईं ए संघतिया।
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का का सियाईं

आँखिन के अम्बर में, बाझ मेड़राता।
छातिन के धरती प, रेगनी फुलाता॥

गऊआं के पाकड़ प, बइठल बा गीध।
मुसकिल मनावल बा, होली आ ईद॥

खेतन में एह साल, फुटि गइल भुआ।
सहुआ दुअरिये प, बइठल बा मुआ॥

अदहन के पानी में, जहर घोराइल बा।
साँस लेल मुसकिल बा, हावा ओराइल बा॥

जीवन के डेंगी में, भइल बा भकन्दर।
लागता कि डूबी इ, बीचे समन्दर॥

चूर भइल सपना, भाग भइल घूर।
रोपतानी आम त, उगता बबूर॥

मू गइले बाबूजी, भइल ना दवाई।
माई के पिनसिन प, होता लड़ाई॥

बुचिया के आँखि में, माड़ा फुलाइल बा।
मेहरि के ठेहुन के, तेल ओरियाइल बा॥

बउआ हरेसवर जी, का का बताईं।
चारु ओरे फाटल बा का का सियाईं॥
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लेखक परिचय:-
नाम:- डॉ. हरेश्वर राय
प्रोफेसर (इंग्लिश) शासकीय पी.जी. महाविद्यालय सतना, मध्यप्रदेश
बी-37, सिटी होम्स कालोनी, जवाहरनगर सतना, म.प्र.,
मो नं: 9425887079
royhareshwarroy@gmail.com

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