दिलीप कुमार पाण्डेय के पाँच गो कविता

भोजपुरियन का इज्जत के बखोर दिहलू

दिल में जमल रहे जवन प्यार के खखोड़ी
ओकरा के खखोर दिहलू
बनाके सनिमा लंगट उघार आला
भोजपुरियन का इज्जत के बखोर दिहलू।

अपना संस्कृति के लूटे में
पीछा नइखन कुछ भोजपुरिया
ज्ञानी होइओ के तू भोले का नगरी के
मान सम्मान सभ भंभोड़ दिहलू।
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इनार

उजर से किनलें, भुअर एगो इनार,
पटा बोअलें चीना,भर गइल दुआर।

उजर के बहरना, लागल सीखावे,
आ इनार छीने के, बुद्धि बतावे।

कहिहऽ इनार तहार, पानी हमार,
पानी निकलल त फोड़ देम कपार।

इहो जदि चाहीं, त पइसा द आउर,
कोर्ट में घींचइबऽ, दिन होई बाउर।

ठीक बा पानी तहरे, इनार हमार,
त पानी के रखईए, दे दऽ इयार।

ई सुन उजर के, अकिल हेराइल,
ओकिलवा के बुद्धि,काम ना आइल।

कह दीहऽ ओकिल के, आउर तनी पढ़स,
मास्टरन से बेसी, आगा जनि बढ़स।
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शहीद पुत्र के गोहार

उठऽ उठऽ
ए बाबू
मुंह आपन खोलऽ!
तहार सोनु
हईं हम
कुछ त बोलऽ!!

लोग
माई के चुड़ी
फोड देलस!
ऊठ के देखऽ ना
ओकर मांग
धो देलस!!

तूं काहे
मौन बारऽ
लोगन के बरेजऽ।
माई बिआ
बेहाल भईल
ओकरा के सहेजऽ॥

ना चाहीं धन
ना चाहीं
पईसा के बोझा।
सरगऽ के
मिली सुख
रहऽ खाली सोझा॥

हे! भगवान
जगा दिहीं
बाबू के आई!
रोअत-रोअत
मर जाई
ना त हमार माई!!
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केहू दाँत बनवाई

दाँत बनवावे भुअर डाॅक्टर लगे गईले
एगो दाँत के बनवाई एक हजार फरमईले।

बेसी बनवईला पर कुछ छूट हो जाई
हऽ आई ओही दाम में चार गो बन जाई।

बटुआ टो टा के भुअर भईले तईआर
दाँत बनावे के डाॅक्टर निकलले औजार।

दाब दूब के ठोक ठाक के दाँत लागल
भुअर अब खुश भईले बुढापा भागल।

रात के खूब चैन से भुअर सुतले
दाँत ना भेटाईल जब सबेरे उठले।

बिछावना तकिया चदर सभ झाराता
गले आला दाँत रहे ऊ कहाँ भेटाता।
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संदेश

ए हवा तू देअईतऽ ई संदेश प्रीतम के,
भाड़ा तोहरा ना लागे आवे आउर जाए के,
उनका से कह देते होली में आवे के।

बाट उनकर जोहे नी बिरहा में जर जरके,
ए हवा तू देअईतऽ ई संदेश प्रीतम के।

सेजीआ अब काटे धउरे निनिओ ना लागे,
बड़ा जबुर लागेला जब बबुआ रोए लागे।

सब काम करेनी हम अकेले मर मर के,
ए हवा तू देअईतऽ ई संदेश प्रीतम के।

कईसे हम रही सभे से मिल जुल के,
नन्दी तार बना देतिआ छोटहनो बातवा के,
ए हवा तू देअईतऽ ई संदेश प्रीतम के।
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लेखक परिचय:-
नाम-दिलीप कुमार पाण्डेय
बेवसाय: विज्ञान शिक्षक
पता: सैखोवाघाट, तिनसुकिया, असम
मूल निवासी -अगौथर, मढौडा ,सारण।
मो नं: 9707096238

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